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 कौन थे राजा विक्रमादित्य के नौ रत्न
राजा विक्रमादित्य के किस्से बहुत मशहूर हैं। उनके पराक्रम की गाथाएं आज भी किताबों में मिल जाती हैं। राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों के विषय में भी काफी उल्लेख मिलता है। राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नोंं में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। 
1. धन्वंतरि- धन्वंतरि का जिक्र हमारे पुराणों में मिलता है, ऐसा कहा जाता है कि ये रोगों से मुक्ति दिलवाया करते थे। शल्य तंत्र के प्रवर्तक को धन्वंतरि कहा जाता है, ये विक्रमादित्य की सेना में भी मौजूद थे। जिनका कार्य युद्ध में घायल हुए सैनिकों को जल्द से जल्द ठीक करना होता था। 
2. क्षपणक- राजा विक्रमादित्य के दरबार के दूसरे नवरत्न थे क्षपणक। जैन साधुओं को क्षपणक कहा जाता है, दिगंबर शाखा के साधुओं को नग्न क्षपणक नाम से जाना जाता है। मुद्राराक्षस में भी क्षपणक के वेश में गुप्तचरों का उल्लेख किया गया है। 
3. शंकु- राजा विक्रमादित्य के दरबार में शंकु को काफी प्राथमिकता दी जाती है। शंकु को विद्वान, ज्योतिषशास्त्री माना जाता है। वास्तव में इनका कार्य क्या था इसका उल्लेेख नहीं मिलता।  ज्योतिर्विदाभरण  में इन्हें कवि के रूप में भी चित्रित किया गया है। 
4. वेताल भट्ट- वेताल कथाओं के अनुसार राजा विक्रमादित्य ने अपने साहसिक प्रयत्न से अग्नि वेताल को अपने वश में कर लिया था। वेताल अदृश्य रूप में राजा की बहुत सी परेशानियों को हल करता है और उनके लिए काफी मददगार साबित होता है। प्राचीन काल में भट्ट की उपाधि महापंडितों को दी जाती थी, वेताल भट्ट से तात्पर्य, भूत-प्रेत की साधना में प्रवीणता से है। 
5.घटखर्पर- घटखर्पर के विषय में भी अल्प जानकारी ही उपलब्ध है। ये महान कवि थे, ऐसा माना जाता है कालिदास के साथ रहते हुए ही इन्हें कविता के क्षेत्र में निपुणता प्राप्त हुई थी। घटखर्पर ने यह प्रतिज्ञा ली थी जो भी कवि उन्हें यमक रचना में पराजित कर देगा, वह उसके घर घड़े के टुकड़े से पानी भरेंगे। 
6. वररुचि- वररुचि ने  पत्रकौमुदि नामक काव्य की रचना की थी। काव्यमीमांसा के अनुसार वररुचि ने पाटलिपुत्र में शास्त्रकार परीक्षा उत्तीर्ण की थी, वहीं कथासरित्सागर के अंतर्गत इस बात का उल्लेख है कि वररुचि का दूसरा नाम कात्यायन था।
7. पत्रकौमुदी- पत्रकौमुदी  काव्य के आरंभ में ही वररुचि ने यह लिखा है कि राजा विक्रमादित्य के कहने पर ही उन्होंने इसकी रचना की थी। उन्होंने विद्यासुंदर की रचना भी विक्रमादित्य के आदेश अनुसार की थी। 
8.  वराहमिहिर-पंडित सूर्यनारायण व्यास के अनुसार राजा विक्रमादित्य की सभा में वराहमिहिर नामक ज्योतिष के प्रकांड पंडित भी शामिल थे। 
9. महाकवि कालीदास-महाकवि कालिदास को राजा विक्रमादित्य की सभा का प्रमुख रत्न माना जाता है। इनका नाम दुनिया के महान कवियों में शुमार है। 
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