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फ्री रैडिकल से निपटने में मदद करता है कद्दू

कद्दू का नाम सुनते ही अधिकांश लोग नाक-मुंह बनाने लगाते हैं। लेकिन इस पीले से फल में ढेर सारे गुण भरे हैं। इसमें खूब रेशा यानी की फाइबर होता है जिससे पेट हमेशा साफ रहता है। यह फ्री रैडिकल से भी बचाता है।
प्राचीन काल से भारत  में इसके उपयोग सब्जी और हलवे के रूप में किया जा रहा है। भारत में यह बहुतायक में उगाया जाता है। आहार विशेषज्ञ भी इसके गुणों के कारण लोगों को इसे खाने की सलाह दे रहे हैं। अब तो बाजार में इसके भुने हुए बीज भी मिलने लगे हैं, जो अलसी की तरह खाए जाते हैं। कद्दू के बीज भी आयरन, जिंक, पोटेशियम और मैग्नीशियम के अच्छे स्रोत हैं।
दरअसल कद्दू  में मुख्य रूप से बीटा केरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन ए मिलता है। पीले और संतरी कद्दू में केरोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है। बीटा केरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होता है जो शरीर में फ्री रैडिकल से निपटने में मदद करता है। कद्दू  और इसके बीज में विटामिन सी और ई, आयरन, कैलशियम, मैग्नीशियम, फॉसफोरस, पोटैशियम, जिंक, प्रोटीन और फाइबर आदि  होते हैं। इसमें श्वेतसार, कुकुर्बिटान नामक क्षाराभ, प्रोटीन-मायोसिन, वाईटेलिन शर्करा क्षार आदि पाए जाते हैं।
 कद्दू बलवर्धक होता है और  रक्त तथा पेट साफ करता है, पित्त व वायु विकार दूर करता है और मस्तिष्क के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है।  कद्दू के छिलके में भी एंटीबैक्टीरिया तत्व होता है जो संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं से रक्षा करता है। शायद इन्हीं खूबियों के कारण कद्दू को प्राचीन काल से ही गुणों की खान माना जाता रहा है।  यह खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में सहायक होता है और अग्नयाशय को भी सक्रिय करता है। इसी वजह से चिकित्सक मधुमेह के रोगियों को कद्दू के सेवन की सलाह देते हैं।
  माना जाता है कि कद्दू की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका में हुई होगी। इसके सबसे पुराने बीज 7 हजार से 5 हजार ईसा पूर्व के हैं। पश्चिमी एशिया में इसका इस्तेमाल मीठे व्यंजन बनाने में किया जाता है।  अमेरिका, मेक्सिको, चीन और भारत इसके सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। इसके साथ ही यह विश्व के अनेक देशों की संस्कृति के साथ जुड़ा है।  उपवास के दिनों में फलाहार के रूप में भी इससे बने विशेष पकवानों का सेवन किया जाता है।
आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति में कद्दू का इस्तेमाल कई रोगों के इलाज करने में प्रयोग किया जाता है। हिन्दी में इसको काफीफल, कद्दू, रामकोहला, तथा संस्कृत में कुष्मांड, पुष्पफल, वृहत फल, वल्लीफल कहते हैं। इसका लेटिन नाम  बेनिनकासा हिष्पिड़ा  है। यह कोशातकी (कुकुर्बिटेसी) कुल का फल है। यह अंटार्कटिका को छोड़कर बाकी पूरी दुनिया में उगाया जाता है। 

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