सबसे प्राचीन उपनिषदों में से एक -गर्भउपनिषद
भारतीय महर्षियों और संतों ने बहुत से ऐसे ग्रंथों की रचना की है जो आज सैकड़ों-हजारों वर्षों बाद भी वैयक्तिक जीवन के लिए लाभकारी हैं। भारतीय जमीन पर करीब 200 उपनिषदों की रचना की गई है, जिनमें से करीब 12 उपनिषदों को मुख्य और सबसे प्राचीन माना गया है। उपनिषदों में से एक है गर्भ उपनिषद, जो यह बताता है कि मां के गर्भ में 9 महीने बिताते हुए बच्चा क्या सोचता है। गर्भउपनिषद के अनुसार गर्भ में रहते हुए बच्चा सबसे पहले ईश्वर से यह वायदा करता है कि वह इस जन्म में उन बुरे कर्मों को नहीं दोहराएगा। लेकिन जैसे ही वह गर्भ से बाहर आता है वैसे ही वैष्णव प्राण नाम की ताकत उसे छूती है और वह उस वायदे को भूल जाता है जो उसने ईश्वर से किया होता है।
गर्भ उपनिषद में उल्लेखित है कि स्त्री-पुरुष के मिलन से नर-मादा के प्रजनन पदार्थ मिलते हैं जिसके बाद गर्भ धारण होता है, जो हृदय द्वारा नियंत्रित किया जाता है। गर्भ उपनिषद में गर्भधारण से लेकर जन्म तक सभी पड़ावों का वर्णन किया गया है। पहले पड़ाव के अनुसार प्रजनन पदार्थों के मेल के बाद स्त्री गर्भ धारण करती है और करीब सात दिन बाद भ्रूण आकार लेने लगता है। पहले वह एक बुलबुले की तरह नजर आता है और 14 दिन के बाद वह एक मजबूत गांठ की तरह दिखने लगता है। एक माह समाप्त होते-होते वह और अधिक मजबूत और कठोर हो जाता है और दो माह बाद भ्रूण का सिर बनने लगता है। तीन महीने के बाद भ्रूण के पैर आकार लेने लगते हैं और चौथा माह आते- आते उसकी कलाई, पेट और अन्य मुख्य शारीरिक संरचना पूरी होने लगती है। पांच महीने में रीढ़ की हड्डी और सभी हड्डियां बनने लगती हैं। इसके अलावा छठे महीने में नाक, आंखें और कान बन जाते हैं। सातवें माह में आत्मा शरीर को अपनाने लगती है । धीरे- धीरे वह शरीर में प्रवेश करती है । आठवें महीने में वह पूरी तरह अपना आकार ले चुका होता है। अगर भ्रूण में पिता का अंश ज्यादा होता है तो वह नर के रूप में जन्म लेगा। वहीं अगर भ्रूण में माता का प्रभाव ज्यादा होगा तो वह मादा बनेगा। लेकिन अगर दोनों के प्रभाव समान होंगे, तो वह न तो महिला बनेगा और न ही पुरुष । वह दोनों लिगों को पूर्णत: अपना नहीं पाएगा और उसका जन्म किन्नर के रूप में होगा।
इतना ही नहीं गर्भ उपनिषद में कहा गया है कि अगर गर्भाधान के समय दंपत्ति क्षुब्ध या व्यथित होते हैं तो इसका प्रभाव उनकी होने वाली संतान पर पड़ता है। मां के गर्भ में नौंवे महीने में भ्रूण की ज्ञानेन्द्रियों और बौद्धिकता का विकास होने लगता है। इसी दौरान भ्रूण को अपना पिछला जन्म और उसमें किए गए बुरे कृत्य याद आते हैं। गर्भ में रहते हुए भ्रूण ईश्वर से यह कहता है कि कई योनियां पार करने के बाद, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों को खाने के बाद, कई बार मां का दूध पीने के बाद और कई बार मौत को झेलने के बाद मैं ये जन्म ले रहा हूं । भ्रूण कहता है कि मैं वायदा करता हूं कि मैं खुद को नारायण के प्रति समर्पित कर दूंगा। मैं उनके नाम का जाप करूंगा और पूर्व जन्मों में किए गए पापों से छुटकारा पाऊंगा। नौवें महीने की समाप्ति के बाद अपनी उत्पत्ति के लिए प्रयास करने लगता है और मां के गर्भ से बाहर आता है। इसके साथ ही वह अपना पिछला जन्म, उसमें किए गए अच्छे और बुरे सभी कर्म भूल जाता है।
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