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  औधषीय पौधा सर्पगंधा
सर्पगंधा एपोसाइनेसी परिवार का द्विबीजपत्री, बहुवर्षीय झाड़ीदार सपुष्पक और महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। इस पौधे का पता सर्वप्रथम लियोनार्ड राल्फ ने 1582 ई. में लगाया था। भारत तथा चीन के पारंपरिक औषधियों में सर्पगंधा एक प्रमुख औषधि है। भारत में तो इसके प्रयोग का इतिहास करीब 3000 वर्ष पुराना है।
सर्पगंधा  के पौधे की ऊंचाई 6 इंच से 2 फुट तक होती है। इसकी प्रधान जड़ प्राय: 20 से. मी. तक लम्बी होती है। जड़ में कोई शाखा नहीं होती है। सर्पगन्धा की पत्ती एक सरल पत्ती का उदाहरण है। इसका तना मोटी छाल से ढंका रहता है। इसके फूल गुलाबी या सफेद रंग के होते हैं। ये गुच्छों में पाए जाते हैं। भारतवर्ष में समतल एवं पर्वतीय प्रदेशों में इसकी खेती होती है। पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश में सभी जगह स्वाभाविक रूप से सर्पगंधा  के पौधे उगते हैं।
सर्पगंधा  में रिसार्पिन तथा राउलफिन नामक उपक्षार पाया जाता है। सर्पगंधा के नाम से ज्ञात होता है कि यह सर्प के काटने पर दवा के नाम पर प्रयोग में आता है।  इस पौधे की जड़, तना तथा पत्ती से दवा का निर्माण होता है। इसकी जड़ में लगभग 25 क्षारीय पदार्थ, स्टार्च, रेजिन तथा कुछ लवण पाए जाते हैं। सर्पगंधा को आयुर्वेद में निद्राजनक कहा जाता है इसका प्रमुख तत्व रिसरपिन है,जो पूरे विश्व में एक औषधीय पौधा बन गया है इसकी जड़ से कई तत्व निकाले गए हैं जिनमें क्षाराभ रिसरपिन, सर्पेन्टिन, एजमेलिसिन प्रमुख हैं जिनका उपयोग उच्च रक्त चाप,अनिद्रा, उन्माद, हिस्टीरिया आदि रोगों को रोकने वाली औषधियों के निर्माण किया जाता है इसमें 1.7 से 3.0 प्रतिशत तक क्षाराभ पाए जाते हैं जिनमें रिसरपिन प्रमुख हैं इसका गुण रूक्ष, रस में तिक्त, विपाक में कटु और इसका प्रभाव निद्राजनक होता है। 
दो-तीन साल पुराने सर्पगंधा के पौधे की जड़ को उखाड़ कर सूखे स्थान पर रखते है, इससे जो दवाएं निर्मित होती हैं, उनका उपयोग उच्च रक्तचाप, गर्भाशय की दीवार में संकुचन के उपचार में करते हैं। इसकी पत्ती के रस को निचोड़ कर आंख में दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग मस्तिष्क के लिए औषधि बनाने के काम आता है। अनिद्रा, हिस्टीरिया और मानसिक तनाव के दूर करने में सर्पगंधा की जड़ का रस, काफी उपयोगी है। इसकी जड़ का चूर्ण पेट के लिए काफी लाभदायक है। इससे पेट के अन्दर की कृमि खत्म हो जाती है।

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