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द्रौपदी का मायका पांचाल अब कहां है?
  पांचाल पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूं और फर्रूख़ाबाद जि़लों से परिवृत प्रदेश का प्राचीन नाम ही पांचाल है। यह कानपुर से वाराणसी के बीच के गंगा के मैदान में फैला हुआ था। इसकी भी दो शाखाएं थीं- पहली शाखा उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र थी तथा, दूसरी शाखा दक्षिण पांचाल की राजधानी कांपिल्य थी।
  पांडवों की पत्नी, द्रौपदी को पांचाल की राजकुमारी होने के कारण पांचाली भी कहा गया।  सर अलेक्ज़ैंडर कनिंघम  के अनुसार वर्तमान रुहेलखंड उत्तर पंचाल और दोआबा दक्षिण पंचाल था। कनिंघम ब्रिटिश सेना के बंगाल इंजीनियर ग्रुप में इंजीनियर थे जो बाद में भारतीय पुरातत्व, ऐतिहासिक भूगोल तथा इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान् के रूप में प्रसिद्ध हुए। बात करें पांचाल की तो, संहितोपनिषद ब्राह्मण में पंचाल के प्राच्य पंचाल भाग (पूर्वी भाग) का भी उल्लेख है। शतपथ ब्राह्मण में पंचाल की परिवका या परिचका नामक नगरी का उल्लेेख है जो वेबर के अनुसार महाभारत की एकचका है। 
 कुछ विद्वानों के अनुसार पंाचाल पंच प्राचीन कुलों का सामूहिक नाम था। वे ये थे—  किवि, केशी, सृंजय, तुर्वसस,सोमक।
ब्रह्मपुराण तथा मत्स्य पुराण में इन्हें मुदगल सृंजय, बृहदिषु, यवीनर और कृमीलाश्व कहा गया है। पंाचालों और कुरु जनपदों में परस्पर लड़ाई-झगड़े चलते रहते थे। महाभारत के आदिपर्व से ज्ञात होता है कि पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन की सहायता से पंाचालराज द्रुपद को हराकर उसके पास केवल दक्षिण पंचाल (जिसकी राजधानी कांपिल्य थी) रहने दिया और उत्तर पंाचाल को हस्तगत कर लिया था। द्रोणाचार्य ने परास्त होने पर कैद में डाले हुए पंाचाल राज द्रुपद से कहा—'मैंने राज्य प्राप्ति के लिए तुम्हारे साथ युद्ध किया है। अब गंगा के उत्तरतटवर्ती प्रदेश का मैं, और दक्षिण तट के तुम राजा होंगेÓ। इस प्रकार महाभारत-काल में पंाचाल, गंगा के उत्तरी और दक्षिण दोनों तटों पर बसा हुआ था। द्रुपद पहले अहिच्छत्र या छत्रवती नगरी में रहते थे। इन्हें जीतने के लिए द्रोण ने कौरवों और पांडवों को पंचाल भेजा थ।
 महाभारत आदिपर्व के अनुसार  द्रौपदी का स्वयंवर कांपिल्य में हुआ था। दक्षिण पंाचाल की सीमा गंगा के दक्षिणी तट से लेकर चंबल या चर्मणवती तक थी। विष्णु पुराण में कुरु-पांचालों को मध्यदेशीय कहा गया है। पंाचाल निवासियों को भीमसेन ने अपनी पूर्व देश की दिग्विजय-यात्रा में अनेक प्रकार से समझा-बुझाकर वश में कर लिया था।
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