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 सरस्वती नदी को लेकर क्या कहते हैं वेद-पौराणिक ग्रंथ
 सरस्वती नदी पौराणिक हिन्दू ग्रन्थों तथा ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से एक है। ऋग्वेद में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। ऋग्वेद के अनुसार सरस्वती नदी को अम्बितम (माताओं में श्रेष्ठ), नदितम (नदियों में श्रेष्ठ) एवं देवितम (देवियों में श्रेष्ठ) नामों से वर्णित किया गया है। सरस्वती नदी को मानवीकृत रूप में देवी सरस्वती का स्वरुप माना जाता था। हिन्दू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सरस्वती नदी को भगवान् नारायण की पत्नी माना गया है, जो श्राप के कारण पृथ्वी पर अवतरित हुई। यह कहा जाता है कि सरस्वती नदी स्वर्ग में बहने वाली दूधिया नदी है, जिसके पृथ्वी पर अवतरित होने के पश्चात यह नदी मानव मात्र के लिए मृत्यु के पश्चात मोक्ष पाने का एक द्वार है।
 ऋग्वेद के नदी सूत्र के एक मंत्र में सरस्वती नदी को श्यमुना के पूर्वश् और श्सतलुज के पश्चिमश् में बहती हुई बताया गया है, उत्तर वैदिक ग्रंथों, जैसे ताण्डय और जैमिनीय ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ वर्णित किया गया है, महाभारत में भी सरस्वती नदी के मरुस्थल में श्विनाशनश् नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन मिलता है। महाभारत में सरस्वती नदी के प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती आदि कई नाम हैं। महाभारत, वायु पुराण आदि में सरस्वती के विभिन्न पुत्रों के नाम और उनसे जुड़े मिथक प्राप्त होते हैं। महाभारत के शल्य-पर्व, शांति-पर्व, या वायुपुराण में सरस्वती नदी और दधीचि ऋषि के पुत्र सम्बन्धी मिथक थोड़े थोड़े अंतरों से मिलते हैं।
 संस्कृत महाकवि बाण भट्ट के ग्रन्थ श्हर्षचरितश् में दिए गए वर्णन के अनुसार एक बार बारह वर्ष तक वर्षा न होने के कारण ऋषिगण सरस्वती का क्षेत्र त्याग कर इधर-उधर हो गए, परन्तु माता के आदेश पर सरस्वती-पुत्र, सारस्वतेय वहां से कहीं नहीं गया। फिर सुकाल होने पर जब तक वे ऋषि वापस लौटे तो वे सब वेद आदि भूल चुके थे। उनके आग्रह का मान रखते हुए सारस्वतेय ने उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार किया और पुन: श्रुतियों का पाठ करवाया। अश्वघोष ने अपने बुद्धचरितश्काव्य में भी इसी कथा का वर्णन किया है।
 यह कहा जाता है कि सरस्वती नदी प्राचीन काल में सर्वदा जल से भरी रहती थी और इसके किनारे अन्न की प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होता थो। यह नदी पंजाब में सिरमूर राज्य के पर्वतीय भाग से निकलकर अंबाला तथा कुरुक्षेत्र होती हुई कर्नाल जिला और पटियाला राज्य में प्रविष्ट होकर सिरसा जिले की दृशद्वती (कांगार) नदी में मिल गई थी। यह कहा जाता है कि प्रयाग के निकट तक आकर यह गंगा तथा यमुना में मिलकर त्रिवेणी बन गई थी। कालांतर में यह इन सब स्थानों से तिरोहित हो गई, फिर भी लोगों की धारणा है कि प्रयाग में वह अब भी अंतरूसलिला होकर बहती है। मनुसंहिता से स्पष्ट है कि सरस्वती और दृषद्वती के बीच का भू-भाग ही ब्रह्मावर्त कहलाता था। इस नदी को घघ्घर, रक्षी, चित्तग नामों से भी जाना जाता है।
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