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पुराणों में उल्लेखित यह नदी आज भी अन्य नदियों से विपरित दिशा में बहती है
नर्मदा नदी भारत की एक प्रमुख नदी है। नर्मदा सर्वत्र पुण्यमयी नदी बताई गई है तथा इसके उद्भव से लेकर संगम तक  करोड़ों तीर्थ हैं।  मान्यता है कि एक बार क्रोध में आकर नर्मदा नदी ने अपनी दिशा परिवर्तित कर ली और चिरकाल तक अकेले ही बहने का निर्णय लिया। आज भी ये अन्य नदियों की तुलना में विपरीत दिशा में बहती हैं। इनके इस अखंड निर्णय की वजह से ही इन्हें चिरकुंआरी कहा जाता है। चिरकुंआरी मां नर्मदा के बारे में कहा जाता है कि चिरकाल तक मां नर्मदा को संसार में रहने का वरदान है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव ने मां रेवा को वरदान दिया था कि प्रलयकाल में भी तुम्हारा अंत नहीं होगा। अपने निर्मल जल से तुम युगों-युगों तक इस समस्त संसार का कल्याण करोगी।
वेदों में इस नदी का उल्लेख नहीं है, लेकिन पुराणों में रेवा नाम की नदी का उल्लेख है, जिसे नर्मदा का प्राचीन नाम माना गया है।  गंगा के उपरान्त भारत की अत्यन्त पुनीत नदियों में नर्मदा एवं गोदावरी के नाम आते हैं। रेवा नर्मदा का दूसरा नाम है और यह सम्भव है कि  रेवा  से ही  रेवोत्तरस  नाम पड़ा हो। वैदिक साहित्य में नर्मदा के विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। इस नदी का उद्गम विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला में अमरकंटक नामक स्थान में है । मैकाल से निकलने के कारण नर्मदा को मैकाल कन्या भी कहते हैं । स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है । कालिदास के 'मेघदूतमÓ में नर्मदा को रेवा का संबोधन मिला है , जिसका अर्थ है—पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली। वास्तव में नर्मदा की तेजधारा पहाड़ी चट्टानों पर और भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से उछलती हुई बहती है । अमरकंटक में सुंदर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली इस पावन धारा को रुद्र कन्या भी कहते हैं, जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती हैं । पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं , जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है । इनमें कपिलधारा, शुक्लतीर्थ, मांधाता , भेड़ाघाट, शूलपाणि, भड़ौंच उल्लेखनीय हैं । अमरकंटक की पहाडिय़ों से निकल कर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर नर्मदा क़्ररीब 1310 किमी का प्रवाह पथ तय कर भरौंच के आगे खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है ।  पुराणों में बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से समस्त पापों का नाश होता है ।
 रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था।
- गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को सोमोद्भवा कहा है।
- कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है।
- रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है।
-मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है।
- वाल्मीकि रामायण में भी नर्मदा का उल्लेख है। इसके पश्चात के श्लोकों में नर्मदा का एक युवती नारी के रूप में सुंदर वर्णन है।
-महाभारत में नर्मदा को ॠक्षपर्वत से उद्भूत माना गया है।
- भीष्मपर्व में नर्मदा का गोदावरी के साथ उल्लेख है।
- श्रीमद्भागवत में रेवा और नर्मदा दोनों का ही एक स्थान पर उल्लेख है।
- शतपथ ब्राह्मण ने रेवोत्तरस की चर्चा की है, जो पाटव चाक्र एवं स्थपति (मुख्य) था, जिसे सृञ्जयों ने निकाल बाहर किया था।
- पाणिनि के एक वार्तिक ने -महिष्मत की व्युत्पत्ति  महिष  से की है, इसे सामान्यत: नर्मदा पर स्थित माहिष्मती का ही रूपान्तर माना गया है। इससे प्रकट होता है कि सम्भवत: वार्तिककार को (लगभग ई.पू. चौथी शताब्दी में ) नर्मदा का परिचय था।  रघुवंश में रेवा (अर्थात् नर्मदा) के तट पर स्थित माहिष्मती को अनूप की राजधानी कहा गया है।
 
जान पड़ता है कि कहीं-कहीं साहित्य में इस नदी के पूर्वी या पहाड़ी भाग को रेवा (शाब्दिक अर्थ—उछलने-कूदने वाली) और पश्चिमी या मैदानी भाग को नर्मदा (शाब्दिक अर्थ—नर्म या सुख देने वाली) कहा गया है। (किन्तु महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में उदगम के निकट ही नदी को नर्मदा नाम से अभिहित किया गया है)। नर्मदा के तटवर्ती प्रदेश को भी कभी-कभी नर्मदा नाम से ही निर्दिष्ट किया जाता था। विष्णुपुराण के अनुसार इस प्रदेश पर शायद गुप्तकाल से पूर्व आभीर आदि शूद्रजातियों का अधिकार था। वैसे नर्मदा का नदी के रुप में उल्लेख है।
 महाभारत एवं कतिपय पुराणों में नर्मदा की चर्चा बहुधा हुई है। मत्स्य पुराण, पद्म पुराण कूर्म पुराण ने नर्मदा की महत्ता एवं उसके तीर्थों का वर्णन किया है। मत्स्य पुराण एवं पद्म पुराण आदि में ऐसा आया है कि उस स्थान से जहां नर्मदा सागर में मिलती है, अमरकण्टक पर्वत तक, जहां से वह निकलती है, 10 करोड़ तीर्थ हैं। अग्नि पुराण एवं कूर्म पुराण के मत से क्रम से 60 करोड़ एवं 60 सहस्र तीर्थ हैं। नारदीय पुराण का कथन है कि नर्मदा के दोनों तटों पर 400 मुख्य तीर्थ हैं, किन्तु अमरकण्टक से लेकर साढ़े तीन करोड़ हैं। वन पर्व ने नर्मदा का उल्लेख गोदावरी एवं दक्षिण की अन्य नदियों के साथ किया है। उसी पर्व में यह भी आया हैं कि नर्मदा आनर्त देश में है, यह प्रियंगु एवं आम्र-कुञ्जों से परिपूर्ण है, इसमें वेत्र लता के वितान पाये जाते हैं, यह पश्चिम की ओर बहती है और तीनों लोकों के सभी तीर्थ यहाँ (नर्मदा में) स्नान करने को आते हैं। मत्स्य पुराण एवं पद्म पुराण ने उद्घोष किया है कि गंगा कनखल में एवं सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है, किन्तु नर्मदा सभी स्थानों में, चाहे ग्राम हो या वन। नर्मदा केवल दर्शन-मात्र से पापी को पवित्र कर देती है; सरस्वती (तीन दिनों में) तीन स्नानों से, यमुना सात दिनों के स्नानों से और गंगा केवल एक स्नान से। विष्णुधर्मसूत्र ने श्राद्ध के योग्य तीर्थों की सूची दी हैं, जिसमें नर्मदा के सभी स्थलों को श्राद्ध के योग्य ठहराया है। नर्मदा को रुद्र के शरीर से निकली हुई कहा गया है, जो इस बात का कवित्वमय प्रकटीकरण मात्र है कि यह अमरकण्टक से निकली है जो महेश्वर एवं उनकी पत्नी का निवास-स्थल कहा जाता है। वायु पुराण में ऐसा उद्घोषित है कि नदियों में श्रेष्ठ पुनीत नर्मदा पितरों की पुत्री है और इस पर किया गया श्राद्ध अक्षय होता है। मत्स्य पुराण एवं कूर्म पुराण का कथन है कि यह 100 योजन लम्बी एवं दो योजन चौड़ी है।  मत्स्य पुराण एवं कूर्म पुराण का कथन है कि नर्मदा अमरकण्टक से निकली हैं, जो कलिंग देश का पश्चिमी भाग है।
 विष्णुपुराण ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई रात एवं दिन में और जब अन्धकारपूर्ण स्थान में उसे जाना हो तब  प्रात: काल नर्मदा को नमस्कार, रात्रि में नर्मदा को नमस्कार! हे नर्मदा, तुम्हें नमस्कार; मुझे विषधर सांपों से बचाओं इस मन्त्र का जप करके चलता है तो उसे सांपों का भय नहीं होता। कूर्म पुराण एवं मत्स्य पुराण में ऐसा कहा गया है कि जो अग्नि या जल में प्रवेश करके या उपवास करके (नर्मदा के किसी तीर्थ पर या अमरकण्टक पर) प्राण त्यागता है वह पुन: (इस संसार में) नहीं आता।

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