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 प्राचीन खाड़की नगर जिसे औरंगजेब ने दिया ये नाम.....
   -शुभि मिश्रा
  मुगल सम्राट औरंगजेब के नाम पर महाराष्ट्र में एक शहर है-औरंगाबाद। औरंगाबाद शब्द का शाब्दिक अर्थ है  सिंहासन द्वारा निर्मित ।  औरंगाबाद नगर मध्य-पश्चिम महाराष्ट्र राज्य के पश्चिमी भारत में कौम नदी के तट पर स्थित। यह खाड़की नाम से प्रसिद्ध है। औरंगाबाद नगर ने भारतीय इतिहास को कई करवटें लेते देखा है। इतिहास की परस्पर विरोधी धाराओं से टकराता हुआ औरंगाबाद अपने ख़ास व्यक्तित्व को लिए आज भी खड़ा है।
यहां  अतीत और वर्तमान के बीच सम्बन्ध सूत्र स्थापित हो गया है। पहले सातवाहनों और फिर वाकाटकों के हाथों में यहां की राजसत्ता आयी। इसके बाद यहां बादामी के चालुक्य वंश और राष्ट्रकूटों का शासन रहा। ऐश्वर्यशाली यादव वंश के उदय से पूर्व यहां कल्याणी के चालुक्य वंश का राज्य था।
 इस नगर की स्थापना 1610 ई. में मलिक अम्बर ने की थी। 1626 ई. में मलिक अम्बर के पुत्र फतेह ने इस नगर का नाम अपने नाम पर फतेहनगर रख दिया। कालांतर में मुग़ल शहंशाह औरंगज़ेब ने इसके समीप ही ताजमहल जैसा बीबी का मक़बरा बनवाया और नगर का नाम खाड़की से बदलकर औरंगाबाद कर दिया। बीबी का मकबरा आगरा स्थित ताजमहल की अनुकृति है। हैदराबाद की राजधानी बन जाने की वजह से, पहले स्वतन्त्र निज़ाम का मुख्यालय रह चुके इस शाहीनगर का विकास नहीं हो सका। 1947 में हैदराबाद के अधिमिलन के बाद यह भारतीय गणराज्य का अंग बन गया।
इतिहास के अनुसार, सन् 1681 में औरंगजेब ने अपने अभियानों के लिए इस जगह को आधार बनाया था । मुगल साम्राज्य में भी इस  जगह का इस्तेमाल किया गया था और छत्रपति शिवाजी पर जीत पाने के लिए यहां रणनीतियां भी बनाई जाती थी। भारत के केंद्र में होने की वजह से इस क्षेत्र को सबसे ज्यादा सुरक्षित माना जाता था क्योंकि इस इलाके में अफगानिस्तान और मध्य एशिया के हमलावरों से खतरा कम था। औरंगजेब  की मृत्यु के बाद यह शहर निजामों के अधीन हो गया। वर्ष 1956 में इस क्षेत्र को महाराष्ट्र राज्य में विलय कर लिया गया। इस शहर में मराठी और उर्दू मुख्य भाषाएं है। इस शहर को सिटी ऑफ गेटस  भी कहा जाता है। 
इस शहर में बौद्ध धर्म का भी प्रभाव रहा। औरंगाबाद शहर से एक मील की दूरी पर सह्याद्रि की पहाडिय़ों पर औरंगाबाद की गुफाएं हैं। ये गुफाएं चालुक्य वंश के काल में छठी और सातवीं सदी ईस्वी के बीच बनायी गयीं। सभी गुफाएं बौद्ध धर्म से प्रेरित चैत्य एवं विहार हैं। परम्परा के अनुसार चैत्य गुफाएं धार्मिक पूजा-अर्चना और चिंतन-तपश्चर्या के लिए होती थी, तो विहार धर्मोपदेश के लिए सभागृह का काम करते थे।  
औरंगाबाद कलात्मक रेशमी वस्त्रों विशेषकर शॉल के लिए प्रसिद्ध है। मराठवाड़ा विश्वविद्यालय (1958) यहां का विख्यात शिक्षा केन्द्र है। जिससे अनेक महाविद्यालय संबद्ध हैं। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है घृष्णेश्वर मंदिर, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर में दौलताबाद से महज 11 किलोमीटर की दूरी पर है। ाराष्ट्र के दक्खन के पठार के मध्य में स्थित भारतीय इतिहास में ईसा पूर्व चौथी सदी से लेकर अठारहवीं सदी के बीच आये मोड़ों का प्रत्यक्ष साझीदार यह शहर आज तक अपने को सुरक्षित रख पाया  है। 
 

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