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 शरीर की कोशिकाओं की टूट-फूट भी मरम्मत करती है हल्दी
भारतीय घरों में रोजाना इस्तेमाल होने वाली हल्दी का लैटिन नाम है- करकुमा लौंगा। वहीं अंग्रेजी में इसे टरमरिक कहते हैं। इसका वानस्पतिक पारिवारिक नाम हैं-जिन्जिबरऐसे।
हल्दी भारतीय वनस्पति है। यह अदरक की प्रजाति का 5-6 फुट तक बढऩे वाला पौधा है जिसमें जड़ की गाठों में हल्दी मिलती है। हल्दी पाचन तन्त्र की समस्याओं, गठिया, रक्त-प्रवाह की समस्याओं, कैंसर, जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के संक्रमण, उच्च रक्तचाप और एलडीएल कोलेस्ट्रॉल की समस्या और शरीर की कोशिकाओं की टूट-फूट की मरम्मत में लाभकारी है। आयुर्वेद में हल्दी को एक महत्वपूर्ण औषधि कहा गया है। भारतीय परिवारों में धार्मिक रूप से इसको बहुत शुभ समझा जाता है। उच्च तापमान पर पकाने से भी हल्दी के औषधीय गुणों का नाश नहीं होता। 
भारत विश्व में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, क्योंकि विश्व में हल्दी के उत्पादन का 80 प्रतिशत से अधिक उत्पादन भारत में ही होता है। क्षेत्रफल के हिसाब से देश के मसाला उत्पादन क्षेत्र के तहत 60 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में हल्दी उगाई जाती है। हल्दी की खेती श्रीलंका, बंगला देश, पाकिस्तान, थाईलैंड, चीन, ताइवान तथा हैती, जमैका और पेरू में भी बड़े पैमाने पर होती है। भोजन को स्वाद, सुगंध और रंगत देने के अतिरिक्त, मसालों में पाचक गुण भी होता है और इनमें गठिया, दमा, (ब्रांकियल अस्थमा) घाव भरने, अपच तथा हृदय और मानसिक रोगों जैसी पुरानी बीमारियों के उपचार के गुण भी होते हैं। मसालों तथा पौधों में पादप रसायन (फाइटो केमिकल्स) जैसे तत्व होते हैं, जो मूलत: पौधों की सुरक्षा करते हैं, लेकिन अब उन्हें विटामिन के बराबर माना जाता है। और इसे, इंसानों के लिए काफी उपयोगी भी समझा जाता है। इन रसायनों के कारण ही मसाले अब दादी मां के घरेलू नुस्खों की पोटली से बाहर निकलकर, आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में पहुंच गए हैं। इस प्राचीन पदार्थों यानी मसालों के बारे में नए-नए औषधीय अनुसंधान किए जा रहे हैं और नई जानकारियां दी रही हैं। मसालों के औषधीय गुणों को अब वैज्ञानिक अनुसंधान के जरिये बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। खाद्य पदार्थों, पौष्टिकता और पुराने रोगों के बारे में किए गए हाल के अध्ययनों से पता चला है कि आहार और आहार संबंधी आदतों को बदलने से अधिकतम पौष्टिकता प्राप्त की जा सकती है और पौधों से मिलने वाले पोषक तत्वों से (फाइटोन्यूट्रीएंटस) पुरानी बीमारियों का खतरा कम किया जा सकता है। हल्दी में अनिवार्य तेल, वसीय तेल, कम मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व और हल्दी को रंग देने वाला पदार्थ करक्यूपिन होता है। करक्यूमिन में कई औषधीय गुण होते हैं। 
हल्दी के कुछ अन्य औषधीय गुणों की वैज्ञानिक रूप से जांच की गई है। इनमें कैंसर उत्पन्न करने वाले तत्वों के असर को कम करना, इसके एंटी आक्सीडेंट होना और डीएनए को होने वाले नुकसान को ठीक करने की इसकी क्षमता शामिल है। एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि चूहों में गैलेक्टोज से होने वाला मोतियाबिन्द करकुकिन से विलम्बित हो जाता है, जिससे मोतियाबिन्द के विकास की प्रक्रिया रूक जाती है। यह भी पाया गया कि हल्दी और करकुकिन से आंव (इंटेस्टोइनक मुकोसा) में विषरोधी एंजाइम बढ़ते हैं तथा पशुओं में होने वाले परिवर्तन और टयूमर बनना कम होता है।
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