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कैसे करते हैं जानवर अपना खुद इलाज ?
 कुत्ते और बिल्ली बीमार होने पर  घास खाते हैं।  कई जीव ऐसे ही अपना प्राकृतिक इलाज करते हैं।  
  चिंपाजी जब विषाणुओं के संक्रमण से बीमार होते हैं या फिर उन्हें डायरिया या मलेरिया होता है तो वे एक खास पौधे तक जाते हैं। चिंपाजियों का पीछा कर वैज्ञानिक आसपिलिया नाम के पौधे तक पहुंचे । इसकी खुरदुरी पत्तियां चिंपाजियों का पेट साफ करती हैं।  आसपिलिया की मदद से परजीवी जल्द शरीर से बाहर निकल जाते हैं।  संक्रमण भी कम होने लगता है।  तंजानिया के लोग भी इस पौधे का दवा के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। 
 काला प्लम विटेक्स डोनियाना, बंदर बड़े चाव से खाते हैं।  ये सांप के जहर से लड़ता है।  येलो फीवर और मासिक धर्म की दवाएं बनाने के लिए इंसान भी इसका इस्तेमाल करता है।  मेमना बड़ी भेड़ों को चरते हुए देखता है और काफी कुछ सीखता है।  कीड़़े की शिकायत होने पर भेड़ ऐसे पौधे चरती है जिनमें टैननिन की मात्रा बहुत ज्यादा हो।  तबियत ठीक होने के बाद भेड़ फिर से सामान्य घास चरने लगती है। 
फ्रूट फ्लाई कही जाने वाली बहुत ही छोटी मक्खियां परजीवी से लडऩे के लिए सड़ते फलों का सहारा लेती हैं।  फलों के खराब पर उनमें अल्कोहल बनता है।  फ्रूट फ्लाई ऐसे फलों में अंडे देती हैं ताकि विषाणु और परजीवियों खुद मर जाएं।  विषाणु के चलते बीमार होने पर गीजू ऐसे पौधे खाता है जिनमें एल्कोलॉयड बहुत ज्यादा हो। 
मोनार्क तितली अंडे देने के लिए मिल्कवीड पौधे का इस्तेमाल करती है।  इसके फूल में बहुत ज्यादा कार्डेनोलिडेन होता है, जो तितली के दुश्मनों के लिए जहरीला होता है।  मधुमक्खियां प्रोपोलिस बनाती हैं। ये शहद और प्राकृतिक मोम का मिश्रण है।  यह बैक्टीरिया, विषाणु और संक्रमण से बचाता है. शहद का इस्तेमाल इंसान, बंदर, भालू और चिडिय़ा भी करते हैं। 
मेक्सिको की गोरैया घोंसला बनाने के लिए सिगरेट के ठुड्डों का सहारा लेने लगी है।  रिसर्चरों के मुताबिक सिग्रेट बट्स में काफी निकोटिन होता है जो परजीवियों से बचाता है, लेकिन इसके नुकसान भी हैं।  बिल्ली और कुत्ते प्राकृतिक रूप से शुद्ध शाकाहारी नहीं हैं, लेकिन बीमार पडऩे पर दोनों खास किस्म की घास खाते हैं।  घास खाने के उनका पेट गड़बड़ा जाता है और बीमार कर रही चीज उल्टी या दस्त के साथ बाहर आ जाती है। 
कुआला पेड़ पौधे और छाल खाता है, लेकिन बीमार होने पर वो खाने के तुरंत बाद मिट्टी खाता है।  मिट्टी खुराक के अम्लीय और क्षारीय गुणों को फीका कर देती है। 
कापुचिन बंदरों के पास इंसान की तरह मच्छरदानी नहीं होती, लेकिन मच्छरों से बचने के लिए वो अपने शरीर पर खास गंध वाला पेस्ट रगड़ते हैं।  गंध से परजीवी दूर भागते हैं।  कनखजूरा खुद को एक खास तरह के जहर में लपेट लेता है।  वैज्ञानिकों को लगता है जीव जंतुओं ने लाखों साल के विकास क्रम में अपनी रक्षा के लिए कई जानकारियां जुटाई और भावी पीढ़ी को दीं। 
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