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 देखिये यह प्राचीन घड़ी किस वैदिक ज्ञान से रूबरू कराती है.....
हम समय जानने के लिए घड़ी का इस्तेमाल करते हैं। बाजार में तरह-तरह की घडिय़ां मौजूद हैं। वैदिक काल में भी समय का पता लगाने के लिए अपने तरीके थे। वैदिक घड़ी के कांटे और घंटे वैदिक ज्ञान की जानकारी भी देते हैं। ऐसी ही घड़ी के बारे में हम बता रहे हैं जो बहुत कुछ कहती है।  
इस घड़ी में 1 से 12 के स्थान पर क्रमश: ब्रह्म, अश्विनौ, त्रिगुणा, चतुर्वेदा, पञ्चप्राणा:, षड्रसा:, सप्तर्षय:, अष्टसिद्धय:, नवद्रव्याणि, दशदिश:, रुद्रा: एवं आदित्या: लिखा है। ये सभी देवताओं अथवा गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं और जिस स्थान पर वे हैं उनकी संख्या भी उतनी ही है। इनमें से 12 आदित्य, 11 रूद्र एवं 2 अश्विनीकुमारों की गिनती हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 33 कोटि देवताओं में की जाती है। इनमें एक समूह 8 वसुओं का भी है जो इस चित्र में वर्णित नहीं है। आइये इसे इसे समझते हैं। 
1.00 बजे - ब्रह्म - हमारे पुराणों में आदि एवं अंत ब्रह्म से ही माना गया है। ब्रह्म एक ही होता है जो सत्य एवं सनातन है। कहा गया है - एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति। अर्थात, ब्रह्म एक ही है, दूसरा कोई नहीं।
2.00 बजे - अश्विनौ - ये अश्विनीकुमारों का प्रतिनिधित्व करता है जो दो होते हैं - नासत्य एवं दसरा। नासत्य सूर्योदय एवं दसरा सूर्यास्त का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये 33 कोटि देवताओं में से एक हैं। यही दोनों भाई महाभारत में माद्रीपुत्र नकुल एवं सहदेव के रूप में जन्मे थे। 
3. बजे- त्रिगुणा - ये प्रत्येक जीव के तीन गुणों - सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन तीनों गुणों का मिश्रण एवं एक गुण की प्रधानता सभी जीवों में होती है। केवल श्रीहरि विष्णु इन तीन गुणों से परे, अर्थात त्रिगुणातीत माने जाते हैं। 
4.00 बजे- चतुर्वेदा - ये परमपिता ब्रह्मा द्वारा रचित चारो वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये हैं - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद।
5.00 बजे- पञ्चप्राणा: - ये जीवों के पांच प्राणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मानव शरीर को 5 प्राण एवं 5 उप-प्राण में विभक्त किया गया है। 5 मुख्य प्राण हैं - अपान, समान, प्राण, उदान एवं व्यान। उसी प्रकार 5 उप-प्राण हैं - देवदत्त, वृकल, कूर्म, नाग एवं धनञ्जय।
6.00 बजे- षड्रसा: - ये छह रसों का प्रतिनिधित्व करते हैं (षड्रसा: = षड + रस)। किसी भी वास्तु का स्वाद इन्ही 6 रसों के कारण अलग-अलग होता है। ये हैं - मधुर (मीठा), अम्ल (खट्टा), लवण (नमकीन), कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा) एवं कसाय (कसैला)। 
7.00 बजे- सप्तर्षय: - ये सप्तर्षियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वैसे तो प्रत्येक मन्वन्तर में सप्तर्षि अलग-अलग होते हैं किन्तु प्रथम स्वयंभू मनु के काल के सप्तर्षियों, जो ब्रह्मदेव के मानस पुत्र हैं, को प्रधानता दी जाती है। ये हैं - मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य एवं वशिष्ठ। 
8.00 बजे- अष्टसिद्धय: - ये अष्ट सिद्धियों का प्रतिनिधित्व करती है। महाबली हनुमान के पास अष्ट सिद्धि थी। इसके बारे में कहा गया है - अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा। प्राप्ति: प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धय:।। अर्थात, अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व - ये 8 सिद्धियाँ "अष्टसिद्धि" कहलाती हैं।
9.00 बजे- नवद्रव्याणि - ये नौ निधियों का प्रतिनिधित्व करती है। महावीर हनुमान एवं यक्षराज कुबेर इन नौ निधियों के स्वामी हैं, किन्तु जहाँ कुबेर इन नौ निधियों को किसी को प्रदान नहीं कर सकते, हनुमान इसे दूसरे को प्रदान कर सकते हैं। हनुमान की नौ निधियां हैं - रत्न किरीट, केयूर, नूपुर, चक्र, रथ, मणि, भार्या, गज एवं पद्म। कुबेर की नौ निधियां हैं - पद्म, महापद्म, नील, मुकुंद, नन्द, मकर, कच्छप, शंख एवं खर्व।
10.00 बजे- दशदिश: - ये दसो दिशाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रत्येक दिशा के स्वामी को दिक्पाल कहते हैं। ये हैं - पूर्व (इंद्र), आग्नेय (अग्नि), दक्षिण (यम), नैऋत्य (सूर्य), पश्चिम (वरुण), वायव्य (वायु), उत्तर (कुबेर), ईशान (सोम), उर्ध्व (ब्रह्मा) एवं अधो (अनंत)।
11.00 बजे- रुद्रा: - ये 11 रुद्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये सभी भगवान शंकर के रूप माने जाते हैं और 33 कोटि देवताओं में स्थान पाते हैं। ये हैं - शम्भू, पिनाकी, गिरीश, स्थाणु, भर्ग, भव, सदाशिव, शिव, हर, शर्व एवं कपाली।
12.00 बजे- आदित्या: - ये 12 आदित्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्ही आदित्यों को हम आम भाषा में देवता कहते हैं। ये महर्षि कश्यप एवं दक्षपुत्री अदिति के पुत्र हैं हुए 33 कोटि देवताओं में स्थान रखते हैं। ये हैं - इंद्र, धाता, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग, विवस्वान (सूर्य), अंशुमान, मित्र, वरुण एवं विष्णु (वामन)।
 

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