गायों की वजह से मिली थी दुनिया को चेचक से मुक्ति!
विज्ञान की सबसे महान उपलब्धियों में से एक 8 मई 1980 को हासिल हुई थी, जिस दिन चेचक के वायरस का खात्मा हुआ था। उससे पहले, चेचक ने मानव इतिहास की एक अलग ही शक्ल बना दी थी. दुनिया भर में लाखों लोग मारे गए थे।
अकेले 20वीं सदी में चेचक वायरस से कोई 30 करोड़ लोगों की जान गई थीे। वैज्ञानिकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य का ख्याल रखने वालों की लंबी और कठिन कोशिशों के सैकड़ों साल बाद 1970 के दशक मे विश्वव्यापी टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किए गये जिसने चेचक का अंत किया। एक सवाल सवाल यह भी है कि दुनिया का पहला टीका कैसे बनाया गया था? इन टीके को बड़ी मात्रा में बचाए रखना और मंकीपॉक्स जैसी बीमारियों में इस्तेमाल करना क्यों जरूरी है?
काउपॉक्स- लोक कथाओं के सबक
टीकों का वैज्ञानिक आधार वास्तव में लोककथाओं से आता है। 18वीं सदी में यह अफवाह थी कि इंग्लैंड में ग्वालिनों को अक्सर काउपॉक्स हो जाता है लेकिन चेचक उनसे दूर रहता है। काउपॉक्स यानी गोशीतला, चेचक जैसी ही बीमारी है लेकिन उससे हल्की है और मौत की आशंका भी कम रहती है । अब माना जाता है कि चेचक के वायरस जैसे ही एक वायरस से यह भी फैलती है। जब एडवर्ड जेनर नाम के एक डॉक्टर को इन कहानियों का पता चला तो उन्होंने टीकाकरण पर अपने काम के लिए काउपॉक्स पर प्रयोग करना शुरू किया। 1790 के दशक में जेनर ने एक नौ साल के बच्चे की त्वचा में काउपॉक्स के पस की एक खुराक को पहुंचाने में सुई का इस्तेमाल किया। आगे चलकर बच्चे को चेचक हुआ तो उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता मौजूद थी।
संक्रमण से बचाव के खिलाफ पस का इस्तेमाल करने वाले जेनर पहले व्यक्ति नहीं थे। तुर्की, चीन, अफ्रीका और भारत में 10वी सदी के दौरान ही ऐसी विधियां अलग अलग ढंग से ईजाद की जा चुकी थीं। चीन के डॉक्टर नाक तक सूखी हुई चेचक सामग्री फूंक मार कर उड़ाते थे, तुर्की और अफ्रीकी डॉक्टर, जेनर की तरह त्वचा के भीतर पस को पहुंचाते थे। ये तरीके बेशक जोखिम भरे थे , लेकिन लोगों ने चेचक से बचाव के बदले, हल्की बीमारी और मौत की कम आशंका को स्वीकार किया। अपने स्रोत के बावजूद, जेनर के शोध के बाद ही वैज्ञानिक और चिकित्सा जगत ने चेचक को रोकने में पस की संभावित भूमिका पर गौर किया। जेनर के कार्य ने चेचक से बचाव का एक प्रमाणित और कम जोखिम भरा तरीका विकसित किया जो बीमारी के इलाज में एक मील का पत्थर बना।
टीकाकरण का विस्तार
19वीं सदी के मध्य और आखिरी दिनों में टीकाकरण की मांग पूरी दुनिया में फैल गई। इंग्लैंड, जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों में तमाम जनता के लिए टीकाकरण मुफ्त था और बाद में इसे अनिवार्य कर दिया गया।
चेचक का आधुनिक टीका 1950 के दशक में आया था। ज्यादा विकसित वैज्ञानिक तरीकों का मतलब था कि उसे अलग करने और फ्रीज कर सुखाने से लंबे समय तक संभाल कर रखा जा सकता था और दुनिया भर में उसका एक समान वितरण किया जा सकता था। चेचक के नये टीके में दरअसल चेचक का वायरस नहीं बल्कि उसके जैसा लेकिन उसके कम नुकसानदेह पॉक्सवायरस, वैक्सीनिया था। काउपॉक्स के टीकों की तरह वैक्सीनिया से त्वचा में एक छोटा सा दाना उभर आता है जहां वायरस अपनी प्रतिकृति बनाता है। शरीर की रक्षा प्रणाली फिर उसे पहचान कर नष्ट करना सीख जाती है। चेचक से लडऩे के इस असरदार, सुरक्षित तरीके की मदद से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1950 के दशक में अपना पहला चेचक उन्मूलन अभियान शुरू किया था।
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