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अंतरिक्ष में जीवन की नयी उम्मीद? वैज्ञानिकों ने पुष्टि के लिए और अध्ययन पर जोर दिया
नयी दिल्ली. क्या पृथ्वी ब्रह्मांड में अकेला ऐसा ग्रह है, जहां जीवन मौजूद है? कैब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन से उम्मीद की किरण जगी है कि संभवत: ऐसा नहीं है और पृथ्वी से करीब 120 प्रकाश वर्ष दूर एक ऐसा खगोलीय पिंड हो सकता है, जहां जीवन मौजूद हो सकता है। पिछले सप्ताह ‘एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स' में प्रकाशित अध्ययन में के2-18बी नामक सुदूर ग्रह पर जीवन के संकेत मिले हैं। लेकिन खगोलविद इसे लेकर संशय में हैं और उनका कहना है कि अध्ययन के परिणामों और कार्यप्रणाली की अन्य शोधकर्ताओं द्वारा भी जांच-पड़ताल की जानी चाहिए। शोध के अनुसार, ‘एक्सोप्लैनेट' के वायुमंडल पर डाइमिथाइल सल्फाइड और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड अणुओं के निशान पाए गए हैं। पृथ्वी पर, ये अणु समुद्री जीवों द्वारा उत्पादित माने जाते हैं। ‘एक्सोप्लैनेट' वे ग्रह होते हैं, जो हमारे सौर मंडल से बाहर, अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं।
 दिलचस्प बात यह है कि सबसे आम परिकल्पना यह है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति समुद्र में हुई।
 खगोल भौतिकी और बाह्यग्रहीय विज्ञान के प्रोफेसर निक्कू मधुसूदन के नेतृत्व वाली अनुसंधान टीम का दावा है कि यह अध्ययन ‘तीन सिग्मा' के महत्व का साक्ष्य प्रदान करता है कि सौरमंडल के बाहर जीवन के सबसे मजबूत संकेत 99.7 फीसदी तक आकस्मिक नहीं हैं। पिछले सप्ताह  मधुसूदन ने कहा कि अध्ययन के निहितार्थों के दायरे को देखते हुए, उनकी टीम भविष्य के शोधों में परिणामों की मजबूती से पुष्टि करने की कोशिश कर रही है। राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईएसईआर), भुवनेश्वर के पृथ्वी एवं ग्रह विज्ञान स्कूल के रीडर जयेश गोयल का मानना ​​है कि अध्ययन के निष्कर्ष एक बड़ा कदम हैं और ‘‘यह बाह्यग्रहों के वायुमंडल और उनके रहने योग्य होने के बारे में हमारी समझ की सीमाओं को आगे बढ़ाता है।'' उन्होंने बताया, ‘‘के2-18बी के वायुमंडल पर किए गए अवलोकनों से यह पता चलता है कि उप-नेप्च्यून या सुपर-अर्थ एक्सोप्लैनेट की इस श्रेणी को किस हद तक चिह्नित किया जा सकता है, क्योंकि इन लक्ष्यों का अध्ययन करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।'' अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय में नासा सागन फेलो रयान मैकडोनाल्ड ने ‘ बताया, ‘‘यह बाह्यग्रह विज्ञान के सामान्य मानकों के अनुसार 'पता लगाना' नहीं है।'' अमेरिका के राइस विश्वविद्यालय से एक्सोप्लैनेट पर केंद्रित पीएचडी करने वाले खगोल वैज्ञानिक आसा स्टाहल ने कहा कि अध्ययन में दूर स्थित ग्रह के वायुमंडल को देखने के लिए एक ‘‘अत्यंत शक्तिशाली उपकरण'' का उपयोग किया गया है। मधुसूदन ने इस बात पर जोर दिया कि शोधकर्ताओं की टीम अध्ययन के परिणामों पर विचार करेगी। उन्होंने यह भी कहा, ‘‘जब आपको बड़ी सफलताएं मिलती हैं, तो आप वास्तव में आश्वस्त होना चाहते हैं, क्योंकि यह विज्ञान और समाज के मूल ढांचे को मौलिक रूप से बदल देता है।'' मधुसूदन की टीम भविष्य के अनुसंधान में इस पहलू पर विचार कर रही है, लेकिन अणुओं की उत्पत्ति के उत्तर विशेष रूप से महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं, क्योंकि अध्ययनों में धूमकेतु और तारों के बीच के स्थान में डाइमिथाइल सल्फाइड पाया गया है। गोयल ने कहा कि वेब टेलीस्कोप का उपयोग करके के2-18बी के और अधिक अवलोकन, साथ ही डाइमिथाइल सल्फाइड और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड के प्रयोगशाला स्पेक्ट्रा के विस्तृत अध्ययन से अध्ययन के परिणामों को पुष्ट करने या उन पर सवाल खड़ा करने में मदद मिल सकती है। 
 

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