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  पिंजरे में जन्मे पक्षियों के पंख छोटे हो जाते हैं
 ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि पिंजरे में जन्मे पक्षियों का जीवन सामान्य नहीं होता।  ईकोलॉजी लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि पिंजरे में जन्मे पक्षियों के पंखों का आकार भी बदल सकता है और उनकी मुश्किलें सहने की क्षमता भी प्रभावित होती है। 
 शोधकर्ता डॉ. डिजान स्टोयानोविच कहते हैं कि प्रजातियों के संरक्षण के लिए पिंजरों में प्राणियों का प्रजनन एक अहम उपाय है, लेकिन इस तरीके का उनके शारीरिक आकार-प्रकार पर असर पड़ सकता है. शोधकर्ताओं ने जिन पक्षियों का अध्ययन किया, उनमें नारंगी पेट वाला तोता भी था।  यह प्रजाति खतरे में है। 
 ऑस्ट्रेलिया में जिन प्रजातियों को खतरे में होने के कारण सुरक्षित वातावरण में प्रजनन कराया जाता है, उनमें नारंगी पेट वाला तोता भी शामिल है और लंबे समय से इस प्रजाति को संरक्षण में रखा गया है।  इस प्रजाति को बचाए रखने के लिए हर साल तय संख्या में पक्षियों को आजाद किया जाता है, जो मारे गए पक्षियों की जगह लेते हैं। 
 डॉ. स्टोयानोविच कहते हैं, "पहले हम दिखा चुके हैं कि कैद में रहने से नारंगी पेट वाले तोते के परों का आकार बदल सकता है।  हमें संदेह है कि इस कारण उनके लिए लंबी उड़ानें मुश्किल हो जाती हैं, लेकिन नए अध्ययन में हमें पहली बार ऐसे सीधे प्रमाण मिले हैं कि कैद में इनके परों का आकार बदल गया और जंगल में छोड़े जाने के बाद प्रवासन के लिए लंबी उड़ानों में उनकी सफलता की दर कम हो गई। "
 वैसे तो सभी नारंगी पेट वाले सभी युवा तोतों में प्रवासन के लिए उड़ान की सफलता दर कम पाई गई लेकिन पिंजरों में जन्मे छोटे परों वाले पक्षियों के इन उड़ानों के दौरान बचने की संभावना जंगल में पैदा हुए तोतों के मुकाबले 2.7 गुणा कम पाई गई।  शोध में चार अन्य पक्षियों के परों में बदलाव देखा गया जिसके बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि कैद का पक्षियों में पहले लगाए गए अनुमान से कहीं ज्यादा असर होता है। 
 डॉ. स्टोयानोविच बताते हैं, "कैद में रखे गए जानवरों में होने वाले शारीरिक बदलावों की यह झलक मात्र हो सकती है और इसे नजरअंदाज करना बहुत आसान है, लेकिन आजाद किए जाने के बाद उन पर इसका बहुत बड़ा असर हो सकता है।  अगर हम प्रजातियों के संरक्षण को वन्य जीवन की मदद के लिए ज्यादा कारगर बनाना चाहते हैं तो हमें इस बारे में जागरूक होना चाहिए और ऐसे रास्ते खोजने चाहिए जिनसे पिंजरों में उन पर कम से कम असर हो।  "
 हालांकि इस अध्ययन से यह स्पष्ट नहीं होता कि पक्षियों में ये बदलाव क्यों आए।  यानी, यह बंद वातावरण का असर था या आनुवांशिक वजहों से ये बदलाव हुए. डॉ. स्टोयानोविच के मुताबिक कई और सवाल भी अभी अनुत्तरित हैं, जैसे कि क्या एक बार आजाद किए जाने के बाद पक्षियों के परों का आकार वापस सामान्य हो सकता है या उडऩे के प्रशिक्षण से उन्हें मदद मिल सकती है। वह कहते हैं, "इन सवालों के जवाब खोजने जरूरी हैं ताकि हम यह जान सकें कि संरक्षित माहौल में प्राणी प्रजनन किस तरह से हो कि वे वन्य जीवन में जीने के लिए तैयार हो सकें। "
 

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