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मां को मिला पौष्टिक आहार उसके पोते-पोतियों में एक स्वस्थ मस्तिष्क को सुनिश्चित कर सकता है: अध्ययन

नयी दिल्ली.  मोनाश विश्वविद्यालय ने आनुवांशिक मॉडल का इस्तेमाल कर एक अध्ययन किया है, जिसमें पाया गया है कि अपनी गर्भावस्था की शुरुआत में सेब और जड़ी-बूटियों का सेवन करने वाली महिलाएं अपने बच्चों व पोते-पोतियों के मस्तिष्क के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकती हैं। यह अध्ययन एक परियोजना का हिस्सा है। अध्ययन में पाया गया कि एक गर्भवती महिला का आहार ना केवल उसके बच्चे के बल्कि उसके पोते-पोतियों के मस्तिष्क को भी प्रभावित कर सकता है। ‘नेचर सेल बायोलॉजी' में प्रकाशित मोनाश बायोमेडिसिन डिस्कवरी इंस्टीट्यूट के अध्ययन में पाया गया कि कुछ खाद्य पदार्थ मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में गिरावट को रोकने में मदद कर सकते हैं। इस अध्ययन में आनुवंशिक मॉडल के रूप में एक तरह के कीड़े ‘राउंडवॉर्म' (कैनोर्हाडाइटिस एलिगेंस) का उपयोग किया गया क्योंकि उनके कई जीन मनुष्यों में भी पाए जाते हैं, जिससे मानव कोशिकाओं के संदर्भ में अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है।

     अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि सेब और जड़ी-बूटियों जैसे तुलसी, गुलमेंहदी (रोजमेरी), अजवायन और तेजपात में मौजूद एक निश्चित अणु ने मस्तिष्क को ठीक से काम करने में मदद की। वरिष्ठ प्रोफेसर रोजर पोकॉक ने अपनी टीम के साथ मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं पर अध्ययन किया। ये कोशिकाएं एक दूसरे से करीब साढ़े आठ लाख किलोमीटर लंबी एक तरह की केबल से जुड़ी होती हैं जिसे ‘एक्सॉन' कहा जाता है। पोकॉक ने बताया कि किसी समस्या के कारण तंत्रिका कोशिकाएं ‘एक्सॉन' कमजोर हो जाती हैं, तो मस्तिष्क की शिथिलता और ‘न्यूरोडीजेनेरेशन' की समस्या पैदा हो सकती है। उन्होंने कहा कि उनकी टीम ने एक कमजोर ‘एक्सॉन' वाले आनुवंशिक मॉडल का उपयोग किया जो जानवरों की उम्र बढ़ने के साथ टूट जाते हैं। पोकॉक ने कहा, "हमने यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या आहार में पाए जाने वाले प्राकृतिक उत्पाद इन कोशिकाओं को स्थिर करके टूटने से बचा सकते हैं।” उन्होंने कहा कि हमने अध्ययन में पाया कि सेब और जड़ी-बूटियों का सेवन करने वाली महिलाएं अपने बच्चों व पोते-पोतियों के मस्तिष्क के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकती हैं। पोकॉक ने कहा, ‘‘हमने सेब और जड़ी-बूटियों में पाए जाने वाले एक अणु की पहचान की है जो ‘एक्सॉन' को कमजोर होने से बचाता है...उर्सोलिक अम्ल। हमने पाया कि यह अम्ल खास तरह की वसा बनता है जो एक्सॉन को कमजोर होने से बचाता है। यह वसा स्फिंगोलिपिड के रूप में जानी जाती है जो मां की आंत से उसके अंडाणु में पहुंचती है और फिर दूसरी पीढ़ी तक पहुंच जाती है।

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