सौ साल पहले पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की आबादी का आगाज हुआ था
पन्ना । कभी बाघ शून्य हो चुका मध्यप्रदेश का पन्ना टाईगर रिजर्व इस वर्ष अपनी विश्व में मिसाल बन चुकी सफलता का दशक वर्ष मना रहा है। लॉकडाउन के चलते पन्ना टाईगर रिजर्व में इस साल 16 अप्रैल को होने वाला मुख्य समारोह स्थगित कर दिया गया। समारोह में देश और विदेश के वन्यप्राणी विशेषज्ञ बाघ पुन: स्थापना में सहयोग देने वाले स्थानी नागरिक और जनप्रतिनिधि भाग लेने वाले थे ।
पन्ना टाईगर रिजर्व के लिये 16 अप्रैल 2010 ऐतिहासिक दिन है जब कान्हा टाईगर रिजर्व से लाई गई बाघिन टी-2 ने पहली बार शावकों को जन्म देकर रिजर्व में पुन: बाघों की आबादी का सुखद आगाज किया था। यह बहुत बड़ी सफलता थी, जिसकी दुनियाभर के वन्यप्राणी विशेषज्ञों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। तभी से पन्ना को बाघ पुन: स्थापना में विश्वगुरू का दर्जा मिला आज रिजर्व में छोटे-बड़े 50 से अधिक बाघ-बाघिन है।
पन्ना भारत का बाइसवां बाघ अभयारण्य है और मध्यप्रदेश का पांचवां। रिजर्व विंध्यन रेंज में स्थित है और यह राज्य के उत्तर में पन्ना और छतरपुर जिलों में फैला हुआ है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान 1981 में बनाया गया था। इसे 1994 में भारत सरकार द्वारा एक परियोजना टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। राष्ट्रीय उद्यान में 1975 में बनाए गए पूर्व गंगऊ वन्यजीव अभयारण्य के क्षेत्र शामिल हैं। इस अभयारण्य में वर्तमान उत्तर और दक्षिण के क्षेत्रीय वन शामिल हैं। पन्ना वन प्रभाग, जिसके निकटवर्ती छतरपुर वन प्रभाग का एक भाग बाद में जोड़ा गया था। पन्ना जिले में पार्क के आरक्षित वन और छतरपुर की ओर कुछ संरक्षित जंगल अतीत में पन्ना, छतरपुर और बिजावर रियासतों के तत्कालीन शासकों के शिकारगाह थे।
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