ITR-7 फॉर्म हुए बड़े बदलाव, रिटर्न फाइल करने से जान लें पूरी डीटेल
नई दिल्ली। हाल ही में सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (CBDT) ने असेसमेंट ईयर (AY) 2025-26 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म ITR-7 को नोटिफाई किया है। यह घोषणा 9 मई, 2025 को नोटिफिकेशन नंबर 46/2025 के तहत की गई, जो फाइनेंस एक्ट 2024 के बदलावों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। ITR-7 उन खास संस्थाओं के लिए है, जो टैक्स में छूट का दावा करती हैं। इनमें मुख्य रूप से चैरिटेबल ट्रस्ट, धार्मिक संस्थाएं, पॉलिटिकल पार्टियां और रिसर्च ऑर्गनाइजेशंस शामिल हैं। CBDT ने इस साल फॉर्म में कुछ नए बदलाव किए गए हैं, जो इसे और पारदर्शी व नियमों को आसान बनाते हैं। आइए, हम आसान भाषा में समझते हैं कि ITR-7 में क्या नया है, इसे कौन भर सकता है, और यह बाकी ITR फॉर्म्स से कैसे अलग है।
ITR-7 फॉर्म में इस बार क्या बदलाव हुए?
CBDT ने ITR-7 को अपडेट करते हुए कुछ अहम बदलाव किए हैं, ताकि टैक्स छूट पाने वाली संस्थाओं की जानकारी को और बेहतर तरीके से ट्रैक किया जा सके। ये बदलाव फाइनेंस एक्ट 2024 के हिसाब से हैं और टैक्स सिस्टम को और पारदर्शी बनाने की कोशिश है। नीचे कुछ मुख्य बदलावों के बारे में बताया गया है:
कैपिटल गेन्स को दो हिस्सों में बांटा गया
इस बार ITR-7 में कैपिटल गेन्स (पूंजीगत लाभ) को दो हिस्सों में बांटकर दिखाना होगा। अगर आपने कोई प्रॉपर्टी या शेयर बेचे हैं, तो आपको 23 जुलाई, 2024 से पहले और बाद के गेन्स को अलग-अलग दिखाना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि फाइनेंस एक्ट, 2024 में कैपिटल गेन्स के नियमों में बदलाव हुए हैं। इससे टैक्स की गणना को और सटीक किया जा सकेगा।
शेयर बायबैक पर कैपिटल लॉस का नया नियम
अब अगर कोई संस्था शेयर बायबैक से कैपिटल लॉस (पूंजीगत नुकसान) दिखाना चाहती है, तो वह ऐसा कर सकती है, बशर्ते उसने बायबैक से मिलने वाले डिविडेंड को “अन्य स्रोतों से आय” (income from other sources) के तौर पर दिखाया हो। यह नियम 1 अक्टूबर, 2024 के बाद के लेनदेन पर लागू होगा। पहले बायबैक पर डबल टैक्सेशन की समस्या थी, जिसे इस बदलाव से ठीक करने की कोशिश की गई है।
फंड के इस्तेमाल की ज्यादा डिटेल
ITR-7 में अब फंड के इस्तेमाल को और बारीकी से दिखाना होगा। खासकर चैरिटेबल ट्रस्ट्स को अपने खर्चों को प्रोग्राम और गैर-प्रोग्राम खर्चों में बांटकर बताना होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि टैक्स छूट का दावा करने वाली संस्थाएं अपने फंड का सही इस्तेमाल कर रही हैं।
डिजिटल और ऑडिटेबल रिपोर्टिंग
इस बार ITR-7 को और डिजिटल और ऑडिट के लिए तैयार किया गया है। इसका मतलब है कि संस्थाओं को अपनी फाइनेंशियल जानकारी को और व्यवस्थित तरीके से रखना होगा, ताकि टैक्स डिपार्टमेंट उनकी जांच आसानी से कर सके। यह कदम पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए उठाया गया है।
ITR-7 कौन भर सकता है?
ITR-7 उन खास संस्थाओं के लिए बनाया गया है, जो इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की कुछ खास धाराओं के तहत रिटर्न फाइल करती हैं। यह फॉर्म उन लोगों या संगठनों के लिए है, जो टैक्स में छूट का दावा करते हैं। नीचे बताया गया है कि कौन-कौन ITR-7 भर सकता है:
चैरिटेबल और धार्मिक ट्रस्ट: जो संस्थाएं धारा 139(4A) के तहत प्रॉपर्टी से होने वाली आय को चैरिटेबल या धार्मिक कामों के लिए इस्तेमाल करती हैं, उन्हें यह फॉर्म भरना होगा। इसमें वो ट्रस्ट शामिल हैं, जो धारा 11 के तहत टैक्स छूट का दावा करते हैं।
पॉलिटिकल पार्टियां: धारा 139(4B) के तहत पॉलिटिकल पार्टियों को ITR-7 भरना जरूरी है। यह नियम उन पार्टियों पर लागू होता है, जो धारा 13A के तहत टैक्स छूट लेती हैं।
रिसर्च ऑर्गनाइजेशंस और इंस्टीट्यूशंस: धारा 139(4C) के तहत रिसर्च एसोसिएशंस, न्यूज एजेंसीज, और धारा 10 की कुछ खास क्लॉज के तहत छूट पाने वाली संस्थाएं, जैसे यूनिवर्सिटीज या अन्य शैक्षिक संस्थान, ITR-7 फाइल करेंगी।
अन्य संस्थाएं: धारा 139(4D) के तहत नॉट-फॉर-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशंस जैसी कुछ खास संस्थाएं, जो टैक्स छूट का दावा करती हैं, उन्हें भी यह फॉर्म भरना होगा।
इन सभी संस्थाओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे टैक्स छूट के नियमों का पालन कर रही हैं, और उनकी फाइनेंशियल जानकारी सही और पारदर्शी हो।
ITR-7 बाकी ITR फॉर्म्स से कैसे अलग है?
ITR-7 को खास तौर पर उन संस्थाओं के लिए डिजाइन किया गया है, जो टैक्स में छूट का दावा करती हैं, जबकि बाकी ITR फॉर्म्स अलग-अलग तरह के टैक्सपेयर्स के लिए हैं। आइए, इसे बाकी फॉर्म्स से तुलना करके समझते हैं:
ITR-1 (सहज): यह फॉर्म उन रेजिडेंट इंडिविजुअल्स के लिए है, जिनकी सालाना आय 50 लाख रुपये तक है। इसमें सैलरी, एक घर की प्रॉपर्टी, और अन्य स्रोतों (जैसे ब्याज) से आय शामिल हो सकती है। अगर लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) 1.25 लाख रुपये तक हैं, तो उसे भी ITR-1 में दिखाया जा सकता है। लेकिन यह फॉर्म उन लोगों के लिए नहीं है, जो कंपनी डायरेक्टर हैं या जिनके पास विदेशी संपत्ति है। ITR-7 के मुकाबले यह ज्यादा आसान और आम लोगों के लिए है।
ITR-2: यह फॉर्म उन इंडिविजुअल्स और HUF के लिए है, जिनकी आय बिजनेस या प्रोफेशन से नहीं है, लेकिन उनके पास कैपिटल गेन्स, एक से ज्यादा प्रॉपर्टी, या विदेशी संपत्ति है। ITR-7 के मुकाबले यह फॉर्म व्यक्तिगत टैक्सपेयर्स के लिए है, न कि टैक्स छूट वाली संस्थाओं के लिए।
ITR-3: यह फॉर्म उन इंडिविजुअल्स और HUF के लिए है, जिनकी आय बिजनेस या प्रोफेशन से है। अगर कोई पार्टनरशिप फर्म में पार्टनर है, तो भी उसे ITR-3 भरना होगा। ITR-7 के मुकाबले यह फॉर्म उन लोगों के लिए है, जो टैक्स छूट का दावा नहीं करते।
ITR-4 (सुगम): यह फॉर्म रेजिडेंट इंडिविजुअल्स, HUF, और फर्म्स (LLP को छोड़कर) के लिए है, जिनकी आय 50 लाख रुपये तक है और जो प्रेसम्पटिव टैक्सेशन (धारा 44AD, 44ADA, 44AE) के तहत रिटर्न फाइल करते हैं। इसमें भी 1.25 लाख रुपये तक के LTCG को दिखाया जा सकता है। लेकिन ITR-7 की तरह यह चैरिटेबल या टैक्स छूट वाली संस्थाओं के लिए नहीं है।
ITR-5: यह फॉर्म फर्म्स, LLP, AOP, BOI और आर्टिफिशियल ज्यूरिडिकल पर्सन्स के लिए है। लेकिन यह उन संस्थाओं के लिए नहीं है, जो ITR-7 के तहत रिटर्न फाइल करती हैं, जैसे चैरिटेबल ट्रस्ट या पॉलिटिकल पार्टियां।
ITR-6: यह फॉर्म उन कंपनियों के लिए है, जो धारा 11 के तहत टैक्स छूट का दावा नहीं करतीं। इसमें डोमेस्टिक और फॉरेन कंपनियां शामिल हैं। ITR-7 के मुकाबले यह फॉर्म प्रॉफिट कमाने वाली कंपनियों के लिए है।
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