आओ चलें बापू के गांव
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर विशेष
आलेख-मंजूषा शर्मा
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की इस साल 2 अक्टूबर को 151 वीं जयंती मनाई जाएगी। पूरी दुनिया में भारत देश के साथ महात्मा गांधी का नाम इस तरह से रच बस गया है, जैसे दोनों के बिना एक दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। बचपन से हम महात्मा गांधी को पढ़ते - गुनते आ रहे हैं। कभी उनकी जीवनी, कभी कृतित्व- आदर्श, कभी भाषण और न जाने क्या- क्या है, हर बार इनमें कुछ नया सीखने को मिल जाता है। आज भी महात्मा गांधी का नाम लेते ही होठों पर एक ही वाक्य रटा- रटाया सा याद आ जाता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। बचपन से याद उस जगह में जब जाने का मौका मिला, तो जिज्ञासा और भी बढ़ गई। शायद बचपन में जाते तो पोरबंदर के महत्व को इतनी मजबूती से नहीं समझ पाते।
महात्मा गांधी का यह घर अब एक मंदिर जैसे संग्रहालय का रूप ले चुका है। यहां पर उनके परिवार वालों के अलावा, उनके जीवन से जुड़े बहुत से वाकये और तस्वीरें लोगों के लिए कौतूहल का विषय रहती हैं। बापू के जन्म स्थान, उनके तिमंजिला पैतृक निवास को देखने के लिए आज भी बड़ी संख्या में लोग रोजाना पहुंचते हैं। इसका नाम कीर्ति मंदिर है। अब यहां पर कोई नहीं रहता, इसे अब एक पुरातात्विक स्थल- विरासत के रूप में सहेज कर रख दिया गया है। इस घर को महात्मा गांधी के प्रपितामह यानी दादा के पिता हरिजीवन दास ने 1777 में एक स्थानीय विधवा महिला मांड़बाई से खरीदा था। उस समय वह मकान सिर्फ एक मंजिला था। फिर जैसे - जैसे परिवार बढ़ता गया, पीढिय़ों की जरूरतों के अनुसार घर का विस्तार मंजिलों में होता गया और एक दिन तिमंजिला मकान खड़ा हो गया। गांधीजी का जन्म भले ही इस मकान में हुआ था, लेकिन उनका ज़्यादातर बचपन राजकोट में बीता। दरअसल उनके पिता करमचंद गांधी और दादा उत्तमचंद गांधी पोरबंदर स्टेट के दीवान हुआ करते थे।
इस मकान को देखने के बाद इसके बारे में और भी अधिक जानने की इच्छा ने पोरबंदर में एक दिन और ठहरने को बेचैन कर दिया। खोजखबर के बाद पता चला कि इस घर का विस्तार कीर्ति मंदिर के रूप में नानजी कालिदास मेहता और पोरबंदर के महाराजा नटवर सिंह ने बापू की अनुमति से करवाया था। यह वर्ष 1944 की बात थी, जब बापू ने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया था। नानजी कालिदास मेहता पोरबंदर के मशहूर उद्योगपति थे। नानजी कालिदास मेहता के पोते जय मेहता से मशहूर अभिनेत्री जूही चावला ने शादी की है।
भारत छोड़ो आंदोलन के कारण बापू को आगा खां पैलेस में नजरबंद किया गया था। रिहाई के बाद उनकी तबीयत काफी खराब थी। उनकी तबीयत को देखते हुए ही नानजी कालिदास मेहता उन्हें अपने पंचगिनी स्थित फार्म हाउस ले आए थे। इसी दौरान एक दिन नानजी मेहता और पोरबंदर के महाराजा नटवर सिंह बापू के पास पहुंचे और उनके मकान को विस्तार देने की इजाज़त मांगी। साथ ही उन्हें मकान को लेकर अपनीे भावनाओं से भी अवगत कराया। बापू ने उनकी इच्छा का सम्मान किया और इसके लिए हामी भर दी। उस वक्त कस्तूरबा गांधी भी स्वर्ग सिधार चुकी थी। परिवार के अन्य सदस्यों ने इस फैसले पर आपत्ति नहीं की। लिहाजा यह मकान नानजी मेहता और नटवर सिंह को बेच दिया गया। बताया जाता है कि रजिस्ट्रेशन के कागज़ों पर खुद बापू ने दस्तखत किए थे।
इसके बाद इस मकान का विस्तार शुरू हुआ। मकान से सटाकर एक मंदिरनुमा इमारत बनाई गई, जिसे कीर्ति मंदिर नाम दिया गया। यह सिर्फ कहने को मंदिर है, क्योंकि इसमें भारत के सभी प्रमुख धर्मों के प्रतीकों को जगह दी गई है। महात्मा गांधी हमेशा धर्मनिरपेक्षता की बात कहा करते थे। उनकी भावनाओं के अनुरूप ही इस मंदिर में सभी धर्मों के अंश दिख जाते हैं। कहीं मंदिर का गुंबद बना है, कहीं मस्जि़द की जालियां लगी हैं, कहीं बौद्ध प्रतीक बने हैं। लेकिन यह सब पूरा होते महात्मा गांधी नहीं देख पाए। 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। बापू का 79 साल की उम्र में निधन हुआ था, इसलिए कीर्ति मंदिर को 79 फीट ऊंचा ही बनाया गया है।
वर्ष 1949 में इस मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। इसमें प्रवेश करते ही महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी यादें परत- दर - परत सामने आती चली जाती हैं। एक बड़े से अहाते में इसे संग्रहालय का रूप दिया गया है। प्रवेश करते ही तीन ओर गलियारा नजर आता है, तो बाईं ओर महात्मा गांधी के जन्मस्थान उनके पैतृक घर को उसके प्राचीन स्वरूप में यथावत रखा गया है। लेकिन समय की मार अब मकान में नजर आने लगी है। मकान की सीढिय़ां अब भी लकडिय़ों की हैं। छत पर लकड़ी का पटाव और हर मंजिले में पारंपरिक गुजराती घरों की पहचान बन चुके लकड़ी के पाटे वाले झूले के लिए जतन से छत पर निकाले गए लोहे के कुंदे नजर आते हैं। सीढिय़ां चढ़ते वक्त परेशानी न हो, इसके लिए पकडऩे को गांठ वाली रस्सियां। सामने प्रवेश करते हुए ही बाईं ओर रसोई और उसके समीप पानी संग्रह कर रखने की गुजरात की प्राचीन व्यवस्था। कमरे में रौशनी के लिए पर्याप्त प्रबंध और सबसे अच्छी बात दीवार की आलेनुमा अलमारी में पैसा संजोकर रखने की पारंपरिक विधि। एक स्थान पर बड़ा सा स्वास्तिक जमीन पर नजर आता है। वहां पर लिखा है यही वो जगह है जहां महात्मा गांधी का जन्म हुआ था। मकान की ऊपर मंजिलों पर जाने के लिए संकरी सी लकडिय़ों वाले जीने हैं। ऊपर पर महात्मा गांधी का अध्ययन कक्ष है, जहां की खिड़की से बाहर का पूरा नजारा साफ दिखता है। रौशनी- हवा-पानी की पर्याप्त व्यवस्था।
27 मई 1950 को देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कीर्ति मंदिर का उद्घाटन किया था। सरदार पटेल ने फीता काटकर नहीं, बल्कि चाबी से ताला खोलकर उद्घाटन की रस्म निभाई थी। इस मंदिर को बने भी अब 70 साल हो रहे हैं, लेकिन तब से लेकर अब तक इसमें कुछ ज्यादा बदलाव नहीं किए गए हैं। यदि इस पावन स्थान को हम यूंू ही बरसों- बरस संजो कर रखने में कामयाब हो गए तो एक दौर में यह स्थान वाकई किसी मंदिर की तरह की प्रसिद्धि और आस्था पा लेगा।
कीर्ति मंदिर के आस-पास कोई खास ताम-झाम नजर नहीं आता है। काफी शांति रहती हैं। कुछ दुकानें जरूर खुली हैं। वहीं पर एक दुकान पर मेरी नजर ठिठकी और मैं वहां जाने से अपने आप को नहीं रोक पाई- महिला जो हूं। इस दुकान के शो कैश पर कुछ पुराने जमाने की यादें ताजा करते हुए पारंपरिक आभूषण किसी को भी लुभा लेते हैं। इसमें पुरानी गुजराती कारिगरी के बेजोड़ नमूने के साथ एक भरोसा भी झलकता है। ये आभूषण पीतल के थे, लेकिन ऑर्डर देने पर दुकानदार वैसे ही स्वर्णाभूषण देने की बात भी कह रहा था। अब के जमाने में इतने भारी-भरकम स्वर्णाभूषण पहनने की बात करना भी खतरे से खाली नहीं लगा। खैर। हम बात कर रहे थे- पोरबंदर शहर और बापू की। यहां के कीर्तिमंदिर के पीछे नवी खादी है जहां गांधीजी की पत्नी कस्तूरबा गांधी का जन्म हुआ था।
अन्य दर्शनीय स्थल
पोरबंदर श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा की भी जन्मस्थली है। इसलिए इसे सुदामापुरी भी कहा जाता है। पोरबन्दर बहुत ही पुराना बंदरगाह हुआ करता था। यहीं पर गुजरात का सबसे अच्छा समुद्र किनारा भी है। कीर्ति मंदिर के अलावा देखने के लिए 10वीं शताब्दी का घुमली गणेश मंदिर, 6ठीं शताब्दी का सूर्य मंदिर और सुदामापुरी मंदिर है, जहां के प्रांगण में छोटी सी 84 भूलभुलैया है, जो सुदामाजी के द्वारिका से वापसी के बाद अपनी कुटिया खोजने की बात की याद दिलाते हैं। इसके साथ ही संदीपनी विद्यानिकेतन, वर्धा वन्यजीव अभयारण्य, पोरबंदर पक्षी अभयारण्य, हुज़ूर महल, जेठवा शासक राणा सुल्तानजी प्रतिहार का दरबारगढ़ महल और जेठवा शासक राणा सुल्तानजी का चोरो महल भी यहां के दर्शनीय स्थल हैं। और हां नेहरु तारामंडल भी आप जा सकते हैं, जो सिटी सेंटर से 2 किलोमीटर दूर है। नेहरु तारामंडल में दोपहर में चलने वाला शो गुजराती भाषा में होता है। नेहरु तारामंडल पर दिन भर शो चलते रहते हैं।
तरह-तरह के फूड्स
यदि आप अब तक पोरबंदर नहीं गए, तो एक बार जरूर हो आइये। अक्टूबर से फरवरी तक का मौसम यहां का काफी सुहाना होता है। बापू की यादों से जुड़ी इस शांत जगह में जाने से यकीनन आप को सुकून ही मिलेगा। सच में आप को लगेगा कि आप अपने बापू की नगरी ही आए हैं। सीधे-सादे लोग, खिचड़ी-कढ़ी का स्वादिष्ट गठजोड़, चूरमा लड्डू, गुड़ वाली दाल और कम मसाले वाला खाना, हां पत्ता गोभी-गाजर, मिर्च का हल्दी डला अनोखा स्वाद वाला सलाद, खाना मत भूलिएगा। स्वाद और पेट के लिए काफी हल्के- खांडवी, थेपला, मुठिया, फाफड़ा, जलेबी - पूरी और उनधियु की तिकड़ी। (उनधियु को कई प्रकार की सब्जियों को मिला कर और ढेर सारे मसाले डालकर बनाना जाता है।) दाल, चावल और सब्जियों का अनूठा मिश्रण हांडवो के साथ ही सुरती लोचो, भी यहां के खास व्यंजन है। सुरती लोचो कम तेल से भाप में पका, मसालेदार देशी चटनी, मिर्च और सेव के साथ परोसा जाने वाला खास गुजराती पारम्परिक स्ट्रीट फूड है। खमन और तरह-तरह के ढोकले की बात ही मत पूछिए, जिस गली जाइयेगा एक नया स्वाद मिलेगा। और एक और फूड का स्वाद अभी तक याद है और वह है खीचू- सबसे ज्यादा स्वास्थ्यकारी और जल्दी से बनने वाला नाश्ता । यह चावल के आटा और मसालों का संयोजन है जो गरम पानी में पकाया जाता है तथा इसमें तेल और लाल मिर्च का तड़का लगाकर खाया जाता है। सब कुछ बड़ा स्वादिष्ट, एकदम घर जैसा।
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