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  फिल्म पतंगा और मेरे पिया गए रंगून.. गीत का कमाल
आलेख-मंजूषा शर्मा
गुजरे जमाने के सदाबहार गीतों में एक गीत था- मेरे पिया गए रंगून.....आज भी लोगों को पसंद आता है। हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में टेलीफोन पर बहुत कम गाने फिल्माए गए हैं। फिल्म पतंगा का यह गीत उस दौर का गीत है जब  टेलीफोन खास लोगों तक ही सीमित था।
सन् 1949 में एक फिल्म आई थी पतंगा जिसका एक बड़ा ही खूबसूरत गीत है- मेरा पिया गए रंगून , जहां से किया है टेलीफून, तुम्हारी याद सताती है जिया में आग लगाती है...। इस गीत को ऑल टाइम फेवरिट कहा जा सकता है, क्योंकि आज रिमिक्स के जमाने में भी इस गीत को प्रमुखता से लोगों ने गाया है। 
1949 में एच. एस. रवैल पहली बार फि़ल्म निर्देशन के क्षेत्र में उतरे वर्मा फि़ल्म्स के बैनर तले बनी इसी फि़ल्म, यानी कि पतंगा के साथ। फि़ल्म शहनाई की सफलता के बाद संगीतकार सी. रामचन्द्र और गीतकार राजेन्द्र कृष्ण की जोड़ी जम चुकी थी। इस फि़ल्म में भी इसी जोड़ी ने गीत-संगीत का पक्ष संभाला। पतंगा के मुख्य कलाकार थे- श्याम और निगार सुल्ताना। याकूब और गोप, जिन्हें भारत का लॉरेन और हार्डी कहा जाता था, इस फि़ल्म में शानदार कॅामेडी की। 
टेलीफ़ोन पर बने गीतों का जि़क्र करना इस गीत के बिना अधूरा समझा जाएगा। बल्कि यूं कहें कि टेलीफ़ोन पर बनने वाला यह सब से लोकप्रिय गीत रहा है । शमशाद बेग़म और स्वयं चितलकर यानी संगीतकार सी. रामचंद्र का गाया हुआ यह गीत उस वक्त  फि़ल्म संगीत के लिए एक नया कॉन्सेप्ट था । भले इस गीत को सुन कर ऐसा लगता है कि नायक और नायिका एक दूसरे से टेलीफ़ोन पर बात करे हैं, लेकिन असल में यह गीत एक स्टेज शो का हिस्सा है। उन दिनों बर्मा में काफ़ी भारतीय जाया करते थे, शायद इसीलिए इस गाने में रंगून शहर का इस्तेमाल हुआ है। (द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का रंगून से गहरा नाता था)। 
आज के दौर में शायद ही रंगून का जि़क्र किसी फि़ल्म में आता होगा। फि़ल्म पतंगा  के दूसरे हल्के फुल्के हास्यप्रद गीतों में शामिल है शमशाद बेग़म का गाया गोरे गोरे मुखड़े पे गेसू जो छा ग..., दुनिया को प्यारे फूल और सितारे, मुझको बलम का ना...., शमशाद और रफ़ी का गाया डुएट बोलो जी दिल लोगे तो क्या क्या दोगे... और पहले तो हो गई नमस्ते नमस्ते...., शमशाद और चितलकर का गाया एक और गीत -ओ दिलवालों दिल का लगाना अच्छा है पर कभी कभी....। इस फिल्म में लता मंगेशकर ने भी कुछ गीत गाए। एक गाना था शमशाद बेग़म के साथ -प्यार के जहान की निराली सरकार है.., और तीन दर्द भरे एकल गीत भी गाए, जिनमें जो सब से ज़्यादा हिट हुआ था वह था -दिल से भुला दो तुम हमें, हम ना तुम्हे भुलाएंगे...। लेकिन  फिल्म का केवल एक गीत ही- मेरे पिया गए रंगून... आज भी बजता है। आज नए अंदाज और आवाज के बाद भी इस गाने की मूल आत्मा में कहीं न कहीं संगीतकार सी. रामचंद्र जीवित हैं। 
 

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