सिर्फ बनारसी साडिय़ों के लिए नहीं मशहूर है बनारस... खासियत जानेंगे तो यहां से लौटने का मन नहीं करेगा
काशी , वाराणसी या फिर बनारस, काशी विश्वनाथ की नगरी के रूप में विख्यात है। इसके अलावा इस प्राचीन नगर में अनेक रंग देखने को मिलते हैं। इसे उसकी रंग बिरंगी बनारसी साडिय़ों के लिए भी पूरे भारत में जाना जाता है, लेकिन इस शहर में ऐसा बहुत कुछ है जो आपको अपनी ओर आकर्षित कर लेगा। इस शहर के बारे में कहा जाता है कि यदि कोई एक बार यहां की खासियत जान लेगा, तो उसे यहां से लौटने का मन नहीं करेगा। जानिए बनारस से जुड़ी कुछ खूबसूरत बातें.....
वैदिक परंपरा का गुंजन
वाराणसी में दो दर्जन से ज्यादा वैदिक विद्यालय हैं, जिनमें श्री विद्यामठ भी एक है। विद्यापीठ में दाखिला लेने वाले छात्रों की उम्र 12 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। छात्रों की दिनचर्या रोज सुबह 4 बजे शुरू होती है। हर दिन गंगा के तट पर योगाभ्यास, फिर वेद और शास्त्रों की पढ़ाई और शाम को आरती के साथ छात्रों का दिन खत्म होता है।
अलौकिक सूर्योदय
बनारस की सुबह अलौकिक है। लालिमा से भरे सूर्य की रोशनी, गंगा और घाटों को गजब का सौंदर्य देती है। सुबह सुबह भीड़ भाड़ कम होने की वजह से भी प्रकृति का ये नजारा और दिलकश और आध्यात्मिक हो जाता है।
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
भारत के मशहूर विश्वविद्यालयों में शुमार बीएचयू (बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी) भी काशी यानी बनारस की शान है। 1916 में मदनमोहन मालवीय और एनी बेसेंट द्वारा स्थापित किया गई बीएचयू पढ़ाई के साथ साथ सबसे बड़ी आवासीय यूनिवर्सिटी के लिए विख्यात है। इसके कैंपस को देखने भी लाखों सैलानी पहुंचते हैं।
हर तरह का भोजन
बनारस में भारत के करीबन हर राज्य का पारंपरिक भोजन मिल जाता है। इसकी वजह यहां हर राज्य से आने वाले श्रद्धालु और उनके लिए बनाए गए कुछ खास घाट हैं। नाश्ते या भोजन के लिए बनारस में दर्जनों विकल्प मौजूद रहते हैं। बनारसी चाट, मटर पोहा, कचोरी, मिट्टी के कुल्हड़ में दही-रबड़ी, सौंधा दूध, गर्मी में रसीली लीची और आमों की अनेक वैरायटी.. सर्दियों में अमरूद की बहार।
अविरल धारा में डुबकी
हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक गंगा नदी में डुबकी लगाने से इंसान पापमुक्त हो जाता है। काशी में डुबकी लगाना और भी पवित्र माना जाता है। हिंदू धर्म में पंडिताई का काम करने वाले ब्राह्मणों के लिए जीवन में एक बार काशी जाना अनिवार्य सा माना जाता है। पंचांग भी यहीं से निकलते हैं।
भांग के कई रूप
बनारस में आपसे अगर कोई कहें कि मिश्राम्बू पिएंगे तो सावधान हो जाइए। मिश्राम्बू भले ही बड़ा आध्यात्मिक सा नाम लगे, लेकिन यह भांग है। यह दूध और बादाम के शेक में मिली हुई भांग हैं। बनारस में इसके अलावा भांग, चरस, गांजे और लड्डू के रूप में मिलती है।
गंगा के पार
बनारस के स्थानीय युवा और यूनिवर्सिटी के छात्र नहाने के लिए गंगा पार कर घाटों के दूसरी तरफ जाते हैं। कुछ युवा नहाने धोने के बाद नदी किनारे बैठ दोस्तों से गप्प लड़ाते हैं और चिलम भी पीते हैं।
अलग ही है बनारसी पान
भारत में पान का पत्ता तीन तरह का मिलता है। बनारसी, कलकतिया और महोबनी । तीनों में बनारसी पत्ते का स्वाद काफी अलग है। बनारस में कत्था भी अलग किस्म का इस्तेमाल किया जाता है । साथ ही पान में कच्ची सुपारी डाली जाती है । यह चीजें बनारसी पान को स्पेशल बनाती हैं।
बनारसी सिल्क और साड़ी
बनारस में रेशम पैदा नहीं किया जाता है। यहां, बेंगुलुरू और चीन से रेशम के धागे मंगाए जाते हैं । उन धागों से खूबसूरत साडिय़ां बनाने का हुनर बनारस के बुनकर ही जानते हैं । शहर में बुनकरों के तीन मुख्य इलाके हैं, जहां करीब 22 हजार बुनकर परिवार रहते हैं। ज्यादातर बुनकर अब मशीनों के सहारे काम करते हैं।
ईको फ्रेंडली चुस्की
बनारस में आपको प्लास्टिक के कप-गिलास काफी कम दिखाई पड़ेंगे। शहर में ज्यादातर दुकानों और ठेलों पर मिट्टी के कुल्हड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। लस्सी, रबड़ी, चाय और कॉफी तक कुल्हड़ों में दी जाती है, लेकिन प्लास्टिक में पैक दूसरी चीजें अब भी बड़ी मुसीबत बनी हुई हैं।
गंगा आरती
वाराणसी में हर शाम होने वाली गंगा आरती देखने हर दिन हजारों लोग जुटते है। ज्यादातर भीड़ मुख्य रूप से दो घाटों पर ही होती है, दशाश्वमेध और अस्सी घाट पर। आरती चाहे तो घाट पर बैठ कर देखी जा सकती है, या फिर नाव में बैठकर । आरती के बाद घाटों पर काफी देर तक मेले जैसा माहौल रहता है। इस दौरान खिलौने बेचने वाले लोग या श्रद्धालुओं के मस्तक पर भस्म लगाने वाले बाबा भी दिखाई पड़ते हैं । भस्म लगाने के बाद कुछ बाबा कम से कम 10 रुपये के नोट की उम्मीद करते हैं । सिक्के देने पर वह नाराज होते हैं और बनारसी अंदाज में अप्रिय शब्दों से संबोधित करते हैं ।
बनारस की रात
यह कहावत आम है कि जिसे कहीं जगह नहीं मिलती, उसे काशी में जगह मिल जाती है। 84 घाटों के शहर बनारस में हजारों लोग बेघर रहते हैं। उनका जीवन भिक्षा और धर्मार्थ होने वाले आयोजनों से चलता है। इस तरह जीवन चलाने वाले ज्यादातर लोग मजबूरी या अपनी इच्छा से घर बार छोड़ कर काशी पहुंचे हैं।
जीवन का अंत
वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर हर वक्त चिताए जलती रहती हैं। चिता जलाने का काम करने वाले एक डोम राजा कहते हैं कि, "यह माया मुक्त क्षेत्र है, यहां शोक और माया मोह के लिए कोई जगह नहीं है। इस क्षेत्र से बाहर निकलते ही संसार फिर इंसान पर हावी हो जाता है। " औसतन 24 घंटे में यहां 70 दाह संस्कार किए जाते हैं।
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