धमधा के राजा और उनका राजपरिवार क्यों खो गया है गुमनामी में?
धमधा के भवानी सिंह को अंग्रेज और भोसले राजाओं ने 1856 में तोप से बांधकर उड़ा दिया था। एक जनश्रृति यह भी है कि किले पर हमला होने के बाद राजा सुरंग के रास्ते भाग गए।
आखिर इतने प्रसिद्ध धमधागढ़ के राजा उसके परिवार के लोग कहां गुम हो गए? यह सवाल हर किसी के मन में आता है।
इसका जवाब हमें महासमुंद जिले के पिथौरा ब्लॉक के अरण्य गांव में मिला, जहां धमधा के राजा का परिवार आज भी निवासरत हैं और वर्तमान में धमधा के राजा का नाम योगसाय है।
उनके परिजनों के अनुसार अंग्रेजों के आक्रमण की खबर के बाद राजा रातोंरात सुरंग के रास्ते से निकल गए थे। वे अरण्य के जंगल में जाकर रहने लगे। उसके बाद कौडिय़ा जमींदारी में नौकर बनकर काम करने लगे। कौडिय़ा के जमींदार की पत्नी विष्णुप्रिया को जब खबर लगी कि वह नौकर नहीं धमधा का राजा है, तब रानी विष्णुप्रिया ने सात गांव की जमींदारी देकर राजा का मान सम्मान लौटाया।
बाद में परऊ साय ने अपने ईष्ट बूढ़ादेव का मंदिर धमधा में बनवाया, जिसकी अनुमति 1907 में अंग्रेज अफसर से ली। इसके दस्तावेज भी राजपरिवार के पास है। बूढ़ादेव मंदिर के द्वार में दो मूर्ति बनी है, उसके नीचे परऊ सेवक लिखा हुआ है।
धर्मधाम गौरवगाथा की टीम महासमुंद पिथौरा के अरण्य पहुंची और राजपरिवार की जानकारी ली। बताया गया कि परऊ साय के बेटे बूढ़ान साय और जहान साय ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और जेल की यातना झेली। उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का ताम्रपत्र देकर सम्मानित भी किया गया है। बूढ़ान साय के नाम पर पिथौरा के कॉलेज का नामकरण भी किया गया है। बूढ़ान साय ने गोंड समाज को संगठित करने समिति बनाकर पंजीयन भी कराया और अपने राजपाठ के लिये लड़ाई लड़ी, लेकिन राजपरिवार को उनका राजपाठ नहीं मिल सका है।
2001 में शासन ने राजा किला को केंद्रीय गोंडवाना महासभा के संरक्षण में दे दिया, जिसके बाद से राजपरिवार और उपेक्षित हो गए। आज धमधा के किले पर राजपरिवार को मेहमान की तरह आकर अपना पांरपरिक पूजा पाठ करना पड़ता है। हर साल ईशर गौरा महापूजा राजपरिवार करता है।
इस बार 13-14-15 नवंबर 2021 को यह महापूजा होगी। पूरे प्रदेश से मरकाम, सोरी,खुसरो ग्रोत्र वाले इस पूजा में शामिल होते हैं। ये स्वयं को धमधा के पहले राजा सांड विजयी का वंशज बताते हैं, इनके पास दस्तावेज भी हैं, जिनमें बूढ़ादेव मंदिर के निर्माण का उल्लेख है।
फिर भी राजपरिवार उपेक्षित बना हुआ है... गुमनामी में जी रहा है।
(आलेख- गोविन्द पटेल, धर्मधाम गौरवगाथा समिति धमधा, 9893172336)
धमधागढ़ राजा के वंशजों के साथ लेखक गोविंद पटेल और धर्मधाम गौरवगाथा समिति, धमधा के सदस्य
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