खतरा "एआई" से नहीं, मनुष्य के दुर्भाव से है...!
- डॉ. कमलेश गोगिया
पूरी दुनिया में इस समय चर्चा का विषय है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित चैटबॉट... आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सामान्य सा अर्थ है कृतिम बुद्धि जिसे संक्षिप्त में एआई कहा जाता है। चैटबॉट को समझने के लिए इसे तोड़ दें तो 'चैट का अर्थ है बातचीत और 'बॉट का अर्थ है रोबोट, मसलन बातचीत करने वाला कम्प्यूर प्रोग्राम आधारित रोबोट जिसे इंसानों से भी बेहतर माना जा रहा है। टेक्स्ट या टेक्स्ट-टू-स्पीच के माध्यम से ऑनलाइन इंसानों की तरह यह हर सवाल का जवाब दे सकता है। वह सारा काम करने में सक्षम बना दिया गया है जो इंसान करता है, बल्कि एक नहीं, अनेक कदम आगे....यह एक प्रोफेसर की भांति पढ़ा सकता है, बच्चों की ट्यूशन ले सकता है, गणित के जटिल से जटिल प्रश्नों को हल कर सकता है और वह सब कुछ जिसकी कल्पना की जा सकती है। एक दिन कौन बनेगा करोड़पति की हॉट सीट में बिग बी अमिताभ बच्चन के सामने एआई रोबोट बैठकर सवालों का सटीक जवाब देकर करोड़पति बन जाए तो कोई अतिश्योक्ति की बात नहीं होगी।
कुछ देर के लिए अतीत के पन्नों की तरफ लौटते हैं। सन 1997 में विश्व शतरंज चैम्पियन गैरी कास्परोव को जब सुपर कम्प्यूटर 'डिप ब्लूू ने हराया था तब पूरे विश्व में यह घटना मीडिया की सुर्खियाँ बनी थीं। तभी यह समझा जा चुका था कि इंसानी बुद्धि को कृतिम बुद्धि यानी एआई आसानी से मात दे सकती है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि एआई तकनीक से विश्व उन अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हो जाएगा जिसकी कल्पना सिर्फ फिल्मों ही हुआ करती है। आपको याद होगा सुपरस्टार रजनीकांत और ऐश्वर्या राय बच्चन अभिनित फिल्म एनाथिरन का पात्र 'चिट्टी । वैज्ञानिक की भूमिका में रजनीकांत चिट्टी नामक रोबोट का निर्माण करते हैं लेकिन उसमें भावनाएं उत्पन्न हो जाती हैं और यह रोबोट मानव जाति के लिए खतरा बन जाता है। तेरह साल पहले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बड़े पर्दे पर दर्शाने वाली यह पहली भारतीय फिल्म थी। इस फिल्म का दूसरा भाग 2.0 भी अधिकांशत: ने देखा है। एआई पर रिसर्च करके अंग्रेजी, हिन्दी, दक्षिण भारत की अनेक फिल्में लोकप्रिय रही हैं। इनमें 'अवेंजर्स: एज ऑफ अल्ट्रॉनÓ, 'द टर्मिनेटरÓ , 'द मेट्रिक्सÓ नामक फिल्में शामिल हैं। कुछ फिल्मों के अनेक भाग भी बन चुके हैं। यह इन फिल्मों के निर्माताओं के अध्ययन की दूरदर्शिता हो या कल्पना की उड़ान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की चर्चाओं के बीच ये पात्र चरितार्थ होने जा रहे हैं।
कम्प्यूटर से लेकर इंटरनेट और स्मार्ट फोन तक एआई के ही पुराने रूप है। जिन्हें टाइपिंग नहीं आती वे बोलकर टाइप करते हैं, पलक झपकते ही विश्व के किसी भी कोने में संदेश भेजने में हम सक्षम हैं। किसी भी भाषा को सीखने से लेकर अनुवाद करने तक, स्पीच टू टेक्स्ट, वर्चुअल असिस्टेंट, चित्र के माध्यम से कार की सेल्फ ड्राइविंग, ये सभी एआई के ही पुराने संस्करण हो चुके हैं। जाहिर है कि एआई सिस्टम हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का कब से अहम हिस्सा बन चुका है। यह हमारी हर पसंद को समझता है। याद कीजिए, ऑनलाइन शॉपिंग करते समय या यूट्यूब और फेसबुक में वीडियो देखते समय, यही एआई सिस्टम हमारे मस्तिष्क का विश्लेषण कर हमारी पसंद-नापसंद को संग्रहित कर लेता है। यही वजह है कि कुछ समय तक हमारी पसंद के ही वीडियो, शॉपिंग की चीजें हमारे ऑनलाइन होते ही मोबाइल की स्क्रीन पर स्क्रॉल होने लगती हैं। अलग-अलग प्लेटफार्म पर भी हमारी पसंद की चीजें एकाएक सामने आ जाती हैं, वह अमेजान हो या फ्लिपकार्ट।
नियम-आधारित चैटबॉट में उन्हीं सवालों के जवाब मिलेंगे जिसे प्रोग्राम में डाला गया है, लेकिन एआई आधारित चैटबॉट में कोई सवाल फीड नहीं है, यह सारे सवालों का जवाब तत्काल दे पाने में सक्षम हैं। पहला संस्करण तो हम सब काफी समय से इस्तेमाल भी करते आ रहे हैं, अमेजान की एलेक्सा और गूगल के एसिस्टेंट और एप्पल की सिरी के रूप में। अब एआई का नया संस्करण होगा मानव मस्तिष्क से भी आगे की सोच के साथ काम करना। इसे मानवता के लिए खतरा भी माना जा रहा है। करोड़ों नौकरियाँ चले जाने, मानव जाति पर रोबोट्स का राज होने और दुनिया के लिए खतरनाक साबित होने जैसी संभावनाओं के विचारों ने जन्म ले लिया है। अनेक कंपनियाँ चैटबॉट की सेवाएँ ले रही हैं। इस समय एआई के जनक जेफ्री हिंटन ट्रेंड कर रहे हैं क्योंकि वे स्वयं यह मानते हैं कि इस एडवांस तकनीक को जन्म देना उनकी भूल थी। इसके पहले भी अनेक अविष्कारकों ने नई-नई तकनीक की खोज के बाद अपनी भूलों को स्वीकार किया है, फिर वे परमाणु बम के जनक जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर और रिचर्ड फाइनमेन ही क्यों न हों।
देश-विदेश की अनेक कंपनियों में एआई आधारित रोबोट्स अपनी जगह काफी पहले बना चुके हैं और बेहतर परिणाम दे रहे हैं। इन्हें आईटी कर्मचारियों से भी बेहतर माना जाने लगा है। सायबर की दुनिया ने इंसानों को तरह-तरह की सुविधाओं से लैस कर दिया। लेकिन सायबर क्राइम में भी इतना इजाफा हुआ कि इसकी चुनौतियों से दुनिया उबर नहीं पा रही है। यह मनुष्य की दुर्भावना का ही परिणाम है जो मशीनों से ज्यादा घातक है। इस बात की क्या गारंटी है कि एआई आधारित चैटबॉट से चैटबॉट क्राइम न हो? खतरा तो गलत सूचनाओं से गलत कार्यों का है। यही वजह है कि काफी पहले ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरों से स्टीफन हॉकिन्स भी आगाह करते रहे थे। वे इसे मानव जाति के लिए खतरनाक मानते थे। वजह थी मशीनों से प्रतिस्पर्धा करने की मानव में क्षमता न होना और इस तकनीकी का उपयोग गलत सूचनाओं के लिए करना। हाँ, यह जरूर है कि एआई आधारित रोबोट्स कितने भी एडवांस हो जाएं, लेकिन उनके भीतर भावनात्मकता का जन्म संभव नहीं, क्योंकि भावनाएँ प्रकृति-जन्य है जिसका संबध अध्यात्म से है। इसलिए कहा भी जाता रहा है कि विज्ञान को अध्यात्म के सहचर्य की जरूरत है और वर्तमान तकनीकी युग को वैज्ञानिक अध्यात्म की। खतरा एआई से नहीं मनुष्य की दुर्भावनाओं से है जो इस तकनीकी के गलत इस्तेमाल के लिए प्रेरित कर सकती है। इसका परिणाम अफवाह, फेक न्यूज, फेक आडियो-वीडियो, पूर्वाग्रह, नौकरी का संकट जैसी चुनौतियों और समस्याओं के रूप में सामने होगा। विशेषज्ञों की मानें तो इस तरह की नई तकनीक के लिए सख्त नियम-कानून वैश्विक स्तर पर बनाए जाने की आवश्यकता है जिससे मानवता को नष्ट होने से बचाया जा सके।
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