ईसप के पशु-पक्षियों का अद्भुत कथा-संसार
-लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया, वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् (प्रोफेसर, मैट्स यूनिवर्सिटी, रायपुर)
-पहले एक कहानी -
एक बार एक बाघ के गले में एक हड्डी का टुकड़ा अटक गया। बाघ ने उसे निकालने की बड़ी कोशिश की, परन्तु सफलता नहीं मिली। पीड़ा से भागकर वह इधर-उधर दौड़-भाग करने लगा। किसी भी जानवर को सामने देखते ही वह कहता, ‘’भाई, .यदि तुम मेरे गले में अटका हुआ हड्डी का टुकड़ा बाहर निकाल दो, तो मैं तुम्हें एक विशेष पुरस्कार दूंगा और आजीवन तुम्हारा ऋणि रहूँगा।‘’ परन्तु कोई भी जीव भय के कारण उसकी सहायता करने को राज़ी न होता।
पुरस्कार के लोभ में आकर एक बगुला हड्डी के टुकड़े को निकालने के लिए तैयार हो गया। उसने बाघ के मुँह में अपनी लम्बी चोंच डाल दी, और काफ़ी प्रयास करने के बाद आखिरकार उस हड्डी को निकालने में सफल हुआ। बाघ को बड़ी राहत मिली। पर जब बगुले ने पुरस्कार की बात उठाई, तो बाघ ने अपनी आँखें तरेरकर दाँत पीसते हुए कहा, ‘’अरे मूर्ख तूने मेरे मुख में अपनी चोंच डाल दी थी, फिर भी तू अब तक जीवित है। इसी को अपना सौभाग्य मान। तू ऊपर से पुरस्कार माँग रहा है। यदि तुझे अपनी जान प्यारी है, तो तत्काल मेरी आँखों के सामने से दूर हो जा, नहीं तो मैं अभी तेरी गर्दन मरोड़कर रख दूँगा।‘’ यह सुनकर बगुला हक्का-बक्का रह गया और तुरन्त वहाँ से चलता बना। यह कहानी सबक देती है कि दुष्टों के साथ मेलजोल कभी ठीक नहीं रहता और दुष्टों पर कभी भरोसा करना भी उचित नहीं।
अब दूसरी कहानी-
एक गधा और सियार साथ-साथ शिकार करने जा रहे थे। कुछ दूर जाने पर उन्होंने देखा कि उनके रास्ते के बीचों-बीच एक सिंह बैठा हुआ है। संकट उपस्थित देखकर सियार तत्काल सिंह के निकट पहुँच गया और उससे धीमे स्वर से कहने लगा, ‘’महाराज यदि आप कृपा करके मुझे प्राणदान दें, तो मैं यह गधा आपको सौंप दूंगा।‘’ सिंह राज़ी हो गया। सियार ने बड़ी चालाकी से गधे को सिंह का आहार बना दिया। पर गधे को मारने के बाद सिंह ने सियार को भी मार डाला और अगले दिन का भोजन पूरा किया। इस कहानी से यह प्रेरणा मिलती है कि दूसरों के लिए गड्ढा खोदने वाला खुद भी गड्ढे में गिरता है।
ये दोनों कहानियाँ यूनान के महापुरुष ईसप ने सदियों पूर्व रची थीं। देवभूमि भारत में जिस तरह पंचतंत्र और हितोपदेश जैसे ग्रंथ की रचना की गई वैसे ही यूनान में ईसप नामक महापुरुष ने नीतिपरक कथाओं की रचना की थी और ये कथाएँ बीते दो हजार वर्ष से पूरे विश्व में लोकप्रिय हैं। इन कथाओं को ईसप फेबल्ज़ कहा जाता है।
इस आलेख में शामिल कहानियाँ ‘ईसप की शिक्षाप्रद कथाएँ’ नामक पुस्तक से ली गई हैं। यह पुस्तक रायपुर के स्वामी विवेकानंद आश्रम के पुस्तकालय में मिली। यह कोलकाता के रामकृष्ण मठ के प्रकाशन केंद्र अद्वैत आश्रम से वर्ष 2018 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक का संकलन एवं अनुवाद स्वामी विदेहात्मानंद जीने और स्वामी विमोहानन्द जी व श्रीमती मधु दर ने संपादन किया है। सरल और सहज भाषा में ईसप की कथाओं का आनंद लेने वाली यह कृति मुझे सर्वश्रेष्ठ लगी, बनिस्बद नेट के सर्च इंजन में सिर खपाने के। इस संकलन में 252 कहानियां हैं। इसके प्रकाशक अद्वैत आश्रम के अध्यक्ष स्वमी मुक्तिदानन्द प्रकाशकीय में लिखते हैं, ‘’इस युग के महान सन्त और विचारक श्री विनोबा ने एक बार गीता पर प्रवचन करते हुए कहा था, ‘सृष्टि के प्रति छोटे बच्चों को इतना कौतूहल मालूम होता है, उसी पर तो सारी ईसप-मीति रची गई है।‘
ईसप को सर्वत्र ईश्वर दिखाई देते थे। अपनी प्रिय पुस्तकों की सूची में मैं ईसप-नीति का नाम पहले रखूँगा, भूलूँगा नहीं। ईसप के राज्य में केवल दो हाथों वाला तथा दो पाँवों वाला मनुष्य ही नहीं, बल्कि उसमें सियार, कुत्ते, कोए, हिरन, खरगोश, कछुए, साँप, केंचुए-सभी बातचीत करते हैं और हँसते भी हैं।...ईसप से सारी चराचर सृष्टि बातचीत करती है।’’
ईसप की कथाओं के पात्र मनुष्य से ज्यादा पशु-पक्षी हैं जो नीति और सदाचार की प्रेरणा देते हैं। ईसप ने अनेक कहानियाँ लिखीं जिनके उदाहरण हमें हमारे जीवन में और समाज में दो हजार साल बाद भी देखने को मिलते हैं। उनकी कहानियां जीवन के हर पहलू पर प्रकाश डालकर सदाचार के लिए प्रेरित करती हैं।
मोर और बगुला नामक कहानी की बानगी देखिए-
एक मोर अपने शानदार पंख फैलाए खड़ा था कि उसके पास से एक बगुला गुजरा। मोर ने अहंकारपूर्वक उस मटमैले पंखों वाले बगुले की निन्दा करते हुए कहा, ‘’मैं तो एक राजा के समान इंद्रधनुष के सारे रंगों से सज़ा हुआ हूँ, जबकि तुम्हारे पंख तो बिलकुल बेरंग हैं।‘’ बगुला बोला, ‘’वह तो ठीक है, पर मैं आकाश की बुलंदियों में उड़ सकता हूँ और अपनी आवाज को सितारों तक पहुँचा देता हूँ, जबकि तुम एक मुर्गे के समान कूड़े के ढेर के इर्द-गिर्द घूमते रहते हो।‘’ यह कहानी रूप की तुलना में गुणवत्ता पर ज्यादा महत्व देने की शिक्षा देती है।
अक्सर बिना परिणाम के विचार किये गये कर्म का भुगतान भी करना पड़ता है। दो मेढक की कहानी विचारपूर्वक कर्म करने की शिक्षा इस तरह देती है- एक तालाब में दो मेढक रहा करते थे। एक बार गर्मी के मौसम में वह तालाब सूख गया दोनों मेढक तब एक साथ एक नये घऱ की तलाश में निकल पड़े। रास्ते में वे जल से परिपूर्ण एक गहरे कुएँ के पास से होकर गुजरे। उसे देखकर एक मेढक ने दूसरे से कहा, ‘’क्यों न हम इस कुएँ को ही अपना घर बना लें।’’ इस पर दूसरे मेढक ने अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए कहा- ‘’लेकिन मान लो इसका पानी भी कभी सूख जाए, तो हम इतनी गहराई से बाहर कैसे निकलेंगे।‘’
अहंकार न करने की सीख देने वाली दीपक और रोशनी नामक कहानी के अनेक प्रसंग समाज में देखने को मिलते हैं। यह कहानी है-तेल से भरे हुए एक जलते हुए दीपक ने डींग हाँकते हुए कहा कि वह सूर्य से भी अधिक प्रकाश देता है। तभी सहसा एक हवा का झोंका आया और चिराग गुल हो गया। उसके मालिक ने उसे दुबारा जलाकर कहा, ज्यादा डींग मत हाँक, बल्कि अब से चुपचाप रोशनी देकर ही संतुष्ट रह। जान ले कि तारों तक को दुबारा जलाने की जरूरत नहीं होती। वस्तुतः थोड़ी सी ही उपलब्धि पर घमण्ड नहीं करना चाहिए। इतिहास गवाह है कि अहंकार से ही रावण का वध हुआ था।
वास्तव में प्रेरक कथाएँ जीवन का सही मार्गदर्शन करती हैं। कथाओं की सहायता से समाज को प्रेरणा देते रहने का कार्य महापुरुष, ऋषिगण सदियों से करते रहे हैं। प्राचीन काल से ही लोक-व्यवहार, नीति-सदाचार के तत्वों को कथाओं के माध्यम से समझाया जाता रहा है। आज भी कथाओं का ही सहारा लेकर प्रवचन दिये जाते हैं। वेब-वर्ल्ड के इस आधुनिक युग में अब ऑडियो बुक्स से कथाएँ सुनी जाती हैं। संचार के माध्यम कितने भी पारंपरिक या आधुनिक हो जाएं, कथाएँ सदैव हमारे जीवन का अभिन्न अंग बनी रहेंगी। आखिर हर व्यक्ति के जीवन की में हर क्षण घट रही घटनाएँ भी तो कथा ही हैं। ईसप की प्रेरणास्पद कहानियों के संग्रह को प्रवाहमयी व सरल भाषा शैली के साथ प्रस्तुत करने के लिए रामकृष्ण मठ के स्वामी मुक्तिदानन्द स्वामी विदेहात्मानंद, स्वामी विमोहानन्द व श्रीमती मधु दर को साधुवाद...।
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