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 सैलानियों को लुभा रहे बिलासपुर के पर्यटन स्थल

-शहर की यात्रा कर इन जगहों की खूबसूरती को करें महसूस 
आलेख- रचना मिश्रा 
 पर्यटन एक ऐसी यात्रा है जो न केवल हमें नये स्थानों से परिचित कराती है बल्कि हमारे जीवन को भी समृद्ध बनाती है। पर्यटन हमें नये अनुभव प्रदान करता है। नये लोगों से मिलने का अवसर देता है। छत्तीसगढ़ का बिलासपुर जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक महत्व और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। पर्यटन स्थलों को संवारने जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग द्वारा पहल की जा रही है। प्राकृति ने यहां अपनी पूरी छटा बिखेरी है। घने जंगलों से आच्छादित इस जिले में नदियां और पहाड़ भी है। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की मंशानुरूप जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शासन द्वारा नित नये प्रयास किये जा रहे हैं। सैलानियों को ठहरने की सुविधा देने छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड द्वारा कुरदर और बेलगहना में रिजॉर्ट बनाया गया है वहीं पर्यटन स्थलों में पहुंचमार्ग से लेकर सौंदर्यीकरण आधारभूत सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा गया है।   
ताला
यह अतीत में वापस जाने और कालातीत मूर्तियों द्वारा मंत्रमुग्ध होने जैसा है। निश्चित रूप से अनंत काल और कलात्मक पत्थर की मूर्तियों की भूमि ताला अमेरिकापा के गांव के पास मनियारी नदी के तट पर स्थित है। ताला शिवनाथ और मनियारी नदी के संगम पर स्थित है। देवरानी-जेठानी मंदिरों के लिए सबसे मशहूर, ताला की खोज 1873-74 में जे.डी. वेलगर ने की थी, जो प्रसिद्ध पुरातत्वविद् अलेक्जेंडर कनिंघम के सहायक थे। इतिहासकारों ने दावा किया है कि ताला गांव 7-8 वीं शताब्दी ईस्वी की है। 
ताला के पास सरगांव में धूम नाथ का मंदिर है। इस मंदिर में भगवान किरारी के शिव स्मारक हैं, और मल्हार यहां से केवल 18 किमी दूर है। ताला बहुमूल्य पुरातात्विक खुदाई की भूमि है जिसने उत्कृष्ट मूर्तिकला के काम को प्रकट किया है। पुरातत्त्वविदों और इतिहासकारों को जटिल रूप से तैयार पत्थर की नक्काशी से मंत्रमुग्ध कर दिया जाता है। इन उत्कृष्ट खुदाई 6 वीं से 10 वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान ताला की समृद्धि का वर्णन करती हैं। हालांकि, विभिन्न खुदाई वाले खंडहर प्राप्त हुए और मूर्तिकला-शैली हमें विभिन्न राजवंशों को बताती है जो ताला में शासन करते थे और भगवान शिव के भक्त और शिव धर्म के प्रचारक थे। 
देवरानी - जेठानी मंदिर, अमेरीकांपा (जिला बिलासपुर)
प्राचीन काल में दक्षिण कोसल के शरभपुरीय राजाओं के राजत्वकाल में मनियारी नदी के तट पर ताला नामक स्थल पर अमेरिकापा गाँव के समीप दो शिव मंदिरों का निर्माण कराया गया। देवरानी, जेठानी मंदिर भारतीय मूर्तिकला और कला के लिए बहुत प्रसिद्ध है।
दुर्लभ रुद्रशिव  
1987-88 के दरमियान देवरानी मंदिर में प्रसिद्ध खुदाई में भगवान शिव की एक बेहद अनोखी ‘रुद्र’ छवि वाली मूर्ति प्रकट हुई। शिव की यह अनूठी मूर्ति विभिन्न प्राणियों का उपयोग करके तैयार की जाती है। यह विशाल एकाश्ममक द्विभूजी प्रतिमा समभंगमुद्रा में खड़ी है तथा इसकी उचांई 2.70 मीटर है। यह प्रतिमा शास्त्र के लक्षणों की दृष्टी से विलक्षण प्रतिमा है। इसमें मानव अंग के रूप में अनेक पशु, मानव अथवा देवमुख एवं सिंह मुख बनाये गये हैं। इसके सिर का जटामुकुट (पगड़ी) जोड़ा सर्पों से निर्मित है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ के कलाकार को सर्प-आभूषण बहुत प्रिय था क्योंकि प्रतिमा में रुद्रशिव का कटी, हाथ एवं अंगुलियों को सर्प के भांति आकार दिया गया है। इसके अतिरिक्त प्रतिमा के ऊपरी भाग पर दोनों ओर एक-एक सर्पफण छत्र कंधो के ऊपर प्रदर्शित है। इसी तरह बायें पैर लिपटे हुए, फणयुक्त सर्प का अंकन है। दुसरे जीव जन्तुओ में मोर से कान एवं कुंडल, आँखों की भौहे एवं नाक छिपकली से, मुख की ठुड्डी केकड़ा से निर्मित है तथा भुजायें मकरमुख से निकली हैं। सात मानव अथवा देवमुख शरीर के विभिन अंगो में निर्मित हैं। 
लुतरा शरीफ
बाबा सैय्यद इंसान अली शाह की दरगाह के रूप में प्रसिद्ध “लुतरा शरीफ” बिलासपुर में स्थित है। जो पुरे छत्तीसगढ़ में धार्मिक सौहार्द्र, श्रध्दा और आस्था का पावन स्थल तथा प्रमुख केंद्र माना जाता है। हजरत बाबा का पवित्र स्थल लुतरा शरीफ छत्तीसगढ़ में एक पवित्र और चमत्कारिक दरगाह के रूप में विख्यात है। यहां वर्ष भर मनौतियां मानने वालो का मेला लगा रहता है। छत्तीसगढ़ राज्य में यह एक ऐसा दरगाह है जिसकी आस्था सभी धर्माे के लोगो में है। यह दरगाह एक धर्म विशेष से ऊपर उठकर कल्याणकारी होने का जीवंत उदहारण है।यह पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। श्रद्धालु, पर्यटकों के लिए यह पवित्र दर्शनीय स्थल है। बिलासपुर क्षेत्र में धार्मिक आस्था केंद्र के रूप में विख्यात लुतरा शरीफ दरगाह में माथा टेकने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पर्यटक आते हैं।
मल्हार
मल्हार नगर बिलासपुर से दक्षिण-पश्चिम में बिलासपुर से शिवरीनारायण जाने वाली सडक पर स्थित मस्तूरी से 14 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। मल्हार में ताम्र पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक का इतिहास सजीव हो उठता है। मल्हार के उत्खनन में ईसा की दूसरी शती की ब्राम्हीव लिपी में आलेखित उक मृणमुद्रा प्राप्त हुई है, जिस पर गामस कोसलीया (कोसली ग्राम की) लिखा है। कोसली या कोसल ग्राम का तादात्यपी मल्हार से 16 किमी उत्तर पूर्व में स्थित कोसला ग्राम से स्थित जा सकता है। कोसला गांव से पुराना गढ़ प्राचीर तथा परिखा आज भी विद्यमान है, जो उसकी प्राचीनता को मौर्याे के समयुगीन ले जाती है। वहां कुषाण शासक विमकैडफाइसिस का एक सिक्का भी मिला है। सातवीं से दसवीं शदी के मध्य विकसित मल्हार की मूर्तिकला में उत्तर गुप्त युगीन विशेषताएं स्पष्ट परिलक्षित है। मल्हार में बौद्ध स्मारकों तथा प्रतिमाओ का निर्माण इस काल की विशेषता है। मल्हार में भीम किचक मंदिर, माता दाई डिड़िनेश्वरी का निवास, ऋषभदेव नाथ मंदिर, भगवान बुद्ध व महावीर की इत्यादि मूर्तियां है। यहां से ताम्र पत्र, शिलालेख और अनेक मूर्तियां खुदाई से प्राप्त हुई है। 
रतनपुर
बिलासपुर-कोरबा मुख्यमार्ग पर 25 कि.मी. पर स्थित आदिशक्ति महामाया देवी कि पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का प्राचीन एवं गौरवशाली इतिहास है। त्रिपुरी के कलचुरियों ने रतनपुर को अपनी राजधानी बना कर दीर्घकाल तक छ.ग. मे शासन किया। इसे चतुर्युगी नगरी भी कहा जाता है. जिसका तात्पर्य इसका अस्तित्व चारो युगों में विद्यमान रहा है। राजा रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर के नाम से अपनी राजधानी बसाया।   
श्री आदिशक्ति माँ महामाया देवी - लगभग नौ वर्ष प्राचीन महामाया देवी का दिव्य एवं भव्य मंदिर दर्शनीय है। इसका निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी में कराया गया था। 1045 ई. में राजा रत्नदेव प्रथम ने श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया। मंदिर के भीतर महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी स्वरुप देवी की प्रतिमाएं विराजमान है। मान्यता है कि इस मंदिर में यंत्र-मंत्र का केंद्र रहा होगा। रतनपुर में देवी सती का दाहिना स्कंद गिरा था। भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। जिसके कारण माँ के दर्शन से कुंवारी कन्याओ को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। नवरात्री पर्व पर यहाँ की छटा दर्शनीय होती है। इस अवसर पर श्रद्धालूओं द्वारा यहाँ हजारों की संख्या में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित किये जाते है। 
कानन पेंडारी
बिलासपुर शहर कानन पेंडारी चिड़ियाघर के लिए प्रसिद्ध है। यह मुंगेली रोड पर बिलासपुर से लगभग 10 किलोमीटर सकरी के पास स्थित एक छोटा चिड़ियाघर है। सिटी बस का संचालन बिलासपुर सिटी बस लिमिटेड द्वारा यात्रियों के परिवहन के लिए किया जाता है।
खूंटाघाट (खारंग जलाशय) 
खूंटाघाट बांध बिलासपुर का एक मुख्य आकर्षण स्थल है। यह बांध बिलासपुर में रतनपुर में स्थित है। यह बांध रतनपुर से करीब 4 किलोमीटर दूर है। यह बांध चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। खुटाघाट बांध को खारंग जलाशय भी कहा जाता है। यह बांध खारंग नदी पर बना हुआ है। यह बांध पर्यटकों के लिए एक अच्छी जगह है। यहां एक सुंदर गार्डन भी है।
 

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