जीत सकेंगे हृदय प्रेम से...
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
बेगानों की बस्ती में हम, आए हैं ठौर बनाने ।
जीत सकेंगे हृदय प्रेम से, सोचा करते दीवाने ।।
हाथ बढ़ाकर गले लगाया, केवल अपनापन चाहा।
द्वेष - दंभ के दावानल में, मूल्य हुए सारे स्वाहा ।
छल कर जाते मित्र बनाकर, छद्मवेष मानव देखा ।
सत्य - झूठ के बीच नहीं है, खिंची हुई कोई रेखा ।
भ्रष्ट आचरण के दलदल में, धँसते जाते मनमाने ।।
लेन-देन की आदी दुनिया ,पहले नजरों से तौले ।
लाभ-हानि का हिसाब करती , अपनाती हौले-हौले ।
हित देखे संबंधों में भी , स्वार्थ निजी देखा करते ।
देख सदा धन पद वैभव को, मृदुल बोल मुख से झरते ।
हम बनते जा रहे तंत्र के , हिस्से जाने-अनजाने ।।
कील चुभा जाता है पग में, राहों पर सच की निकले।
आँच सेंक कर आत्मबोध की, बर्फ जमी शायद पिघले।
जन्म लिया है मानव का तो, आन रखें मानवता की।
क्षुद्र सोच के तोड़ दायरे, बात करें अब समता की।
नीति जियो जीने दो वाली, अपनाएँ सब सुख पाने ।।
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