यादों का अनमोल खजाना
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
स्कूल का वह प्रांगण सुहाना।
यादों का अनमोल खजाना।।
खेल पढ़ाई सखी सहेली,
ख्वाबों में सितारे सजाना।।
प्रथम बेंच से अंतिम कोना,
रहस्यों की लड़ियाँ पिरोना।
अंतिम पन्ना बना डाकिया,
लिख-लिख करते रोना-धोना।
बीच पढ़ाई चुपके-चुपके,
मित्रों की उलझन सुलझाना।।
यादों का अनमोल खजाना।।
शशि मैडम की सुंदर आँखें,
चंचल मन को देतीं पाँखें।
अँकुराते थे सपन-सलोने,
फली बढ़ी यौवन की शाखें।।
सुखद कल्पनाओं ने सीखा,
उम्मीदों के पंख लगाना।।
यादों का अनमोल खजाना।।
आगे बढ़ने की अभिलाषा,
पढ़े मित्रता की परिभाषा।
झूठ-मूठ की रूठारूठी,
मौन मुखर जीवन प्रत्याशा।
चाक श्यामपट की लिखावटें,
जैसी कड़वाहटें मिटाना।।
यादों का अनमोल खजाना।।
---शासकीय कन्या स्कूल बेमेतरा, बैच-1988 से 2003.... वो दिन भी क्या दिन थे...
Leave A Comment