कॉमेडी को एक नया आयाम देने वाले महमूद, कभी ड्राइवर हुआ करते थे...
23 जुलाई : महमूद की पुण्यतिथि पर विशेष
आलेख - प्रशांत शर्मा
-कॉमेडी को भारतीय फिल्मों के कथानक का बनाया अंतरंग हिस्सा
लोगों को हंसाने की विलक्षण प्रतिभा के धनी प्रख्यात हास्य कलाकार महमूद को कॉमेडी को भारतीय फिल्मों का अभिन्न अंग बनाने का श्रेय जाता है। हंसी-मजाक में बड़ी खूबसूरती से जिंदगी का फलसफा बयान करने का हुनर रखने वाले इस कलाकार ने हास्य भूमिका को नए आयाम और मायने दिये।
महमूद ने भारतीय फिल्मों में महज औपचारिकता मानी जाने वाली कॉमेडी को एक अलग और विशेष स्थान दिलाया। उन्होंने कॉमेडी को एक नया स्तर और ऊंचाई देने के साथ-साथ यह भी साबित किया कि फिल्म का हास्य कलाकार उसके नायक पर भी भारी पड़ सकता है।
महमूद को भारतीय फिल्मों में कॉमेडी के नए युग की शुरुआत करने वाला कलाकार माना जाता है। इस फनकार ने कॉमेडी को भारतीय फिल्मों के कथानक का अंतरंग हिस्सा बनाया। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि 60 के दशक में फिल्मों पर कॉमेडी हावी होने लगी थी और महमूद अभिनय की इस विधा के बेताज बादशाह बन गए थे। महमूद ने 60 के दशक में अपने अभिनय की विशिष्ट शैली के जादू से हिन्दी फिल्मों में कॉमेडियन की भूमिका को विस्तार दिया और एक वक्त ऐसा भी आया जब महमूद दर्शकों के लिये अपरिहार्य बन गए। महमूद का जन्म 29 सितम्बर 1932 को मुम्बई में हुआ था। महमूद अभिनेता और नृत्य कलाकार मुम्ताज़ अली की नौ संतानों में से एक थे। महमूद ने शुरुआत में बाल कलाकार के तौर पर कुछ फि़ल्मों में काम किया था।
बॉलीवुड में कदम रखने के लिए महमूद सभी तरह के प्रयास करते थे। महमूद ने इसके लिए ड्राइविंग तक सीख ली और निर्माता ज्ञान मुखर्जी के ड्राइवर बन गए। महमूद ने सोचा की अब उन्हें कलाकारों और निर्माता, निर्देशक के करीब जाने का मौका मिलेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही। यहीं से खुली महमूद की किस्मत और उन्हें दो बीघा जमीन , प्यासा जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिल गए। 1958 में आई फिल्म परवरिश से महमूद को बड़ा ब्रेक मिला। इस फिल्म में उन्होंने राजकपूर के भाई की भूमिका निभाई थी। महमूद के अभिनय को हर किसी ने पसंद किया। इसके बाद छोटी बहन फिल्म उनके कॅरिअर की अहम फिल्म साबित हुई। इन फिल्मों की सफलता के बाद तो महमूद के लिए बॉलीवुड के दरवाजे पूरी तरह से खुल गए। महमूद ने फिल्म गुमनाम में एक दक्षिण भारतीय रसोइये का कालजयी किरदार अदा किया। उसके बाद उन्होंने प्यार किये जा, प्यार ही प्यार, ससुराल, लव इन टोक्यो और जिद्दी जैसी हिट फिल्में दीं।
बॉलीवुड में महमूद की धाक का अंदाज आप इस तरह से लगा सकते हैं कि उन्होंने अमिताभ बच्चन को पहला सोलो रोल दिया था। ये वही महमूद हैं जिन्होंने आर.डी बर्मन यानी पंचम दा जैसे संगीत के धुरंधरों को पहला ब्रेक दिया था। अपनी अनेक फिल्मों में महमूद नायक के किरदार पर भारी नजर आए। यह उनके अभिनय की खूबी थी कि परदे पर उनके कदम रखते ही दर्शक उनसे जुड़ जाते थे।
फिल्मों में अपनी बहुविविध कॉमेडी से दर्शकों को दीवाना बनाने के बाद महमूद ने अपनी फिल्म निर्माण कम्पनी पर ध्यान देने का फैसला किया। उनकी पहली होम प्रोडक्शन फिल्म छोटे नवाब थी। बाद में उन्होंने बतौर निर्देशक सस्पेंस-कॉमेडी फिल्म भूत बंगला बनाई। जिसमें उन्होंने अपने दोस्त और संगीतकार आर. डी. बर्मन को भी अभिनय करने का मौका दिया। उसके बाद उनकी फिल्म पड़ोसन 60 के दशक की जबरदस्त हिट कॉमेडी फिल्म साबित हुई। पड़ोसन को हिंदी सिने जगत की श्रेष्ठ हास्य फिल्मों में गिना जाता है। इसमें सुनील दत्त भी एक अच्छे कॉमेडी कलाकार बनकर उभरे।
आई एस जौहर के साथ उनकी जोड़ी काफ़ी मशहूर हुई थी और दोनों ने जौहर महमूद इन गोवा और जौहर महमूद इन हाँगकाँग के नाम से फि़ल्में भी कीं। निर्देशक के रूप में महमूद की अंतिम फि़ल्म थी दुश्मन दुनिया का। 1996 में बनी इस फि़ल्म में उन्होंने अपने बेटे मंज़ूर अली को पर्दे पर उतारा था। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नाकाम रही। अपने जीवन के आखिरी दिनों में महमूद का स्वास्थ्य काफी खराब हो गया। उन्हें अनेक बीमारियां हो गई थीं। वह इलाज के लिये अमेरिका गए जहां 23 जुलाई 2004 को उनका निधन हो गया। उनकी बीमारी का एक कारण उनका अत्यधिक धूम्रपान करना भी था।
महमूद ने अभिनेत्री मीना कुमारी की बहन मधु से शादी की थी। आठ संतानों के पिता महमूद के दूसरे बेटे लकी अली जाने-माने गायक और अभिनेता हैं।
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