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  धमधा में ये आफत आखिर आई क्यों....!
- धमधा को बसे करीब 8 सौ साल हो गए, लेकिन ....
आलेख- गोविंद पटेल
 तीन दिनों की बारिश से धमधा में त्राहि-त्राहि मचा दी। इतिहास में पहली बार धमधा के बाजार, शिक्षकनगर, पानी टंकी से लेकर दानी तालाब और गंडई रोड तक लबालब पानी भर गया। जिनके घरों में पानी घुस गया, उनके लिए यह बेहद पीड़ादायक समय रहा। फिलहाल स्थानीय प्रशासन ने कोष्टा तालाब के पास रोड को काटकर त्वरित समाधान निकाल लिया है। इस विपदा ने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या ऐसी स्थिति आखिर क्यों आई ? ऐसी स्थिति दोबारा न आए ? इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
 लोग कह रहे हैं कि घरों में पानी घुस गया, लेकिन क्या यह सत्य है। जी नहीं, पानी वहीं गया, जहां वह पहले भी जाता रहा है। जिन स्थानों पर पानी भरा, वह कभी गहरे खेत थे। वह पानी का ही घर था, हम लोगों ने पानी के घर में अपनी बिल्डिंग तान ली है। यह एक सबक है। उन प्लाटिंग करने वालों के लिए और प्लाट खरीदने वालों के लिए भी। जो चंद रुपयों के लिए खेतों में प्लाटिंग कर देते हैं और लोग उन्हें आंख मूंदकर खरीद लेते हैं। यह सबक उन जनप्रतिनिधि और शासन-प्रशासन में बैठे अधिकारियों के लिए भी है, जो नगर एवं ग्राम निवेश (टाउन एंड कंट्री प्लानिंग) एक्ट के नियमों का पालन नहीं करवाते। जहां भी प्लाटिंग होती है, अपने लोगों को उपकृत करने के लिए धृतराष्ट्र बन जाते हैं। जब से नगर पंचायत बना  है, तब से खेतों में प्लाटिंग हो रही है। वहां न तो नाली के लिए जगह छोड़ी जाती है और न ही पानी की निकासी की कोई योजना बनाई जाती है। प्लाट खरीदने वाले भी कम दोषी नहीं हंै, जो केवल 10-15 फीट का रास्ता देखकर प्लाट खरीद लेते हैं।
 यह भी सत्य है कि शहरों की तरह प्लाटिंग यहां नहीं हो सकती, लेकिन कम से कम नाली, सड़क, बिजली जैसी सुविधाएं तो लोगों को देखनी ही चाहिए। यदि लोग इन बातों की डिमांड करेंगे तो प्लाट काटने वाले भी इन्हें अपनी प्लाटिंग में शामिल करेंगे। धमधा में बड़े इलाके में पानी भरना एक चेतावनी है, प्लाट खरीदने वालों के लिये, प्लाट बेचने वालों के लिये, जनप्रतिनिधियों के लिये और अधिकारियों के लिये।
 दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि छै आगर छै कोरी तरिया वाले धमधा में आखिर इतना पानी कैसे आ गया? इसके लिये हमें पुरानी बातों को याद करना होगा। याद करें धमधा में कितने सारे तालाब थे, जो यहां के पानी को एकत्रित कर लेते थे। पुराना नल टंकी के पीछे रानी सागर कितना बड़ा था, अब आधा पट चुका है। हाईस्कूल के पास भोसले बाड़ी के किनारे बड़ी सी डबरी थी। शिशु मंदिर के पास दो बड़ी डबरी थी, जो आधा पट गया है। यहां से नगर का पानी गार्डन और कोष्टा तालाब के पास बने पुलिया से निकल जाता था।
 धमधा की बसाहट कोई 25-50 साल की बसाहट नहीं है, इसे बसे हुए करीब आठ सौ साल हो गए हैं। यहां 126 तालाब बनवाने वालों को बकायदा प्लानिंग करके इनका निर्माण कराया था। पानी कहां से आएगा और कहां से निकासी होगी, इसी पर्याप्त व्यवस्था की गई थी। यदि आपको यकीन नहीं है तो राजस्व रिकॉर्ड को ध्यान से देखिये। बूढ़ा नरवा जो भारती बग़ीचा से नइया तालाब तक आता है, उसकी नहर अभी भी सही सलामत है, कुछ जगह अवैध कब्जे के कारण संकरी जरूर हो गई है। उसी तरह दूसरी नहर भी थी, बिरझापुर रोड के मुनि तालाब से लेकर गंडई चौक कबीर कुटी तक। इसका खसरा नंबर 244. 243. 242 है। यह जमीन पटवारी रिकॉर्ड में आज भी दर्ज है, जो लंबाई में है। यह गंडई चौक से बिरझापुर तक जाने वाली रोड के अतिरिक्त है। यानी रोड की जमीन का अलग खसरा नंबर है और नहर का अलग। इसका प्रमाण भी आप देख सकते हैं, कबीर कुटी से लेकर बाजार रोड तक और फिर खैरागढ़ मोड़ तक। रोड़ के अलावा साइड में काफी चौड़ी जमीन छूटी हुई दिखती है। मुखराज किशोर यादव के घर के सामने, सुशील कृषि केंद्र, यादव और राजपूत फ्रेब्रिकेशन सहित सभी जगह खाली है, यह इसलिए खाली है क्योंकि यह कभी नाला रहा होगा, जिससे पानी बहते हुए गंडई चौक तक आता था और वहां से दुदहा तालाब, अलबक्शा तालाब को भरते हुए बड़े पुल में मिल जाता था। अभी इसके कुछ अवशेष दिखाई देते हैं।
 इस बार दानी तालाब के नीचे से लेकर बाजार और शिक्षक नगर में जो पानी भरा वह कहां से आया? धमधा बस्ती निचले में बसी हुई है और बरहापुर-बिरझापुर खार का पानी बस्ती तक आता है, लेकिन इसके लिए पहले नहर थी। यह नहर कैसे पट गई, इस पर विचार करें। आपको यह तो याद ही होगा कि स्टेडियम जहां बना है, वहां पहले तालाब था। उस तालाब से पानी अरूण अग्रवाल के खेतों के किनारे होते हुए दानी तालाब के नीचे से कोष्टा तालाब तक जाता था। वहां से ओवरफ्लो बड़े पुल तक कुछ वर्षों पहले तक जाता था। जब धमधा से रौंदा-अतरिया खैरागढ़ सड़क बना तो इस नाले को लोक निर्माण विभाग ने ध्यान नहीं दिया और इसे पाट दिया गया। इसी तरह धमधा से बिरझापुर रोड़ का चौड़ीकरण हुआ तो उसके पुलिया और नाले को ध्यान नहीं दिया गया। शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को इस पर ध्यान देना था, कई सालों तक अच्छी बारिश नहीं हुई तो पता ही नहीं लगा कि वह पट गया है। इस बार जो बारिश हुई, उसमें सबसे ज्यादा पानी दानी तालाब से गार्डन के बीच बनी सड़क को पार करके बाजार की ओर आया। सारे पुल और नाली बंद होने के कारण पानी घरों तक भर गया और लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ी।
 भविष्य में यह स्थिति फिर न बने, इसके लिए उस पुरानी नहर-नाली को फिर से पुनर्जीवित करना होगा, जो कभी गंडई चौक से मुनि तालाब तक जाती थी। यही नहीं धमधा में ऐसे जितनी भी जमीन नाले के लिए है, उसे चिन्हित किया जाना चाहिए। जल संसाधन मंत्री रविंद्र चौबे ने बूढ़ा नरवा (भारती बग़ीचा) से नइया तालाब तक नहर के लिए एक करोड़ रुपए स्वीकृत किए हंै। इसी तरह पूरे नगर का सर्वे करने की आवश्यकता है कि कहां पुरानी नहर थी। साथ ही लोगों को भी प्लाट खरीदते समय जागरूकता दिखानी चाहिए कि नाली के लिए कितनी जमीन छोड़ी जा रही है, यदि हम नहीं जागे तो इसी तरह की जल विभिषिका का सामना करना पड़ेगा।
 
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