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 ग्रीन स्टील की ओर जाने में लगेगा दशकों का वक्त’ : जिंदल

नई दिल्ली।‘ भारत का इस्पात उद्योग ग्रीन स्टील की दिशा में बढ़ने के लिए कमर कस रहा है। लेकिन इस उद्योग के दिग्गजों और विशेषज्ञों ने गुरुवार को कहा कि पूरी तरह बदलाव लाने में दशकों का समय लगेगा। इस बीच, उन्होंने मददगार सरकारी नीतियों और उत्सर्जन कम करने के लिए कदम उठाने की अपील की। नई दिल्ली में इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) की 14वें इंडिया मिनरल्स एंड मेटल्स फोरम में जिंदल स्टेनलेस के प्रबंध निदेशक अभ्युदय जिंदल ने कहा कि बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। उन्होंने कहा, ‘ग्रीन स्टील की दिशा में बदलाव हो रहा है और उत्पादन में कम उत्सर्जन वाली प्रक्रियाओं को अपनाना एक सही शुरुआत है।’उन्होंने कहा कि अन्य देशों में सफल बदलाव काफी हद तक सरकार की सहायक नीतियों के कारण संभव हुआ। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन जैसी नीतियों पर जोर देते हुए जिंदल ने कहा कि ये नि:संदेह इस दिशा में उद्योग के कदम का समर्थन करती हैं।
उद्योग के विश्लेषकों का भी मानना है कि ग्रीन स्टील की ओर बदलाव के लिए चरणबद्ध प्रक्रिया अपनाना महत्वपूर्ण है। जिंदल स्टील ऐंड पावर के वाइस चेयरमैन वी आर शर्मा ने कहा, ‘हालांकि पूर्ण परिवर्तन में दशकों लगेंगे, लेकिन भारतीय इस्पात निर्माताओं को व्यावहारिक कदम उठाने होंगे। इस्पात निर्माताओं को उत्सर्जन को कम करने और ऊर्जा संरक्षण के साथ यह सुनिश्चित करना होगा कि कम से कम 10 प्रतिशत नई क्षमता ग्रीन हाइड्रोजन और स्वच्छ बिजली पर आधारित हो।’उद्योग के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक इस्पात उद्योग वैश्विक कार्बन डी ऑक्साइड उत्सर्जन के लगभग 7-9 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। चूंकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक है, इसलिए उसके लिए पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने और टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने, दोनों के लिए अपनी उत्पादन प्रक्रियाओं से कार्बन हटाना जरूरी है।
गुरुवार का कार्यक्रम उन्नत ग्रीन स्टील निर्माण और देश के इस्पात उद्योग में मजबूत सर्कुलर इकॉनमी की तत्काल आवश्यकता पर केंद्रित था। सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन कम करने और पारंपरिक इस्पात उत्पादन प्रणालियों से हटने के लिए खाके की संभावना के लिए उद्योग के विशेषज्ञ एक साथ आए। इंडियन स्टील एसोसिएशन के महासचिव आलोक सहाय ने इस बात पर जोर दिया कि भारत का इस्पात क्षेत्र मजबूत घरेलू मांग और महत्वाकांक्षी इन्फ्रास्ट्रक्चर लक्ष्यों से रफ्तार ले रहा है जिसमें निर्यात एक सह-उत्पाद है।
 

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