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एनआईएसआर केवल उपग्रह नहीं, बल्कि भारत का विश्व के साथ वैज्ञानिक सहयोग : जितेंद्र सिंह

नयी दिल्ली.  विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने यहां एक बयान में कहा कि एनआईएसएआर महज एक उपग्रह नहीं है, बल्कि यह विश्व के साथ भारत का वैज्ञानिक सहयोग है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) बुधवार को दुनिया के सबसे महंगे पृथ्वी अवलोकन उपग्रह एनआईएसएआर को प्रक्षेपित करेगा, जिसे उसने प्राकृतिक संसाधनों और खतरों के बेहतर प्रबंधन के लिए ‘नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन' (नासा) के साथ मिलकर विकसित किया है। नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (एनआईएसएआर) उपग्रह के अवलोकन दुनिया भर के नीति निर्माताओं को उपलब्ध होंगे, जिससे जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए बेहतर योजनाएं तैयार करने में मदद मिलेगी। कुल 1.50 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से विकसित इस उपग्रह को बुधवार शाम 5:40 बजे इसरो के श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी मार्क-दो रॉकेट के जरिये प्रक्षेपित किया जाएगा। सिंह ने कहा कि यह मिशन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भारत को ‘विश्व बंधु' बनाने के दृष्टिकोण के अनुरूप है-एक ऐसा वैश्विक साझेदार, जो मानवता की सामूहिक भलाई में योगदान दे। उन्होंने कहा कि इसरो और नासा के बीच सहयोग वाले पहले संयुक्त पृथ्वी अवलोकन मिशन के रूप में यह प्रक्षेपण भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग के साथ-साथ इसरो के समग्र अंतरराष्ट्रीय सहयोग की दिशा में एक निर्णायक क्षण है। सिंह ने कहा, ‘‘एनआईएसएआर न केवल भारत और अमेरिका की सेवा करेगा, बल्कि दुनिया भर के देशों के लिए डेटा मुहैया कराएगा, विशेष रूप से आपदा प्रबंधन, कृषि और जलवायु निगरानी जैसे क्षेत्रों में।'' उन्होंने कहा कि मिशन की एक प्रमुख विशेषता यह है कि एनआईएसएआर में दर्ज होने वाला डेटा अवलोकन के एक से दो दिनों के भीतर स्वतंत्र रूप से सुलभ हो जाएगा, और आपात स्थिति में लगभग वास्तविक समय में उपलब्ध हो सकेगा। नासा ने मिशन के लिए एल-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार (एसएआर), जीपीएस रिसीवर और एक तैनात करने योग्य 12-मीटर का ‘अनफर्लेबल एंटीना' प्रदान किया है। एसएसआर एक उच्च-गति दूरसंचार उपप्रणाली है।
 वहीं, इसरो ने अपनी ओर से एस-बैंड एसएआर पेलोड, दोनों पेलोड को समायोजित करने के लिए अंतरिक्ष यान बस, जीएसएलवी-एफ16 प्रक्षेपण यान और सभी संबंधित प्रक्षेपण सेवाएं प्रदान की हैं। एनआईएसएआर का वजन 2,392 किलोग्राम है और इसे सूर्य-स्थिर कक्षा में स्थापित किया जाएगा, जिससे हर 12 दिनों में पृथ्वी की संपूर्ण भूमि और बर्फीली सतहों की तस्वीरें ली जा सकेंगी।

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