गहरे समुद्र की सफाई के लिए वैश्विक प्लास्टिक संधि पर आईएनसी द्वारा बातचीत जारी : डॉ. जितेंद्र सिंह
नई दिल्ली। केंद्रीय विज्ञान मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने गुरुवार को राज्यसभा को एक लिखित उत्तर में वैश्विक प्लास्टिक संधि के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गहरे समुद्र की सफाई के लिए वैश्विक प्लास्टिक संधि एक प्रस्तावित कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसका उद्देश्य उत्पादन से लेकर निपटान तक, प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र में होने वाले प्रदूषण को दूर करना है।
इस संधि पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा गठित अंतर-सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी) द्वारा बातचीत की जा रही है। इसका समझौते का लक्ष्य प्लास्टिक के लिए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था स्थापित करके 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना है, जिसमें उत्पादन में कमी, पुनर्चक्रण में सुधार और प्लास्टिक कचरे को पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश करने से रोकना शामिल है।
गौरतलब हो, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) ने राष्ट्रीय महासागर संस्थान (एनआईओटी), चेन्नई के माध्यम से 2021 में डीप ओशन मिशन (डीओएम) के तहत समुद्रयान परियोजना शुरू की। इस परियोजना के तहत, एनआईओटी एक मानव पनडुब्बी, मत्स्य 6000 विकसित कर रहा है, जिसका उद्देश्य समुद्र की खोज और अवलोकन के लिए वैज्ञानिक सेंसर के एक सूट के साथ तीन लोगों को समुद्र में 6000 मीटर की गहराई तक ले जाना है। वहीं, मत्स्य 6000 के लिए डिजाइन पूरा हो गया है, और वेट हार्बर ट्रायल्स (चालक दल और बिना चालक दल दोनों के साथ) 22 जनवरी 2025 से 14 फरवरी 2025 तक पूरे किए गए थे, जिसमें कार्यक्षमता (तैरने, वाहन स्थिरता, गतिशीलता, शक्ति, संचार और नियंत्रण उपकरणों सहित) और मानव सहायता और सुरक्षा प्रणालियों का प्रदर्शन किया गया था।
डीओएम में विशिष्ट वैज्ञानिक उद्देश्यों से जुड़े छह कार्यक्षेत्र शामिल हैं। ये इस प्रकार हैं-
-मानवयुक्त पनडुब्बी, गहरे समुद्र में खनन और पानी के नीचे चलने वाले वाहनों और पानी के नीचे चलने वाले रोबोटिक्स के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास,
-महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास
-गहरे समुद्र में जैव विविधता के अन्वेषण और संरक्षण के लिए तकनीकी नवाचार
-गहरे समुद्र का सर्वेक्षण और अन्वेषण (और अनुसंधान जहाज)
-महासागर से ऊर्जा और ताज़ा पानी, और महासागर जीवविज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन।
-आपको बता दें, इस मिशन का बजट पांच वर्षों की अवधि के लिए 4,077 करोड़ रुपए है। इस मिशन की गतिविधियां देश की नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) को बढ़ाती हैं।
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