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भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक आकर्षक स्थल, ट्रंप का बयान बिल्कुल गलत: अर्थशास्त्री भानुमूर्ति

 नयी दिल्ली. भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक आकर्षक स्थल है और पिछले तीन साल से सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है। ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का भारत की अर्थव्यवस्था को ‘मृत' बताना ‘बिल्कुल गलत' है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और मद्रास स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के निदेशक एन आर भानुमूर्ति ने रविवार को यह कहा। उन्होंने बताया कि दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के उलट, भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक घरेलू कारकों पर आधारित है। विशाल घरेलू बाजार और बढ़ते डिजिटल बाजार के साथ, अनिश्चित वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के कारण वृद्धि के मोर्चे पर जोखिम सीमित है। उल्लेखनीय है कि भारत पर 25 प्रतिशत शुल्क और रूस के साथ व्यापार करने को लेकर ‘जुर्माना' लगाने की घोषणा के बाद ट्रंप ने पिछले सप्ताह एक सोशल मीडिया मंच पर लिखा, ‘‘मुझे परवाह नहीं है कि भारत, रूस के साथ क्या करता है। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे अपनी ‘मृत अर्थव्यवस्थाओं' को एक साथ कैसे नीचे ले जा सकते हैं।'' भानुमूर्ति ने  कहा, ‘‘अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान बिल्कुल गलत है। अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था को देखें, तो भारत निश्चित रूप से संकटग्रस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक 'आकर्षक स्थल' है। पिछले तीन वर्षों से भारत सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी मुद्रास्फीति दर तीन प्रतिशत से भी कम है। अन्य सभी मानदंड जैसे चालू खाता घाटा (कैड), सार्वजनिक ऋण, विदेशी मुद्रा भंडार, सभी एक मजबूत अर्थव्यवस्था का संकेत दे रहे हैं।'' उन्होंने कहा, ‘‘अत्यधिक गरीबी लगभग समाप्त हो जाने के साथ, हम जल्द ही चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। इसी तरह, आप जिस भी आर्थिक मानदंड पर नजर डालें, भारत कमजोर स्थिति में नहीं नजर आता है।'' आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार जून में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर छह साल के निचले स्तर 2.10 प्रतिशत रही। यह भारतीय रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर (चार प्रतिशत) से कम है। वहीं चालू खाते का घाटा बीते वित्त वर्ष 2024-25 में जीडीपी का 0.6 प्रतिशत रहा। इसी प्रकार, 25 जुलाई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.70 अरब डॉलर बढ़कर 698.19 अरब डॉलर पहुंच गया। प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा, ‘‘अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के उलट, भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक घरेलू कारकों पर आधारित है। विशाल घरेलू बाजार और बढ़ते डिजिटल बाजार के साथ, अनिश्चित वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के कारण वृद्धि के मोर्चे पर जोखिम सीमित है। इसके अलावा, चूंकि निवेश का एक बड़ा हिस्सा घरेलू बचत (चालू खाता घाटा एक प्रतिशत से भी कम) से समर्थित है, इसलिए वैश्विक जोखिम का प्रभाव सीमित है।'' उन्होंने कहा, ‘‘हालाकि, हमें अपने बढ़ते युवाओं के लिए अधिक रोजगार सृजित करने के लिए विनिर्माण क्षेत्र के विस्तार पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।'' यह पूछे जाने पर कि क्या हमारी अर्थव्यवस्था शुल्क संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत है, भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘वैश्वीकृत दुनिया में, किसी अर्थव्यवस्था की मजबूती केवल घरेलू कारकों पर ही निर्भर नहीं करती, बल्कि यह इस बात पर भी निर्भर करती है कि हमारे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ वैश्विक संबंध कितने मजबूत हैं। कोई भी देश अलग होने का जोखिम नहीं उठा सकता। अब तक, भारत का प्रदर्शन इस मामले में शानदार रहा है।'' उन्होंने कहा, ‘‘ज्यादा महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था की स्थिरता है और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक स्थिरता के मामले में भारत को शीर्ष पर होना चाहिए। भारत ने कई देशों के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाए हैं और वैश्विक दक्षिण की एक मजबूत आवाज भी बना है। लेकिन अगर उसे सालाना छह से सात प्रतिशत की दर से बढ़ना है, तो उसे अभी भी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहना होगा। वैश्विक वृद्धि के अभाव में, हम शायद केवल पांच से छह प्रतिशत की दर से ही वृद्धि कर पाएंगे।'' अमेरिकी शुल्क के भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘चूंकि अमेरिका के साथ व्यापार में भारत अधिशेष की स्थिति में है, इसलिए 25 प्रतिशत शुल्क का निर्यात पर प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, यह विशिष्ट वस्तुओं पर निर्भर करता है और इससे निपटने के लिए एक विशिष्ट रणनीति की आवश्यकता है।'' उन्होंने कहा, ‘‘पेट्रोलियम और सेवाएं जैसे क्षेत्र शुल्क के दायरे में नहीं आते हैं और इन क्षेत्रों में भारत मजबूत और प्रतिस्पर्धी है। रूस से कच्चे तेल के आयात पर लगने वाले जुर्माने (वास्तव में जुर्माने की राशि के बारे में अस्पष्टता) को लेकर चिंता अधिक है और भारत इससे कैसे निपटेगा, यह एक बड़ी चुनौती है। अन्य देशों के साथ व्यापार समझौते रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो सकते हैं। साथ ही भारत और रूस को अन्य व्यापार समूहों के साथ रणनीतिक गठजोड़ के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। भारत पहले ही ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौता कर चुका है और यूरोपीय संघ के साथ भी घनिष्ठ संबंध रखता है। ऐसे व्यापार समझौते भारत को घरेलू हितों को बनाए रखते हुए अपने व्यापार में विविधता लाने में मदद कर सकते हैं।

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