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 चैतन्य-रामानंद संवाद (भाग - 3)
  जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत  प्रवचन
 जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत यह प्रवचन भक्तिमार्गीय उपासकों के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें उन्होंने साधन और साध्य के संबंध में प्रवचन दिया है। श्री चैतन्य महाप्रभु जी तथा श्री राय रामानंद जी के मध्य हुई आधात्मिक चर्चा का उन्होंने बड़ी गहराई में तथा सारगर्भित विवेचन किया है। श्री कृपालु महाप्रभु जी अपने श्रीमुखारविन्द से कहते हैं.....
 
(पिछले भाग से आगे, भाग - 3)
तो उन्होंने कहा, सख्य भाव से भक्ति करें। वो हमारे सखा हैं, अब तो कान पकड़ सकते हैं। अरे, घोड़ा बनाया ग्वालों ने ठाकुर जी को, कन्धे पर बैठे। सखाओं को इतना बड़ा अधिकार है। उन्होंने कहा, ठीक है, लेकिन फिर भी अभी और अंदर के कमरे में चलो।
 तो उन्होंने कहा, फिर तो वात्सल्य भाव है जैसे मैया यशोदा ने रस पाया ठाकुर जी का। और चलो अंदर एक दम। तो उन्होंने कहा कि ठाकुर जी को प्रियतम मान लें। हाँ, अब आ गये ठिकाने पर, यही सर्वोच्च भाव है। प्रियतम माने क्या होता है? सब कुछ, सब कुछ माने नम्बर एक पति, नम्बर दो बेटा, नम्बर तीन सखा, नम्बर चार स्वामी। जब जो चाहे बना लो। रिश्ते बदलते जायें, डरें नहीं कि अब जब पति मान लिया है तो बेटा कैसे मानें? ये संसार में बीमारी है कि पति को बेटा मत मानो, बोलो भी नहीं, मानना तो दूर की बात। नहीं पिट जाओगे, लोग पागलखाने में बन्द कर देंगे। लेकिन भगवान के यहाँ ऐसा नहीं है। वो कहते हैं, मैं सब कुछ बनने को तैयार हूँ। एक-एक सेकण्ड में चेंज करो। ये सर्वश्रेष्ठ भाव है और सबसे सरल। 
 कोई नियम नहीं है इसमें। कायदा-कानून नहीं है। अब देखो, दास अगर हम बनते हैं और भगवान को स्वामी मानते हैं तो कितनी बड़ी समस्या है? भरत ने क्या कहा था,

सिर बल चलउँ धरम अस मोरा।
सब  ते  सेवक  धरम  कठोरा।।
 
जहाँ स्वामी का चरण पड़े, गुरु का चरण पड़े, वहाँ हमारा सिर पडऩा चाहिये। तो क्या हम सिर के बल चलेंगे? ये पॉसिबल कहाँ है? जब राम-सीता वनवास को जा रहे थे तो पीछे-पीछे लक्ष्मण चलते थे। तो दोनों चरण-चिन्हों को बचा-बचा कर चलते थे। कितना कठिन है -

सेवाधर्म- परमगहनो योगिनामप्यगम्य:। (भतृहरि)
 
इससे कम परिश्रम सख्य भाव में है, उससे कम वात्सल्य भाव में है लेकिन माधुर्य भाव में कोई नियम नहीं। (क्रमश:...)
 (शेष प्रवचन अगले भाग में)
( प्रवचनकर्ता -जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
प्रवचन स्त्रोत -साधन-साध्य पत्रिका, मार्च 2010 अंक
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।)
 

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