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 जानिए हरतालिका पूजन का कब है शुभ मुहुर्त....
हरतालिका अथवा हरितालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं। यह तीज का त्योहार भाद्रपद माह की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते हैं। खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्योहार मनाया जाता है। कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरितालिका का व्रत श्रेष्ठ समझा गया है। यह व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। इसलिए इस व्रत को सबसे कठिन व्रत में माना जाता है। 
हरितालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी और गणेश जी की पूजा का महत्व है।  महिलाएं बालू से भगवान शिव के लिंग का निर्माण करती हैं और फुलेरा से इसे आकर्षक रूप से सजाकर पूजा-अर्चना करती हैं।    पूजा के समय सुहाग का सामान, फल पकवान, मेवा व मिठाई आदि चढ़ाई जाती है। पूजन के बाद रात भर जागरण किया जाता है, इसके बाद दूसरे दिन सुबह गौरी जी से सुहाग लेने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। इस व्रत में सायं के पश्चात चार प्रहर की पूजा करते हुए रातभर भजन-कीर्तन, जागरण किया जाता है। दूसरे दिन सुबह सूर्योदय के समय व्रत संपन्न होता है। शिव जैसा पति पाने के लिए कुंवारी कन्याएं इस व्रत को विधि-विधान से करती हैं।  सौभाग्यवती महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के साथ यह व्रत रखती हैं।  
कथा- इस व्रत में कथा का विशेष महत्व है। कथा के बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है। 
 पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। हिमालय पर गंगा नदी के तट पर माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की। माता पार्वती की यह स्थिति देखकप उनके पिता हिमालय बेहद दुखी हुए। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो, वे विलाप करने लगी।
 एक सखी के पूछने पर उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही हैं।  उस वक्त पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा कर जंगल पहुंचाया ताकि वे अपना तप जारी रख सके। इस कारण इस व्रत को हरतालिका या हरितालिका कहा गया है, क्योंकि हरत  मतलब अगवा करना एवं  आलिका  मतलब सहेली अर्थात सहेलियों द्वारा अपहरण करना  हरतालिका  कहलाता है। इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
 तभी से अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए कुंवारी कन्या और सौभाग्यवती स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
शुभ मुहूर्त -भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है।
हरितालिका तीज पूजा मुहूर्त- सुबह 5 बजकर 54 मिनट से सुबह 8:30 मिनट तक।
शाम को हरितालिका तीज पूजा मुहूर्त- शाम 6 बजकर 54 मिनट से रात 9 बजकर 6 मिनट तक।
तृतीया तिथि प्रारंभ- 21 अगस्त की रात रात 2 बजकर 13 मिनट से।
तृतीया तिथि समाप्त- 22 अगस्त रात 11 बजकर 2 मिनट तक।
 व्रत नियम - हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता है, अर्थात पूरे दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता।  व्रत का नियम है कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता। इसे प्रति वर्ष पूरे नियमों के साथ किया जाता है। हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता है।  महिलाएं नए वस्त्र पहनकर, श्रृंगार करती हैं और विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करती हैं। भगवान शिव की पिंडी स्थापित कर जिस घर में ये पूजा आरंभ की जाती है, वहां इस पूजा का खंडन नहीं किया जा सकता अर्थात इसे एक परम्परा के रूप में प्रति वर्ष किया जाता है।
सुखद दांपत्य जीवन और मनचाहा वर प्राप्ति के लिए यह व्रत विशेष फलदायी है। व्रत करने वाले को मन में शुद्ध विचार रखने चाहिए। यह व्रत भाग्य में वृद्धि करने वाला माना गया है। इस व्रत के प्रभाव से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है। नकारात्मक विचारों का नाश होता है। 
इस व्रत में व्रती को शयन निषेध है। रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करें। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है। यह व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए। छत्तीसगढ़ में इस त्योहार का खास महत्व रहा है। शादी-शुदा महिलाएं  यह व्रत और पूजा अपने मायके में जाकर करती हैं। इस व्रत के पहले दिन छत्तीसगढ़ में कड़ु भात खाने की परंपरा है यानी करेले की सब्जी जरूर खाई जाती है। कुछ जगहों पर खीरा और भुट्टे का सेवन भी व्रत से पहले शुरू किए जाने का रिवाज है। 
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