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  23 सितंबर से राहु बदलेंगे चाल, राहु-केतु का राशि परिवर्तन देश के लिए कैसा साबित होगा, देखिए..
23 सितंबर से राहु की चाल बदल रही है।  इसका देश पर क्या असर पड़ेगा. ये बता रहे हैं जाने-माने ज्योतिषाचार्य पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी....
भारत वर्ष की जन्मकुंडली के ग्रह स्वतंत्र भारत का प्रादुर्भाव 15 अगस्त सन 1947 की मध्यरात्रि 12.20 बजे बुध के नक्षत्र आश्लेषा के प्रथम चरण में कर्क राशि पर चंद्रमा की यात्रा के समय हुआ। उस समय में क्षितिज पर वृषभ लग्न स्पर्श कर रहा था। वृषभ लग्न की भारत की जन्मकुंडली में लग्न में ही राहु, द्वितीय भाव में मंगल तथा तृतीय भाव में सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र और शनि बैठे हैं जबकि, बृहस्पति छठें तथा केतु सप्तम भाव में विराजमान हैं। इस प्रकार से सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य ही हैं इसलिए भारत की कुंडली पर अनंत नामक कालसर्प योग भी बना हुआ है, अनंत कालसर्प योग का प्रभाव  अनंत  नामक कालसर्प योग के प्रभावस्वरूप जातक को आरंभ से सफलताओं के लिए कठोर परिश्रम तो करना पड़ता है किंतु वह सामान्य स्तर से कार्य-व्यापार तथा नौकरी की शुरुआत करके अपनी क्षमता के बल पर जीवन के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचता है। 
ज्योतिषाचार्य पं. प्रियाशरण त्रिपाठी के अनुसार सभी बारह कालसर्प योगों में कई योग ऐसे भी हैं जो प्राणियों को आसमान से जमीन पर लाकर खड़ा देते हैं और कई योग ऐसे भी हैं जो रंक को भी राजा बना देते हैं। एक सामान्य व्यक्ति को भी बहुत बड़ी पदवी प्रदान करा देते हैं। यह अनंत नामक कालसर्प योग उन्हीं में से एक है जो रंक को राजा बनाने की क्षमता रखता है। यही योग भारत की जन्मकुंडली में बना हुआ है इसी के प्रभाव से भारतवर्ष एक न एक दिन विश्वगुरु की पदवी प्राप्त करते हुए विश्व में अपना वर्चस्व कायम करने में पूर्णत: सफल रहेगा। वर्तमान समय में भारत की जन्मकुंडली में  6 जुलाई 2011 से राहु की महादशा चल रही है, राहू स्वयं लग्न में विराजमान है और अपनी ही राशि के हैं इसलिए यह दशा निश्चित रूप से देश और देश की जनता के लिए अच्छी कही जाएगी। इनकी महादशा में 19 जून 2019 से बुध की अंतर्दशा भी प्रारंभ हो चुकी है जो 6 जनवरी 2022 तक चलेगी। बुध महादशा स्वामी से तीसरे पराक्रम भाव में बैठे हैं और अंतर्दशा स्वामी बुध से राहु एकादश भाव में हैं जो अति शुभ फलदायक रहेगा। बुध पंचमेश होकर पराक्रम भाव में विराजमान है जहां पर पंचग्रही योग भी बना हुआ है। पराक्रम भाव में पंचग्रही योग के प्रभाव स्वरूप भारत का अपना वर्चस्व दिन प्रतिदिन बढ़ता जाएगा। भारतवर्ष की जन्मकुंडली में उदय के समय जो राहू लग्न में विराजमान थे वही गोचर करते हुए पुन: 23 सितंबर को वृषभ राशि अर्थात भारत की लग्नराशि में प्रवेश कर रहे हैं। इस प्रकार से लग्न और गोचर दोनों तरह से यह वृषभ राशि में 18 महीनों तक रहेंगे। इनके साथ ही केतु भी राशि परिवर्तन करके सप्तम भाव में वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे। केतु इस राशि के लिए अप्रत्याशित परिणाम देने वाले कहे गए हैं। इन दोनों का गोचर भारतवर्ष के ऊपर विराजमान सभी तरह की विषम परिस्थितियों से लडऩे में मदद तो करेगा ही चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध की स्थिति को भी टालने में मदद करेगा। किसी कारणवश यदि युद्ध होता भी है तो इन ग्रहों के प्रभाव स्वरूप भारत विजयी होकर अपना वर्चस्व कायम करने में सफल रहेगा।
भारत के प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी जी की वृश्चिक लग्न तथा वृश्चिक राशि ही है। लग्न में चंद्रमा और मंगल बैठे हैं जिसमें गोचर करते हुए केतु 23 सितंबर को प्रवेश करेंगे। मोदी जी की राशि पर राहु की पूर्ण दृष्टि में पड़ रही है। हो सकता है सरकार कुछ ऐसा निर्णय निर्णय ले जिसका जनमानस में कुछ विरोध भी हो किंतु, यह अधिक समय तक नहीं रहेगा। प्रधानमंत्री मोदी की लग्न राशि बृश्चिक और भारत की जन्मकुंडली की लग्न राशि बृषभ का केंद्र भाव का संबंध है। मोदी जी की चंद्र राशि बृश्चिक का भारत की राशि कर्क से मूल त्रिकोण का संबंध है यह एक तरह से लक्ष्मी विष्णु योग की तरह है जो देश के लिए अति लाभदायक सिद्ध होगा। राहु-केतु के राशि परिवर्तन का शीर्ष नेतृत्व पर अति सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जिससे वे देशहित में निर्णय लेने के लिए और मजबूती से उभर कर सामने आएंगे इसलिए यह गोचर परिवर्तन देश के लिए किसी वरदान से कम नहीं रहेगा।

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