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जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के वेदादिक सम्मत विलक्षण प्रवचनों की अनूठी हैं विशेषतायें
- विश्व के पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अवतारगाथा सम्बन्धी लेख :::::::
 जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज -प्रवचन शैली
 भारतवर्ष के 500 शीर्षस्थ विद्वानों की तत्कालीन सभा काशी विद्वत परिषत ने जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज को 14 जनवरी 1957 को जब पंचम मौलिक जगद्गुरु की उपाधि प्रदान की, तब उन्होंने अपने पद्यप्रसूनोपहार में उनके लिये यह श्लोक कहा था;
 
यद्व्याख्याननवीनमेघपटलध्वानेन चित्ताटवी नास्तिक्योपहतात्मनामपि मुदा सूक्ते विवेकाङ्कुरम।
स्फूर्जत्तर्कविचारमंत्रनिवहव्यक्षिप्तदुर्भावना-भूतावेशविषश्चिरं विजयतामेकोयमीड्यो नृणाम।।
(पद्यप्रसूनोपहार, काशी विद्वत परिषत, 1957)
 
अर्थात... श्री कृपालु जी का प्रवचन नूतन जलधार की गर्जना के समान है। यह नास्तिकता से पीडि़त मन की व्यथा को हरने वाला है। प्रवचन को सुनकर चित्त रूपी वनस्थली दिव्य भगवदीय ज्ञान के अंकुर को जन्म देती है, कुतर्कयुक्त विचारों से विक्षप्त तथा दुर्भावना से पीडि़त मनुष्यों की रक्षा करने में श्री कृपालु जी महाराज अमृत औषधि के समान हैं। उनकी सदा ही जय हो...
 
श्री राधाकृष्ण भक्ति के मूर्तिमान स्वरुप भक्तियोगरसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के दिव्यातिदिव्य प्रवचनों का रसास्वादन देश विदेश के लाखों धर्म-पिपासु जन प्रत्येक दिन कर रहे हैं। प्राचीन ब्रजरस महारसिकों ने जो श्री राधाकृष्ण की दिव्य लीलाओं की रसवृष्टि ब्रज में की थी, उसी परंपरा में आचार्यश्री का प्रवचन संकीर्तन आदि का स्वरुप है।
 
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विश्व के महान दार्शनिक, महान विद्वान एवं महान संत थे। आपके प्रवचनों को सुनते समय ऐसा अनुभूत होता है कि आपके श्रीमुख से नि:सृत एक एक शब्द मानों स्वयं साक्षात् रुप में चारों वेद, उपनिषद, पुराण, स्मृति, गीतादि प्रकट होकर बोल रहे हों। आपकी भाषा शैली पूर्णत: शुद्ध एवं आकर्षक है। आपको अनेक भाषाओं जैसे संस्कृत, हिंदी, अरबी, फ़ारसी एवं उर्दू का पूर्ण ज्ञान है। विश्व के सभी प्रमुख धर्मों और धर्मग्रंथों पर भी आपका पूर्ण अधिकार था। उन्होंने शास्त्र-वेदों के अथाह ज्ञान का निचोड़ निकालकर हमारे समक्ष रख दिया है, जिन्हें कई जन्मों में स्वयं पढ़कर नहीं समझा जा सकता है।
 
जनमानस उनके प्रवचन सुनकर यह अनुभव कर लेता है कि जीवन को जीने के लिये न केवल भौतिकवाद बल्कि आध्यात्मवाद का भी समन्वय अपने जीवन में लाना होगा।
 
यह बात उल्लेखनीय है कि,
 
(1) ये पहले जगद्गुरु हैं जो 93 वर्ष की आयु में भी समस्त उपनिषदों, भागवतादि पुराणों, ब्रम्हसूत्र, गीता आदि के प्रमाणों के नंबर इतनी तेज गति से बोलते थे कि सभी श्रोता जिसने भी उनके प्रवचन सुने, चाहे टीवी के माध्यम से, चाहे व्यक्तिगत रुप से वह हृदय से स्वीकार करता है कि ऐसी अलौकिक प्रतिभा संपन्न विद्वान आज तक नहीं हुआ। श्रोत्रिय ब्रम्हनिष्ठ होने में तो कोई संदेह है ही नहीं, ये तो कृष्णम् वन्दे जगद्गुरुम् ही हैं।
 
(2) सभी महान संतों ने मन से ईश्वर भक्ति की बात बताई है, जिसे ध्यान, सुमिरन, स्मरण या मेडिटेशन आदि नामों से बताया गया है। श्री कृपालु जी ने प्रथम बार इस ध्यान को  रूपध्यान  नाम देकर स्पष्ट किया कि ध्यान की सार्थकता तभी है जब हम भगवान् के किसी मनोवांछित रुप का चयन करके उस रुप पर ही मन को टिकाये रहें। मन को भगवान् के किसी एक रुप पर केंद्रित करने का नाम ही ध्यान या भक्ति है क्योंकि भगवान् के ही एक रुप पर मन को न टिकाने से मन यत्र तत्र संसार में ही भागता रहेगा। भगवान् को तो देखा नहीं, तो फिर उनके रुप का ध्यान कैसे किया जाय, उसका क्या विज्ञान है, उसका अभ्यास कैसे करना है आदि बातों को - भक्तिरसामृतसिन्धु, नारद भक्ति सूत्र, ब्रम्हसूत्र आदि के द्वारा प्रमाणित करते हुए श्री कृपालु जी महाराज ने प्रथम बार अपने ग्रन्थ  प्रेम रस सिद्धांत  में बड़े स्पष्ट रुप से समझाया है।
 
श्रोताओं के मुख से -
 
जब श्रोता उनको टीवी पर सुनते हैं और अचानक समय पूरा होने के कारण प्रवचन या कीर्तन बंद हो जाता है तो वे ऐसा अनुभव करते हैं मानो किसी प्रीतिभोज में वे अपनी सबसे प्रिय वस्तु का सेवन कर रहे हों और कोई अचानक आकर उनसे छीन ले। जिस दिन प्रवचन नहीं सुन पाते तो ऐसा लगता है जैसे आज का दिन व्यर्थ चला गया हो। जब कभी कुछ सौभाग्यशाली श्रोता श्री महाराज जी के दर्शन के लिए आते तो कहते - 'महाराज जी ! आपने हमारे कान, आँख, सब खऱाब कर दिए। आपको सुनने के पश्चात् किसी और का सुनना अच्छा ही नहीं लगता बल्कि आपके प्रवचन सुन सुनकर इतना तत्वज्ञान आपकी कृपा से हो गया है कि और कोई बाबा बोलता है तो लगता है कि गलत बोल रहा है, नामापराध न हो जाय इस भय से और कुछ सुनना ही बंद कर दिया.. 
 
-अद्वितीय प्रवचन श्रृंखलाएं :::::
 
(1) मैं कौन? मेरा कौन? - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने इस विषय पर 103 प्रवचन दिये हैं, जिसमें उन्होंने मैं अर्थात जीवात्मा तथा मेरा अर्थात जीवात्मा के सर्वस्व भगवान के मध्य सम्बन्ध सहित आध्यात्म जगत के सम्पूर्ण तत्वों का वेदादिक सम्मत विवेचन इस 103-प्रवचन की अद्वितीय श्रृंखला में किया है।
 
(2) ब्रम्ह, जीव, माया तत्वज्ञान - तीन सनातन तथा अनादि तत्वों ब्रम्ह, जीव तथा माया; इन पर जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने 40-प्रवचन दिये हैं।
 
इनके अलावा भी अनगिनत आध्यात्मिक विषयो पर प्रवचन श्रृंखलाएँ, स्वरचित पदों की तथा स्वरचित दोहों की व्याख्याओं के अनगिनत प्रवचन उन्होंने अपने अवतारकाल में जीवों के कल्याणार्थ दिये हैं। जिनमें जनमानस को यह बड़ी सरलता से ज्ञात हो जाता है कि वह आजपर्यन्त क्यों दु:खी है, संसार क्या है, कैसे वह सुख की प्राप्ति करेगा, भगवान कौन हैं और भगवान से उसका संबंध क्या है, कैसा है और कैसे भगवान को वह पावे? यदि कोई निरन्तर गंभीर तथा चिन्तनशील होकर उन्हें श्रवण करे तो निश्चय ही अज्ञान का समूल नाश होकर हृदय ज्ञान तथा भगवत्प्रेम से सराबोर हो जायेगा।
 
भारत में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के टीवी पर आने वाले प्रवचनों का समय -

न्यूज 18 इंडिया -प्रतिदिन सुबह 6.00 से 6.25 बजे
न्यूज 24 -सोम से शुक्र, सुबह 6.25 से 6.50 बजे
भारत समाचार - प्रतिदिन सुबह 6.50 से 7.15 बजे
साधना चैनल -प्रतिदिन सुबह 8.05 से 8.30 बजे
आस्था चैनल - प्रतिदिन शाम 6.20 से 6.45 बजे
संस्कार चैनल -सोम से शनि, रात्रि 8.30 से 8.55 बजे
 
नोट - कार्यक्रम परिवर्तनशील हैं, वर्तमान दिनांक तक के अनुसार समय-सारणी का यह विवरण है। 

(सन्दर्भ -जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज साहित्य में विशेषांक जैसे जगदगुरुत्तम (अवतारगाथा), भगवत्तत्व तथा अन्य साधन साध्य पत्रिकायें
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।)

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