जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की संकीर्तन पद्धति की विशेषता कैसी थी?
विश्व के पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अवतारगाथा सम्बन्धी लेख :::::::
-- जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज - संकीर्तन पद्धति
जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु संकीर्तन के माध्यम से नित्य नवायमान दिव्य सुधा रस का पान कराते थे। जब वह स्वयं संकीर्तन कराते थे, वह रस अवर्णनीय है। प्रत्येक साधक यही अनुभव करता था, मानो अंग प्रत्यंग में अमृत का संचार हो रहा हो। प्रेमावतार गुरुदेव के एक एक अंग से, एक एक रोम से ऐसी सुधा धारा प्रवाहित होती थी कि मन करता था सहस्त्रों नेत्रों से, सहस्त्रों कर्णों से इस सौंदर्य, रुप, सुधा माधुरी का पान किया जाय। किन्तु इन प्राकृत इन्द्रियों द्वारा एक बूँद का आस्वादन भी नहीं हो सकता। कोई रसिक ही समझ सकता था कि वे संकीर्तन गाते समय अथवा नयी पंक्तियाँ बनाते समय प्रेमराज्य की किस भूमिका पर होते थे।
संकीर्तन शिरोमणि कृपालु महाप्रभु ने संकीर्तन की 3 पद्धतियों (व्यास, नारद तथा हनुमत) को अपनाया है। किन्तु उनका अपना ही विलक्षण अद्वितीय ढंग है। श्री राधाकृष्ण के नित्य नवायमान एवं प्रतिक्षण वर्धमान प्रेम से ओतप्रोत नित्य नवीन रचनाओं द्वारा ब्रजरस वितरित करना उनका स्वभाव है। प्रेमोन्मत्त अवस्था में आचार्य श्री के श्रीमुख से नित्य नवीन संकीर्तन नि:सृत होते थे। एक ही भाव के संकीर्तन विभिन्न प्रकार से प्रकट कर दिए और उनका नए नए प्रकार से गान किसी भी साधक के मन को श्यामा श्याम में सहज रुप से ही आसक्त कर देता है।
ईश्वरीय प्रेम को नारद जी ने प्रतिक्षण वर्धमानं कहा है इसी रस को कृपालु महाप्रभु ने संकीर्तन में स्थापित करके यह सिद्ध कर दिया है कि नाम और नामी समान हैं। इनके अनुसार जिस दिन जीव को यह विश्वास हो जायेगा कि भगवान् और उनका नाम दो नहीं है, एक ही है, तुरंत भगवत्प्राप्ति हो जायेगी। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने भक्तियुक्त चित्त द्वारा संकीर्तन को ही कलियुग में भगवत्प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन बताया है जो वेद शास्त्र सम्मत है।
इसके अनुसार जीव का चरम लक्ष्य श्रीकृष्ण का माधुर्य भाव युक्त निष्काम प्रेम प्राप्त करना है तदर्थ श्रवण, कीर्तन, स्मरण इन 3 साधनों में भी स्मरण भक्ति प्रमुख है। सरलता से भगवत्स्मरण हो सके एतदर्थ नित्य नवीन नवीन रचनाओं की अमूल्य निधि द्वारा इन्होंने दुर्लभ युगल रस का वितरण करके कलिमल ग्रसित अधम जीवों को भी ब्रजरस में निमज्जित किया।
समस्त वेदों शास्त्रों में कलिकाल में भवरोग के निदान के लिए एकमात्र हरिनाम संकीर्तन को ही औषधि बताया गया है। कलियुग में श्रीराधाकृष्ण का गुणानुवाद ही समस्त भवरोगियों के लिए रामबाण औषधि है। किन्तु इस घोर कलिकाल में अनेक अज्ञानियों, असंतों द्वारा ईश्वरप्राप्ति के अनेक मनगढ़ंत मार्गों, अनेकानेक साधनाओं का निरुपण सुनकर भोले भाले मनुष्य कोरे कर्मकांडादि में प्रवृत्त होकर भ्रांत हो रहे हैं।
ऐसे में अज्ञानान्धकार में डूबे जीवों के वास्तविक मार्गदर्शन के लिए जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने दिव्य प्रेम रस मदिरा से ओतप्रोत स्वरचित अद्वितीय ब्रजरस संकीर्तनों द्वारा 'रूपध्यान' की सर्वसुगम, सर्वसाध्य, सरलातिसरल पद्धति से पिपासु जीवों को हरि नामामृत का पान कराकर ईश्वरीय प्रेम में सराबोर किया।
वे स्वयं तो उस दिव्य प्रेमरस में डूबे ही रहते थे और सभी साधकों को भी संकीर्तन के माध्यम से बरबस प्रेम रस में नखशिख सराबोर करते रहते थे। ब्रजरसिकों ने जिस श्री राधाकृष्ण प्रेम माधुरी का वर्णन अपने साहित्य में किया है उसी दिव्य प्रेम रस को जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने कीर्तनों में पूर्ण रूपेण समाविष्ट कर दिया है जिसका श्रवण, मनन व कीर्तन भावुक हृदयों को श्यामा श्याम की प्रेम रस माधुरी से परिप्लुत कर देता है।
उनके अनेक संकीर्तन आनंदकंद सच्चिदानंद श्री राधाकृष्ण के सांगोपांग शास्त्रीय रूपध्यान में अत्यंत सहायक है। प्रत्येक अंग का सौंदर्य चित्रण, उनकी लीला माधुरी, श्रृंगार माधुरी इतनी मनोहारी है कि बहुत कम प्रयास से ही साधक के मानस पटल पर युगल सरकार की सजीव झाँकी अंकित हो जाती है। अत: उनके ये अद्वितीय दिव्य प्रेम रस परिपूर्ण संकीर्तन एवं रूपध्यानकी अनूठी पद्धति साधक समुदाय के लिए परम उपयोगी है।
ब्रजरसयुक्त उनके द्वारा रचित दिव्य संकीर्तन साहित्य :
1. प्रेम रस मदिरा (1008 पद अर्थ सहित),
2. राधा गोविन्द गीत (11111 दोहे),
3. भक्ति शतक (100 दोहे और व्याख्या),
4. श्यामा श्याम गीत (ब्रजरसपरक 1008 दोहे)
5. ब्रज रस माधुरी (भाग 1 से 4),
6. युगल शतक (श्रीराधा तथा श्रीकृष्ण संबंधित 100 कीर्तन)
7. युगल माधुरी,
8. युगल रस,
9. श्री राधा त्रयोदशी (श्रीराधा रुप आदि पर 13 पद)
10. श्री कृष्ण द्वादशी (श्रीकृष्ण रुप आदि पर 12 पद)
11. संकीर्तन सरगम।
इन दिव्य संकीर्तन ग्रन्थों के विषय में कल के लेख में सविस्तार जानेंगे। ये सभी संकीर्तन पुस्तकें उनके आश्रमों (मनगढ़, वृन्दावन, बरसाना, दिल्ली) तथा उनके प्रचारकों के पास उपलब्ध हैं।
सन्दर्भ : जगद्गुरु कृपालु साहित्य/ JKP Magazines
सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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