भगवत्प्रेम तथा हिन्दी-रस साहित्य का अनुपम ग्रन्थ है श्री कृपालु महाप्रभु विरचित प्रेम रस मदिरा ग्रन्थ
विश्व के पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अवतारगाथा सम्बन्धी लेख :::::::
-- जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज - प्रगटित ब्रजरस साहित्य
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज रसिक शिरोमणि हैं, जिन्होंने अपने अनगिनत प्रवचनों में न केवल श्रीराधाकृष्ण की सर्वोच्च भक्ति अर्थात माधुर्य भाव और उसमें भी समर्था रति, जिसे गोपी-प्रेम कहा जाता है; का सांगोपांग निरुपण किया बल्कि अपने द्वारा प्रगट किये गये ब्रजरस-साहित्यों में उस रस-साम्राज्य की हर एक झाँकी को साक्षात कर दिया है। इन रस-साहित्यों की सर्वप्रमुख विशेषता है कि इनमें स्वसुख की कामना की किंचित मात्र भी गंध नहीं है अपितु यह साहित्य-समुद्र तो हृदय को श्रीराधाकृष्ण की नाम, रुप, लीला, गुण, धाम आदि माधुरियों में बरबस निमज्जित, बरबस ओतप्रोत कर देता है।
भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित ब्रजरस साहित्यों की सूची इस प्रकार है : प्रेम रस मदिरा (पद ग्रन्थ), राधा गोविन्द गीत (दोहा ग्रन्थ), श्यामा श्याम गीत (दोहा ग्रन्थ), भक्ति-शतक (दोहा ग्रन्थ), युगल शतक (कीर्तन ग्रन्थ), युगल रस (कीर्तन ग्रन्थ), ब्रज रस माधुरी (4 भाग, कीर्तन ग्रन्थ), श्री राधा त्रयोदशी (पद ग्रन्थ), श्री कृष्ण द्वादशी (पद ग्रन्थ), युगल माधुरी (कीर्तन ग्रन्थ)
इन ग्रन्थों के एक-एक शब्द, एक-एक पंक्ति में ज्ञान, प्रेम तथा रस की ऐसी गहराई है जिसकी कोई थाह नहीं है। जो जैसा और जितना बड़ा पैमाना लेकर जायेगा, वह वैसा और उतना अधिक इसका अनुभव कर सकेगा।
आज हम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा विरचित प्रेम-रस-मदिरा ग्रन्थ के विषय में कुछ जानेंगे, इस ग्रन्थ की विशेषतायें इस प्रकार हैं :::::::
प्रेम-रस-मदिरा ग्रन्थ
विशेषतायें एवं सम्मतियां
(1) आनन्दकन्द श्रीकृष्ण-चन्द्र को भी क्रीतदास बना लेने वाला उन्हीं का परम अन्तरंग प्रेम तत्व है तथा यही प्रत्येक जीव का परम चरम लक्ष्य है। प्रेम-रस-मदिरा ग्रन्थ में इसका विशद निरुपण किया गया है तथा इसकी प्राप्ति का साधन भी बतलाया गया है।
(2) यह पद-ग्रन्थ है तथा ब्रजभाषा में रचित है। इसमें कुल 1008 पद हैं।
(3) ये सभी 1008 पद कुल 21 माधुरियों में विभक्त हैं।
(4) ये 21 माधुरियां हैं - सद्गुरु, आरती, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, प्रेम, श्रीकृष्ण बाललीला, श्रीराधा बाललीला, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, युगल, लीला, महासखी, निकुन्ज, मिलन, मान, मुरली, होरी, विरह, रसिया तथा प्रकीर्ण माधुरी।
(5) इस ग्रन्थ के पदों में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को कहीं भी स्थान नहीं दिया गया है। रस-साहित्य का यह अद्वितीय ग्रन्थ है।
(6) सगुण-साकार ब्रम्ह की सरस लीलाओं का रस-वैलक्षण्य विशेषरूपेण श्री कृष्णावतार में ही हुआ है। अत: इन सरस पदों का आधार उसी अवतार की लीलायें हैं तथा ये वेद शास्त्र, पुराणादि सम्मत तथा अनेक महापुरुषों की वाणियों के मतानुसार हैं।
(7) श्रीराधाकृष्ण की रुप-माधुरी पर आधारित एक पद दृष्टव्य है। यह पद प्रेम-रस-मदिरा ग्रन्थ की युगल-माधुरी से है (संख्या 19) ::::
हमारे मन, बसे युगल सरकार।
गौर वरनि वृषभानुनन्दिनी, नील वरन रिझवार।
गरबाहीं दीने दोउ ठाढ़े, मंजु निकुंज मझार।
उत पहिरे नीलांबर सोहति, इत पीतांबर धार।
उत सोरह सिंगार सजीं उत, नटवर भेष सँवार।
उत सिंगार मध्य छवि सोहति, इत छवि मधि श्रृंगार।
बड़भागी 'कृपालु' जिन छिन-छिन, जोरी युगल निहार।।
(8) सिद्धान्त-पक्ष का भी इस ग्रन्थ में बड़ा सुन्दर तथा विशद निरुपण किया गया है, सिद्धान्त-माधुरी का यह पद दृष्टव्य है (संख्या 77) ::::
मिलत नहिं नर तनु बारम्बार।
कबहुँक करि करुणा करुणाकर, दे नृदेह संसार।
उलटो टाँगि बाँधि मुख गर्भहीनज़ समुझायेहु जग सार।
दीन ज्ञान जब कीन प्रतिज्ञा, भजिहौं नन्दकुमार।
भूलि गयो सो दशा भई पुनि, ज्यों रहि गर्भ मझार।
यह 'कृपालु' नर तनु सुरदुर्लभ, सुमिरु श्याम सरकार।।
(9) प्रेम-रस-मदिरा ग्रन्थ के विषय में हिन्दी-साहित्य जगत के कुछ विद्वानों की सम्मतियां ::::
...संत कृपालुदास की प्रस्तुत कृति सूर, मीरा, नन्ददास, रसखान, भारतेन्दु आदि समर्थ कवियों की कला कृतियों की परम्परा का एक नवीन पुष्प है, जिसका हास-विलास लोकोत्तर भावों की सफल अभिव्यक्ति से ओतप्रोत है। उनके पदों की कोमल पदावली संगीतात्मक है, उसमें अनुभूति की तीव्रता है और उसकी कुशल अभिव्यक्ति भी है...
(डॉ. रामकुमार वर्मा, साकेत-12 सितम्बर 1955, एम.ए. पी.एच. डी. एवं रीडर, हिन्दी डिपार्टमेन्ट, प्रयाग विश्वविद्यालय)
...प्राय: सामान्य कवि प्रेम और भक्ति पर लिखा ही करते हैं; किन्तु इस प्रकार लिखना कि उससे भक्ति-प्रेमरस संचरित हो, केवल उन्हीं पवित्रात्माओं और भावानुभूत सहृदयों का काम है जिनमें वस्तुत: प्रेम और भक्ति का सत्य स्वरुप प्रकाशित होता है। प्रेम और भक्ति पर लिखा तो प्राय: जाता है और बहुत लिखा जाता है, किन्तु उसमें सत्यता और शुद्धता का यथेष्टांश प्राय: बहुत ही कम रहता है। मुझे हर्ष है कि यह रचना हिन्दी-साहित्य-सेवियों को श्री कृपालुदास जी की कृपा से प्राप्त हुई है...
(सुमित्रानन्दन पंत, डायरेक्टर, ऑल इण्डिया रेडियो, हिन्दी प्रोग्राम)
(10) इस प्रकार इस रस-साहित्य का यह किंचित मात्र माहात्म्य वर्णन है, क्योंकि रसिकों के उद्गार की माहात्म्यता का वर्णन कोरी शुष्क तथा मायिक बुद्धि से कर पाना तो सर्वथा असम्भव है। आशा है कि सुधि रसिक पाठकगण इस ग्रन्थ का अवलोकन करने को प्रेरित होंगे।
ग्रन्थ प्राप्ति के स्थान :::::
जगद्गुरु कृपालु परिषत के मुख्य आश्रम,
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रचारक-गण
जगद्गुरु कृपालु परिषत की साहित्य वेबसाइट www.jkpliterature.org
यूट्यूब चैनल www.youtube.com/JKP Prem Ras Madira
(यह ग्रन्थ बिना अर्थ के तथा अर्थ सहित दोनों रुप में उपलब्ध है। अर्थ सहित यह 2 भागों में प्रकाशित हुई है।)
सन्दर्भ : जगद्गुरु कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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