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  श्रीमद्भागवत पुराण में किसतरह से की गई है काल गणना
 भागवत पुराण हिन्दुओं के  18  पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम्  या केवल भागवतम् भी कहते हैं। इसका मुख्य वण्र्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण के रचयिता वेद व्यास को माना जाता है।
श्रीमद्भागवत पुराण  में काल गणना भी अत्यधिक सूक्ष्म रूप से की गई है। वस्तु के सूक्ष्मतम स्वरूप को  परमाणु  कहते हैं। दो परमाणुओं से एक  अणु और तीन अणुओं से मिलकर एक  त्रसरेणु बनता है। तीन त्रसरेणुओं को पार करने में सूर्य किरणों को जितना समय लगता है, उसे  त्रुटि  कहते हैं। त्रुटि का सौ गुना  कालवेध  होता है और तीन कालवेध का एक  लव होता है। तीन लव का एक निमेष, तीन निमेष का एक क्षण तथा पांच क्षणों का एक काष्टा होता है। पन्द्रह काष्टा का एक लघु, पन्द्रह लघुओं की एक नाडि़का अथवा दण्ड तथा दो नाडि़का या दण्डों का एक मुहूर्त होता है। छह मुहूर्त का एक प्रहर अथवा याम होता है।
एक चतुर्युग (सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग, कलि युग) में बारह हज़ार दिव्य वर्ष होते हैं। एक दिव्य वर्ष मनुष्यों के तीन सौ साठ वर्ष के बराबर होता है।
जैसे कि-
1.  सत युग- चार हज़ार आठ सौ वर्ष का हुआ। 
2. त्रेता युग- तीन हज़ार छह सौ वर्ष का हुआ। 
3. द्वापर युग- दो हज़ार चार सौ  वर्ष का हुआ। 
4. कलि युग- एक हज़ार दो सौ वर्ष का है। 
प्रत्येक मनु 7 लाख 16 हजार 114 चतुर्युगों तक अधिकारी रहता है। ब्रह्मा के एक  कल्प  में चौदह मनु होते हैं। यह ब्रह्मा की प्रतिदिन की सृष्टि है। सोलह विकारों (प्रकृति, महत्तत्व, अहंकार, पांच तन्मात्रांए, दो प्रकार की इन्द्रियां, मन और पंचभूत) से बना यह ब्रह्माण्डकोश भीतर से पचास करोड़ योजन विस्तार वाला है। उसके ऊपर दस-दस आवरण हैं। ऐसी करोड़ों ब्रह्माण्ड राशियां, जिस ब्रह्माण्ड में परमाणु रूप में दिखाई देती हैं, वही परमात्मा का परमधाम है। इस प्रकार पुराणकार ने ईश्वर की महत्ता, काल की महानता और उसकी तुलना में चराचर पदार्थ अथवा जीव की अत्यल्पता का विशद् विवेचन प्रस्तुत किया है।
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