साधक सावधानी : जिस साधक ने एक क्षण को भी गुरु के सिद्धान्तों को भुलाया तो उसका पतन अवश्य होगा!!
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 254
(भूमिका ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा भक्तिधाम मनगढ़ में 15 अक्टूबर सन 1966 को दिये गये प्रवचन का एक अंश, इसमें बड़ी महत्वपूर्ण बात समझाई गई है कि साधक जब गुरुवचनों को भूल जाता है, तो किस संकट में फँस जाता है!!...)
..माया के अधीन जितने भी जीव हैं उनमें सब दोष हैं, क्योंकि सब दोषों की जननी माया है। जिस प्रकार एक बीज में अंकुर भी रहता है और डाल भी रहती है, पत्ते और फल भी रहते हैं। किन्तु सब सूक्ष्म रुप में रहने के कारण दिखाई नहीं देते। जब कोई बीज खेत में डाला जाता है तो सारी चीजें समय पर मिल जाती हैं। इसी प्रकार से इस मायारूपी बीज में उसकी शाखायें आदि काम क्रोधादि सूक्ष्म रूप से सब विद्यमान रहते हैं।
जब भगवत्प्राप्ति पर माया समाप्त होती है तब ही ये सब के सब दोष इकट्ठे समाप्त होते हैं। एक-एक नहीं। कोई कहे कि एक चला जायेगा, दूसरा वहीं रहेगा। यह नहीं हो सकता है। एक कभी नहीं जायेगा। जब ईश्वर भक्ति करते हैं तब भी यह दोष रहते हैं लेकिन लोगों को आश्चर्य होता है जब किसी साधक का पतन होता है। भगवत्प्राप्ति के एक सेकंड पहले तक भी, इतनी ऊँची अवस्था पर पहुँचने पर भी, महापुरुषत्व के पास पहुँचने पर भी, वह एक क्षण में राक्षस तक बन सकता है। इसके लिये इतना बड़ा प्रकरण अजामिल का है। अजामिल के लिये भागवत में लिखा है - सत्यवादी, जितेन्द्रिय, संयमात्मा। सभी गुण उसके पास थे जो महापुरुष में होते हैं। अर्थात महापुरुष के पास की क्लास में वह पहुँच चुका था। मन पर उसका पूर्ण कंट्रोल था। जिस क्षण में मन से कहा गुस्सा करो, गुस्सा कर दिया। जिस क्षण में कहा हँस दो, हँस दिया। उसका अन्तःकरण उसका सर्वेन्ट बनकर रहता था।
वह जब कोई कामना बनाना चाहता है तभी बन सकती है, वह कामना के अधीन नहीं रहता। किसी कामना को बनाकर जिस क्षण में चाहे कामना से अलग हो जाय। इतनी शक्ति जिसके पास हो वह जितेन्द्रिय कहलाता है। जो अभी मन के अण्डर में है, वह अभी साधक ही है। ऐसी स्थिति में पहुँचने पर भी अजामिल गिर गया और एक क्षण में गिरा, एक मिनट उसको नहीं लगा। स्त्री-पुरुष के मिलन का एक दृश्य देखा और उसके देखते ही एक क्षण में उसका इतना बड़ा पतन हुआ कि उसको पापियों का शिरोमणि कहा गया लेकिन आप लोगों को छोटे मोटे साधकों के गिरने में आश्चर्य हो जाता है। अरे इसका क्या आश्चर्य है? आश्चर्य तो इसका है कि कोई जीव थोड़ा ऊँचा किस प्रकार से उठ गया, एक आँसू श्यामसुन्दर के लिये कैसे निकल गया? अनंतकाल से संसार को अपना मानने वाला, संत या भगवान से प्यार कैसे करने लगा?
उस पर आप आश्चर्य नहीं करते, उसे तो नेचुरल समझते हैं। (टॉर्च हाथ से उठाकर) यह टॉर्च पृथ्वी की बनी हुई, इसलिये पृथ्वी की ओर जाने में इसको कोई परिश्रम थोड़े ही करना है। केवल इसको छोड़ दीजिये। चली गई। मन ने जरा लापरवाही की कि पतन हुआ। पतन करने के लिये कुछ करना नहीं पड़ता। जरा संत और भगवान के वाक्यों को भुला लीजिये। संत और भगवान को खोपड़ी से निकाल दीजिये, बस पतन हो जायेगा। उसके लिये कोई साधन मनन नहीं करना पड़ेगा। वह तो नीचे की ओर स्वतः ही भागता है, संसार की ओर भागने की तो उसकी नेचुरल प्रवृत्ति है, सजातीय धर्म है (मन भी माया का बना है, अतः वह माया के सजातीय है)। इसलिये यह आश्चर्य कभी नहीं होना चाहिये कि अमुक साधक का पतन कैसे हो गया? अपने आप को सँभालने का प्रयत्न करते रहना चाहिये। अपनी-अपनी फिक्र करो, दूसरे के बारे में न सोचो, न बोलो, न देखो, न गन्दी भावनायें करो। नहीं तो सारी गन्दगी तुम्हारे अन्दर आ जायेगी, तुम्हारे अन्तःकरण में भर जायेगी और थोड़ा बहुत शुद्ध हुआ अन्तःकरण पुनः खत्म हो जायेगा। यह भयंकर कुसंग है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2001 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)
Leave A Comment