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  सकाम तथा निष्काम भक्त और उनकी भावना में क्या अन्तर होता है? दोनों में कौन किस प्रकार से श्रेष्ठ है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 260

(भूमिका ::: विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने अलौकिक दिव्य तत्वज्ञान से कलिमलग्रसित हम अबोध जीवात्माओं को भगवत-मार्ग पर आरुढ़ होने के लिये परमोज्जवल रोशनी प्रदान की है, जिसके प्रकाश में अंतर्मन का अज्ञानान्धकार सहज ही छटने लग जाता है! उनके श्रीमुख से निःसृत प्रवचन साधन-पथ के पाथेय हैं!!)

साधक का प्रश्न ::: सकाम-निष्काम का तात्पर्य क्या है?

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: 'सकाम' शब्द सुना होगा आप लोगों ने, और एक 'निष्काम' शब्द होता है। ये सकाम कई प्रकार का होता है। एक सकाम होता है जो भगवान से हम संसार माँगते हैं। खास तौर से संसार माँगना और भगवान से प्यार नहीं है। कम्पलीट सरेन्डर नहीं है। पूर्ण सम्बन्ध नहीं है। तो ये तो ऐसा मजाक है जैसे कोई गाड़ी जा रही है और हम लिफ्ट माँगें उससे बिना जान पहचान के। 'ऐ! जरा रोकना गाड़ी।' 'क्या बात है?' 'हमको जाना है जरा सेवा कुंज।' 'ऐं, हमारे पास समय नहीं है, और जगह नहीं है, हमको वहाँ नहीं जाना है....!!' क्योंकि उसका सम्बन्ध तो है नहीं। अगर सम्बन्ध हो, 'अरे श्रीवास्तव जी! आप भले आये। देखो, ऐसा है कि ये एक्सीडेन्ट हो गया है हमारे बेटे का, अस्पताल पहुँचाना है।' तो वो कहेंगे, 'ठीक है, आइये आइये, मैं पहुँचा देता हूँ' - क्योंकि सम्बन्ध है। अब जब सम्बन्ध ही नहीं है भगवान से, खाली मुसीबत पड़ी तो हमने कहा 'हे भगवान् ! दया करो, कृपा कर दो, हम को ये कर दो, वो कर दो।' प्रायः नाइन्टी नाइन परसेन्ट संसार में ऐसे ही सकाम हैं। मंदिरों में जाकर, बाबाओं के पास जाकर, मन्नत करते हैं, माँगते हैं, बिना सम्बन्ध के।

दूसरे होते हैं जिनकी पूर्ण शरणागति पूर्ण सम्बन्ध भगवान से है। जैसे ध्रुव वगैरह। ये संसार माँगते हैं। ध्रुव का अपमान हुआ था तो वो संसार माँगने लगे कि राज्य हमको मिले, भगवान के पास गये। तमाम ऐसे हैं। द्रौपदी ने पुकारा, गजराज ने पुकारा, तमाम सकाम भक्त ऐसे हुये हैं जो शरीर के लिये, संसार के सुख के लिये कामना किये और भगवान से माँगा और भगवान ने दिया। वो तो जो कुछ माँगोगे, देंगे। तुम्हारा नुकसान हो, फायदा हो, तुम जानो। जो अल्पज्ञ होते हैं ये दो प्रकार के होते हैं। एक तो घोर मूर्ख हैं जो बिना सम्बन्ध के माँगता है। उसको मिलता-विलता नहीं है। लेकिन जैसे बाईचान्स कोई पुत्र की कामना से वैष्णो देवी गया और उसके पुत्र हो गया। तो उसने कहा-  'जय हो! जय हो! माता जी ने सुन लिया हमारी।' दोबारा फिर वो पुत्र बड़ा सीरियस बीमार हुआ, तो फिर माता जी के पास गया कि माँ उसको बचा लो। वो मर गया। 'अरे! कुछ नहीं, कोई वैष्णो देवी नहीं।' वो नास्तिक हो जायेगा। तो ये तो घोर मूर्ख है, संसार में भी ऐसा कोई नहीं करता है कि अपरिचित से जाकर कहे कि हम को दस लाख दे दो, बेटी का ब्याह करना है। अरे भई! कौन दे देगा ऐसे भला। तो नम्बर दो वाला जो है भगवान से सम्बन्ध है, प्यार है, शरणागति है और संसार माँगता है उसको भगवान दे तो देंगे लेकिन वो मूर्ख है।

भागवत में कहा गया कि जो भगवान से संसार माँगता है वो घोर मूर्ख है। 'मनोग्राह्य' माने संसार। अरे! भगवान के पास तो अनन्त वस्तुयें हैं। अलौकिक, स्प्रिचुअल, दिव्यानन्द, दिव्यज्ञान, दिव्य लोक, सब चीज दिव्य-दिव्य, उसको छोड़कर संसार माँगता है। लेकिन भगवान देंगे उसको। बाद में भले वैराग्य हो जाय उसको संसार से। ध्रुव को भी हो गया था वैराग्य। फिर भगवान से उन्होंने कहा- 'महाराज ! हमसे गलती हो गई। संसार की कामना को लेकर मैंने आपकी भक्ति की। अब मुझे संसार नहीं चाहिये। तो भगवान ने कहा; 'भई देखो ! मेरी बदनामी होगी कि संसार माँगा और भगवान ने नहीं दिया। तो तुमको राज्य करना पड़ेगा। जाओ छत्तीस हजार वर्ष राज्य करो, उसके बाद फिर हम अपने यहाँ बुला लेंगे।' तो सकाम भक्त इस प्रकार का जो होता है, उसका भी कल्याण हो जाता है बाद में, लेकिन है वो मूर्ख।

और तीसरा होता है सकाम भक्त जो भगवान से ही भगवान का सामान माँगता है। जैसे आँख से भगवान का दर्शन, कान से, नासिका से, रसना से, त्वचा से, सब इन्द्रियों से भगवान को ही माँगता है। संसार नहीं माँगता। 'मनोग्राह्य' को नहीं माँगता, मायिक वस्तु नहीं माँगता। ये उच्चकोटि का है। है सकाम। लेकिन उच्च कोटि का है। ये क्यों माँगता है भगवान से? नम्बर एक इसलिये कि संसार का अटैचमेन्ट समाप्त हो, ये फायदा मिला पहला। नम्बर दो जब भगवान मिलेंगे उसको, मान लो, आँख से दर्शन चाहता है और भगवान का दर्शन हुआ। तो, 'क्यों बुलाया हमको भई तुमने? ' पूछेगे भगवान।  'खाली दर्शन के लिये बुलाया?' 'नहीं नहीं महाराज! हमारे गुरु जी ने कहा कि जब भगवान मिलें तो उनसे प्रेम माँगना। प्रेम, दिव्य प्रेम।' 'क्या करोगे ले के दिव्य प्रेम? और कुछ ले लो।' 'नहीं महाराज? दिव्य प्रेम दो तो फिर आपकी सेवा करेंगे। आपको सुख देंगे। अपने सुख के लिये नहीं माँग रहे हैं। आप से सामान माँग कर आपकी सेवा करेंगे।' ये निष्काम हो गया। यानी सकाम का प्रारंभ हुआ उनका दर्शन माँगा उसने, लेकिन दर्शन अन्तिम लक्ष्य नहीं है। अन्तिम लक्ष्य है निष्कामता। सेवा करना। तो वो प्रेम माँगने के लिये उनको बुलाया। तो ये सकाम वन्दनीय है, श्रेष्ठ है। क्योंकि इसका लक्ष्य निष्काम है । और ये करना पड़ेगा सबको।

भगवान का दर्शन होना ये हम अपने सुख के लिये नहीं कह रहे हैं। हम उनकी सेवा करेंगे, उनको सुख देंगे, इसलिये हम उनका दर्शन चाहते हैं। तो ये निष्काम को प्राप्त करने के लिये थोड़ा-सा सकाम है। ये सबको करना है और सब करते हैं, सब बड़े-बड़े महापुरुष। भगवान की कामना ही खतम हो जायेगी तो फिर प्रेम क्या हुआ? हम दर्शन नहीं चाहते उनको कष्ट होगा, ये तो नास्तिक भी कह देगा बैठे-बैठे। बड़ा अच्छा है भई! आप भक्ति-वक्ति नहीं करते? हाँ जी, देखो ऐसा है कि हम तो निष्काम हैं। हम भगवान की भक्ति करें, उनका दर्शन, उनको कष्ट हो बेचारों को, हम ये नहीं चाहते। ऐसा निष्काम पागल है। वो निष्काम नास्तिक है। भगवान के दर्शनादि की कामना तो होनी ही चाहिये। संसार या मोक्ष ये चीजें भगवान् से माँगना ये निन्दनीय है। यहाँ तक कि भगवान के लोक में रहने आदि की कामना भी बुरी नहीं है। अरे, वो तो अन्तिम क्लास की चीजें हैं। लेकिन फिर भी उससे भी आगे एक कदम निष्काम भक्त होता है जो उनकी इच्छा के अनुसार चाहता है। बस कुछ नहीं। आपकी इच्छा हो आपके पास रहें ,आपकी इच्छा है, नहीं तुम वहाँ जाओ प्रचार करो। हाँ जैसी आज्ञा। जाओ तुम ऐसा नहीं करो, ऐसा करो। बिल्कुल ऐसा ही करेंगे, जैसे आपको सुख मिले। एक एम (लक्ष्य)। ये सकाम - निष्काम का संक्षिप्त रहस्य है।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज
०० स्त्रोत : 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक (भाग - 3)
०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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