भगवान श्रीराम के प्राकट्योत्सव पर पढ़ें जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी के साहित्यों में वर्णित 'श्रीराम-तत्व' के विषय में!!
मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी के प्राकट्योत्सव 'श्रीराम-नवमी' की अनंत-अनंत शुभकामनायें!!
'आजु अवध महँ प्रकटे राम,
बोलो जय राम, जय राम जय जय राम।'
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज
अनंतकोटि ब्रम्हाण्डनायक दशरथ-कौशल्यानंदन सियावर प्रभु श्रीरामचन्द्र जी का आज प्राकट्योत्सव है। भगवान श्रीराम अनंत गुणों के समुद्र हैं, जिनकी महिमा अनंत संतों ने गाई है।
पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने भी अपने रस-साहित्यों व प्रवचनों में भगवान श्रीरामचंद्र जी के पवित्र नामों तथा उनके गुणों का गान करते हुये उनकी वन्दना की है। आइये उन्हीं के द्वारा प्रगटित साहित्यों में से कुछ आधार लेकर हम भी अपने परमाराध्य श्रीराम जी की स्तुति करें तथा उनके वास्तविक तत्व का परिचय प्राप्त करें :::
(1) स्तुति एवं कृपा की याचना :
नृप दशरथ नंदन श्रीराम, जनकनंदिनी सीता बाम..
तुमहिं श्याम हो तुम ही राम, परम कृपालु कृपा करु राम..
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु विरचित)
(2) 'प्रेम-रस-मदिरा' ग्रंथ, सिद्धान्त-माधुरी खंड के 27वें पद में श्रीराम-तत्व पर प्रकाश :
अवध के राम बने ब्रज श्याम।
लखन बने बलराम जानकी, राधारानी नाम।
त्रेता में बड़भ्रात राम भये, द्वापर में बलराम।
मुकुट, ग्रीव, कटि, पद टेढ़ो करि, प्रकटे चंचल राम।
योगारूढ़ जीव हित कीन्ही, लीला रास ललाम।
पग पलुटावति सदा जानकी, रामहिं येहि ब्रजधाम।
इनमें भेद 'कृपालु' मान जो, नरकहुँ नाहीं ठाम।।
भावार्थ ::: अयोध्या के भगवान राम ही ब्रज में श्याम (कृष्ण) बनकर प्रकट हुये। लक्ष्मण जी बलराम बन गये एवं श्री जानकी (सीता) जी राधारानी के नाम से प्रख्यात हुईं। त्रेता में बड़े भाई राम हुये एवं द्वापर में बड़े भाई बलराम हुये। भगवान राम ब्रज में मुकुट, गर्दन, कमर एवं पैरों को टेढ़ा करके चंचल स्वभाव से प्रकट हुये एवं मायातीत जीवों के लिये आदर्श स्थापित करते हुये दिव्य रासलीला का अभिनय किया। ब्रज में श्री जानकी जी ने भगवान राम से अपने चरण दबवाये। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि इन दोनों (राम-कृष्ण) में जो भेदभाव रखता है वह नामापराधी है, उसको नरक में भी स्थान नहीं मिल सकता।
(3) भगवान के सगुण साकार अवतार धारण करने का उद्देश्य :::
'..भगवान का जब सगुण साकार अवतार होता है तो अपना नाम, रूप, लीला, गुण, धाम - यह वह छोड़ जाते हैं जिसका अवलम्ब लेकर अनन्तानन्त जीव भगवान के प्रेमानन्द को प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ अगर श्रीकृष्ण का अवतार न होता तो शुकदेव श्रीकृष्ण के लिये व्याकुल न होते। जब उन्होंने भगवान के दयालुता के गुण को सुना कि पूतना जो उन्हें जहर पिलाने के लिये गई उसको भी अपना लोक दे दिया, वे तुरन्त व्याकुल हो गये। जीवन्मुक्त होने पर भी वे पहली कक्षा में पहुँच गये। भागवत को सुना और परीक्षित को सुनाया। बिना सगुण साकार अवतार लिये भगवान के सगुण साकार नाम, रूप, गुण, लीला, धाम का विस्तार हमको मिलता और बिना इसके प्राप्त हुये घोर मायाबद्ध जीव किस प्रकार भगवत्प्राप्ति करते, इसलिये जीव कल्याण के लिये ही भगवान का अवतार होता है...' (सन्दर्भ - साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2011 अंक, पृष्ठ 15)
(4) हम कलिमलग्रसित जीव क्या करें? श्रीराम कैसे मिलेंगे?
'...आँसू बहाने से अन्तःकरण शुद्ध होगा, याद कर लो सब लोग, रट लोए कृपालु का वाक्य। भोले बालक बनकर रोकर पुकारो, राम दौड़े आयेंगे। सब ज्ञान फेंक दो, कूड़ा-कबाड़ा जो इकट्ठा किया है। अपने को अकिंचन, निर्बल, असहाय, दीन-हीन, पापात्मा रियलाइज करो, भीतर से, तब आँसू की धार चलेगी, तब अन्तःकरण शुद्ध होगा, तब गुरु कृपा करेगा। गुरु की कृपा से राम के दर्शन होंगे, राम का प्यार मिलेगा और सदा के लिये आनन्दमय हो जाओगे...' (सन्दर्भ - साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2010 अंक, पृष्ठ 52)
(5) सनातन वैदिक धर्म के संवाहक वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त तत्वदर्शन (विशेषता) :::
पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने रस-साहित्यों तथा प्रवचनों में जहाँ श्रीराधाकृष्ण तथा ब्रजरसपरक पद-कीर्तन तथा दर्शन का विशद वर्णन किया है वहीं अनगिनत स्थानों पर रघुकुलशिरोमणि दीनबन्धु भगवान श्रीराम के गुणों का भी वर्णन करते हुये उनकी स्तुति की है तथा वेदादिक शास्त्रों में निरूपित श्रीराम-तत्व का भी विशद वर्णन किया है, जिसमें उन्होंने राम तथा कृष्ण - दोनों की एकता अथवा अभेदता का स्पष्ट प्रतिपादन किया है। आचार्य श्री ने श्रृंगवेरपुर, चित्रकूट, अयोध्या, नासिक, रामेश्वरम सभी स्थानों पर भक्त मंडली के साथ जाकर श्रीराम-नाम, गुणादि का संकीर्तन कराया है। 'हरे राम' महामंत्र का तो उन्होंने नित्य प्रति ही संकीर्तन किया है। कई बार अखंड संकीर्तन भी हुआ इसी महामंत्र का। छः महीने की लंबी अवधि तक भी 'हरे राम' संकीर्तन हुआ है। अतः श्री कृपालु महाप्रभु जी ने राम-कृष्ण में अभेद माना है। श्रीवृन्दावन स्थित प्रेम-मन्दिर, बरसाना धाम स्थित कीर्ति-मन्दिर तथा भक्तिधाम मनगढ़ स्थित भक्ति-मन्दिर तीनों ही स्थानों पर उन्होंने श्रीसीताराम एवं श्रीराधाकृष्ण दोनों के ही दिव्य विग्रह स्थापित किये हैं। रामनवमी का पर्व भी उसी हर्षोल्लास के साथ मनाया जैसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और श्रीराधाष्टमी।
पुनः आप सभी सुधि तथा भगवत्प्रेमी पाठक जनों को 'श्रीराम नवमी' की अनन्तानन्त शुभकामनायें!!
०० 'साधन साध्य' पत्रिका तथा 'प्रेम रस मदिरा' तथा 'ब्रज रस माधुरी' ग्रंथ से लिये गये उद्धरण ::: सर्वाधिकार सुरक्षित, © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं)
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