भगवान कब, कैसे मिलेंगे
-विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचन श्रृंखला
(भाग - 2)
(पिछले भाग से आगे...)
हम अकेले नहीं हैं। मनुष्य का डर तो हम मानते हैं और भगवान का डर नहीं मानते। अगर यहीं पर हजार नोट रुपए की गड्डी या एक लाख रुपए कहीं पड़े हों, हम देख रहे हैं, हां लेकिन सब देख रहे हैं, अगर हम उठायेंगे इसको और रखेंगे पर्स में, तो जिसका होगा वह कहेगा ए, ए, ए, ए! क्या कर रहा है? तब मेरी भद्द हो जायेगी और जब सब चले गये अपने-अपने घर और फिर भी पड़ा है रुपया, तो उठाकर जेब में रख लिया, इसका मतलब क्या?
कि हम मनुष्यों से तो डरते हैं, भगवान से नहीं डरते। वह अन्दर बैठा बैठा देख रहा है, नोट कर रहा है, हमारे कर्मों का फल देगा, यह फीलिंग क्यों नहीं होती? सोचो! इसे बार-बार सोचो और अभ्यास करो। अगर यह अभ्यास हो जाए तो भगवत प्राप्ति में कुछ नहीं करना धरना। न कोई कर्म है, न कोई ज्ञान है, न कोई योग है। केवल,
अस्तीत्येवोप्लब्धस्य तत्व भाव: प्रसीदति।
वेद कहता है केवल तुम मान लो, मैं तुम्हारे हृदय में हूं, मैं सब जगह व्याप्त हूं। यह मान लो, मान लो और हर समय माने रहो। ऐसा नहीं कि आधा घंटा मान लिया और फिर भूल गये।
किसी को कष्ट देते हो, गाली देते हो, अपमान करते हो, तो क्यों भूल जाते हो कि उसके हृदय में श्यामसुन्दर हैं, उसको हम दु:खी क्यों करें? यह गलत है, पाप है। तो यह बात केवल अनुभव करें हम। हर समय महसूस करें, भगवान हमारे अंत:करण में बैठे हैं और हमारे आइडियाज़ नोट करते हैं।
(क्रमश:, शेष प्रवचन अगले भाग में)
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