भगवान कब, कैसे मिलेंगे
-विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचन श्रृंखला
(भाग - 3)
(पिछले भाग से आगे...)
देखो, आजकल परीक्षा होती है, हाईस्कूल, इण्टर वगैरह की। एक लड़का बैठकर पेपर दे रहा है, उसका उत्तर लिख रहा है। उसकी बगल वाला लड़का बहुत अधिक काबिल है, लेकिन नकल करेंगे तो वो पकड़ लेगा और फिर ऐसा भी हो सकता है कि उसकी यह परीक्षा ही बेकार चली जाए, इस डर से वह नकल नहीं करता। संसार से हम लोग इतना डरते हैं कि अपराध से बचते रहते हैं। अगर संसार का डर न हो तो सब प्रलय हो जाए। एक- दूसरे को खा जायं।
हम मन में चोरी-चोरी सोचते हैं -देखा न! यह बड़ा लाट साहब बना हुआ है। देखो तो, एक दूसरे को देख कर के जलते हैं। हम यह पाप क्यों कमाते हैं, इससे कुछ फायदा होगा क्या? वह अरबपति है, हम अगर ईष्र्या करेंगे तो क्या वह अरबपति हमको दे देगा दस-बीस लाख? अरे! हम अपना नुकसान कर रहे हैं। तो सब जगह, सबमें भगवान को देखना, मानना, बस! यही करने से भगवत प्राप्ति हो जाती है।
धन्ना, जाट और बड़े-बड़े महापुरुष हमारे यहां अंगूठा छाप हुये, लेकिन उन्होंने केवल विश्वास कर लिया और उन्हें भगवत प्राप्ति हो गई। उन्होंने न कोई जप किया, न तप किया, न व्रत किया, न पूजा किया, न पाठ किया। विश्वास हमारे हृदय में हो कि वह (भगवान) सब जगह हैं, वह हमारे आइडियाज़ नोट कर रहे हैं।
इसका अभ्यास करो रोजाना, आदत पड़ जायेगी। जैसे आप लोग अपना कपड़ा पहनते हैं तो हर समय ध्यान रखते हैं, ठीक है न, हां, हां, हां! अभ्यास हो गया उसको। ऐसे ही जैसे अपने आपको हर समय आप रियलाइज करते हैं। मैं हूं, जो मैं कल वहां गया था, वहीं मैं गहरी नींद में सो गया था, वहीं मैं फिर वॉकिंग के लिये गया था। वहीं मैं, वहीं मैं, वहीं मैं, मैं ....यह फीलिंग हर समय आपको है। बस इसी के साथ मैं और मेरा भगवान दोनों एक जगह हैं।
(क्रमश:, शेष प्रवचन अगले भाग में)
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