भगवान कब, कैसे मिलेंगे (भाग - 4)
-विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचन श्रृंखला
(पिछले भाग से आगे...)
वेद कहता है - द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षम् परिषस्वजाते।
आपके हृदय में आप और आपका भगवान दोनों बैठे हैं एक जगह, हृदय में। जीवात्मा के पीछे परमात्मा। जीवात्मा अच्छा बुरा कर्म करता है और परमात्मा नोट करता है। भगवान कहते हैं, तुम मान लो मैं तुम्हारे पीछे बैठा हूं। राइट एबाउट टर्न हो जाओ, लैफ्ट एबाउट टर्न हो जाओ, सरेण्डर कर दो, शरणागत हो जाओ, यह मान लो मैं तुम्हारे पास हूं बस, मैं मिल जाऊंगा।
जैसे गले में किसी के कण्ठी है, चेन है। बिल्कुल फिट है। वह स्त्री अपना सब श्रृंगार करके कपड़ा- साड़ी सब पहन के और वह ढूंढती है चेन कहां है हमारी? अब चिल्ला रही है नौकरानी पर। तो नौकरानी कहती है सरकार! वह तो आपके गले में है। ओ! मेरे गले में है। वह जानती नहीं, इसलिये परेशान है चेन के लिये। और विश्वास हो गया? हां, हो गया। एक कहावत है न, कांख में छोरा और गांव में ढिंढोरा। जैसे अपनी कांख में छोटे से बच्चे को लिए हुए है स्त्री और वह सबसे पूछती फिर रही है, मेरा बच्चा इधर आया है?
तो भगवान तो हृदय में है। तुम बद्रीनारायण जाते हो, तमाम तीर्थों में जाते हो, मंदिरों में जाते हो... क्या बात है वहां? वहां भगवान का मंदिर है। भगवान का मंदिर है? तुमने यह नहीं पढ़ा कि मामूली रामायण पढऩे वाला भी - प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना।
भगवान सब जगह समान रुप से व्याप्त हैं। बद्रीनारायण वाले भगवान कोई बड़े भगवान हैं? आपके बगल में भी मंदिर होगा मुहल्ले में, वह क्या छोटे भगवान होते हैं? और आपके हृदय में हैं वह क्या कोई और भगवान हैं? वही एक भगवान हैं। उसको मानो। यह मानने का अभ्यास करना होगा और इस भाव को निरन्तर मानना होगा।
(क्रमश:, शेष प्रवचन अगले भाग में)
Leave A Comment