- Home
- सेहत
-
हाथीचक या आर्टिचक एक बड़ा और अनूठा कंद है, जो 3 हजार वर्ष से प्रयोग में लिया जा रहा है। इसका इतिहास बहुत पुराना है। इसकी उत्पत्ति युरोप के भूमध्य रेखीय संभाग से हुई है, मिश्र के प्राचीन दस्तावेजों में भी इसका जिक्र मिलता है, जिनमें इसे त्याग और पुरुषत्व का प्रतीक माना गया है। यह थिसल प्रजाति का सदस्य है।
इसका वान्पतिक नाम चिनारा स्कोलिमुस है । 15 वीं शताब्दी में यह ब्रिटेन पहुंचा, जहां इसे आर्टिचॉक नाम दिया गया। आज अमेरिका में इसका सबसे अधिक उत्पादन कैलीफोर्निया में होता है। भारत में इसकी खेती शायद बहुत ही कम होती है। डॉ. बुडविग ने अपने कैंसर उपचार में इसके प्रयोग की विशेष तौर पर सलाह दी है। इसकी कई किस्में जैसे ग्रीन ग्लोब, डेजर्ट गेलोब, बिग हार्ट और इंपीरियल स्टार आदि उपलब्ध हैं। इसका कांटेदार पत्तियां हरे रंग की होती हैं और अंदर का हृदय या गूदा हल्के हरे रंग का होता है। इसकी पत्तियां और गूदा दोनों ही खाये जाते हैं। लेकिन कुछ लोग गूदा पसन्द करते हैं तो कुछ पत्तियां खाना पसन्द करते हैं। अपनी अपनी पसन्द है। यह देखने में कांटेदार, स्वाद में मजेदार और सेहत में दमदार है।
सन् 2004 में अमेरिका के कृषि विभाग ने बड़े स्तर पर विभिन्न भोज्य पदार्थों में एंटीऑक्सीडेंट्स के विश्लेषण हेतु अध्ययन करवाया था। अचरज की बात यह रही कि एंटीऑक्सीडेंट्स की दृष्टि से हाथीचक ने सर्वश्रेष्ठ सात भोज्य पदार्थों में स्थान बनाया और सब्जियों की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ चार में स्थान प्राप्त किया। ब्लूबेरी, रेडवाइन, ग्रीन टी भी पीछे रह गये।
पत्ते पत्ते में छुपे हैं एंटीऑक्सिडेंट
हाथीचक फाइबर का उत्कृष्ट स्रोत है। इसमें मैेग्नीशियम, मेंगनीज, पोटेशियम और क्रोमियम प्रचुर मात्रा में होते हैं। यह विटामिन-सी, फोलिक एसिड, बायोटिन, विटामिन-ए, थायमिन, नायसिन और राइबोफ्लेविन का भी अच्छा स्रोत है।
हाथीचक में अनेक फाइटोन्युट्रियेंट्स होते हैं। फाइटोन्युट्रियेंट्स पौधों में पाये जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर तत्व होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए उत्कृष्ट और जरूरी होते हैं।
क्युअरसेटिन एक फ्लेवोनॉयड है। यह कैंसर रोधी और एंटीऑक्सीडेंट है। कैंसर और हृदय रोग से बचाता है।
रूटिन -यह भी एक फ्लेवोनॉयड है और रक्त-वाहिकाओं को स्वस्थ रखता है। यह कैंसर कोशिकाओं के अनियंत्रित विभाजन को बाधित करता है। यह प्रदाहरोधी और एंटी-ऐलर्जिक है।
ऐन्थोसायनिन्स-यह कुछ तरह के कैंसर का खतरा कम करता है। साथ में यह मूत्रपथ का स्वस्थ रखता है, स्मरणशक्ति बढ़ाता है और आयुवर्धक है।
गेलिक एसिड-यह एंटीऑक्सीडेंट रेड वाइन और ब्लैक टी में भी पाटा जाता है। यह प्रोस्टेट कैंसर में कैंसर कोशिकाओं के विकास को बाधित करता है।
ल्युटियोलिन और सायनेरिन ल्युटियोलिन पॉलीफेनोल एंटीऑक्सीडेंट है और कॉलेस्टेरोल को कम करता है। हाथीचक में विद्यमान सायनेरिन कॉलेस्टेरोल को कम करता है, साथ ही यह पाचन तंत्र के विकार आइ.बी.एस. और अपच में भी फयदेमंद है। सायनेरिन यकृत की कोशिकाओं का जीर्णोद्धार करता है और यकृत में पित्त के स्राव को प्रोत्साहित करता है, जिससे फैट्स के पाचन मदद मिलती है और विटामिन्स का अवशोषण बढ़ता है।
-
कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस त्वचा की एक प्रकार की जलन (इन्फ्लेमेशन) है जो तब होती है, जब त्वचा किसी ऐसे पदार्थ के सम्पर्क में आती है जो इसे (उत्तेजित) इरिटेट करता है या एलर्जिक रिएक्शन का कारण बनता है। प्राकृतिक और कृत्रिम रसायनों की ऐसी लम्बी सूची है जो कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस उत्पन्न कर सकते हैं।
सामान्य त्वचा सम्पर्क (कॉमन स्किन एक्सपोजर) या कॉन्टेक्ट जो कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस उत्पन्न करते हैं उनमें शामिल हैं- हाथों को धोना, घर की साफ सफाई, डायपर पहनाना, विषैली लता, ओक (शाहबलूत) या सुमैक के सम्पर्क में आना, परफ्यूम स्प्रे करना या हाथ से लगाना, कोई ऐसा धातु की नेकलेस या ब्रेसलेट पहनना जिसमें निकेल हो, धातु के कांटों या जिपर्स वाले कपड़े पहनना, बालों को शैम्पू करना, मेकअप करना या हेयरडाई का इस्तेमाल करना, औद्योगिक विलायकों के साथ कार्य करना और किसी ऐसी जलती आग के निकट बैठना जिसमें विषैली लता जलाई जा रही हो।
डॉक्टर कांन्टेक्ट डर्माटाईटिस को दो प्रकार में बांटते हैं जो जलन के कारणों पर आधारित हैं-
इरिटेंट कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस- यह किसी ऐसे कैमिकल के सम्पर्क में आने पर होता है जो विषैला (टॉक्सिक) या मानवीय त्वचा को इरिटेट करने वाला हो। यह एलर्जिक रिएक्शन नहीं है। बच्चों में इरिटेंट कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस सर्वाधिक डायपर डर्माटाईटिस के रूप में पाया जाता है। यह डायपर वाले हिस्से में त्वचा का रिएक्शन होता है जो मूत्र और मल में पाए जाने वाले प्राकृतिक रसायनों (कैमिकल) के सम्पर्क में ज़्यादा देर तक रहने से होता है। बच्चों में आईसीडी मुंह के आसपास भी विकसित हो जाता है जो बच्चों के भोजन के साथ टपकती लार या सलाईवा के त्वचा के सम्पर्क में आने से होता है। वयस्कों में इरिटेंट कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस प्राय: एक आकस्मिक बीमारी के रूप में पाया जाता है जो कठोर साबुनों, विलायकों या क्षारक अभिकर्मकों (कटिंग एजेंट्स) के सम्पर्क में आने से होता है। यह स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ताओं, घर का कार्य करने वालों, दरबानों, मैकेनिकों, मशीन पर काम करने वालों और बाल काटने वालों (हेयरड्रेसर) में सबसे ज़्यादा पाया जाता है। लेकिन यह किसी भी ऐसे व्यक्ति में हो सकता है जो घर का कामकाज करता हो या अपने किसी शौक के चलते जलन पैदा करने वाले कैमिकलों के सम्पर्क में आता हो।
एलर्जिक कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस- यह एक इम्यून रिएक्शन है जो केवल ऐसे लोगों में होता है जो कुछ केमिकलों के प्रति प्राकृतिक रूप से अधिक संवेदनशील होते हैं। एलर्जिक कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस में पदार्थ (एलर्जेन) के सम्पर्क में आने के 24 से 36 घंटे बाद तक जलन उत्पन्न नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एलर्जिक कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूमन सिस्टम) भाग लेता है और इस प्रक्रिया में कुछ समय लगता है। त्वचा पर एलर्जी की स्थिति अलग-अलग लोगों में अलग-अलग हो सकती है। हालांकि इसके लिए जिम्मेदार सबसे प्रमुख प्रकार के एलर्जेन्स, विषैली लता, ओक और सुमैक में पाए जाने वाले केमिकल, मेटल ज्वैलरी में निकेल और कोबॉल्ट, कपड़ों के स्नैप्स, जिपर्स और मेटल प्लेटेड ऑब्जेक्ट्स, त्वचा के जैवप्रतिरोधी (एंटीबायोटिक) मलहमों में नियोमाईसिन, लेदर(चमड़े) के जूतों और कपड़ों में पाया जाने वाला एक टैनिंग एजेंट पोटेशियम डाईक्रोमेट, दास्तानों और रबर के कपड़ों में लैटेक्स और कुछ परिरक्षक (प्रिजर्वेटिव्स) जैसे कि फार्मेल्डिईहाईड आदि हैं।