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 उद्योग जगत का सीएसआर खर्च 2020-21 में तीन प्रतिशत बढ़ा, दूसरी लहर में पीएम-केयर्स में योगदान घटा
मुंबई। भारतीय उद्योग जगत द्वारा पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में परोपकार कार्यों पर किया गया खर्च 3.62 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 22,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इनमें से ज्यादातर व्यय महामारी में मदद से जुड़े कार्यों के लिए आवंटित किया गया। मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां कोविड-19 की पहली लहर के दौरान ज्यादातर नकदी खर्च पीएम-केयर्स फंड के माध्यम से हुआ, वहीं दूसरी लहर में प्राथमिकता बदल गई और वस्तुओं एवं सेवाओं पर खर्च के माध्यम से सीधी मदद को प्राथमिकता दी गयी। कंपनियों ने दूसरी लहर के दौरान मार्च-जून 2021 में पीएम-केयर्स फंड में केवल 85 करोड़ रुपये का योगदान दिया, जबकि 'अन्य' के रूप में वर्गीकृत मदद के तौर पर 831 करोड़ रुपये का योगदान किया गया। वहीं, पहली लहर के दौरान मार्च-मई 2020 के बीच उन्होंने पीएम-केयर्स फंड में 4,316 करोड़ रुपये और अन्य मदद के तौर पर 3,221 करोड़ रुपये का योगदान दिया। रिपोर्ट के मुताबिक, "दूसरी लहर की गंभीरता को देखते हुए, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर, सिलेंडर, टेस्टिंग किट जैसे उपकरणों, और भोजन/राशन के दान के साथ स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे का समर्थन करने के रूप में मदद मिली - जिसका पैसों के रूप में मूल्य का निर्धारण नहीं किया जा सकता है।" इसमें कहा गया कि यह मानते हुए कि कंपनियों का खर्च उनके पिछले तीन वित्तीय वर्ष के औसत लाभ के दो प्रतिशत के अनिवार्य स्तर के आसपास था, पात्र कंपनियों ने वित्त वर्ष 2020-21 में कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) पर 22,000 करोड़ रुपये खर्च किए होंगे, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में यह राशि 21,231 करोड़ थी। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में सीएसआर पर किए गए खर्च में 1,700 से अधिक सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा 14,986 करोड़ रुपये के खर्च और गैर-सूचीबद्ध इकाइयों द्वारा 7,072 करोड़ रुपये के खर्च शामिल होंगे। जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष में 1,387 सूचीबद्ध कंपनियों ने 14,431 करोड़ रुपये और 19,962 गैर-सूचीबद्ध इकाइयों ने 6,800 करोड़ रुपये खर्च किए। एजेंसी ने कहा कि कंपनी अधिनियम में बदलाव के माध्यम से सीएसआर खर्च को लेकर अनिवार्य स्तर तय किए जाने के सात वर्षों के भीतर इस तरह का खर्च एक लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर गया है। इसमें से 40 प्रतिशत खर्च केवल पिछले दो वित्तीय वर्षों के दौरान हुआ। तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर कोरोना महामारी से जुड़े खर्च में और वृद्धि हो सकती है।

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