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इस रबी सत्र में जीएम-सरसों का खेत में प्रदर्शन-परीक्षण कर सकता है आईसीएआर


नयी दिल्ली.  सरकारी कृषि अनुसंधान निकाय आईसीएआर इस रबी सत्र में हाल ही में स्वीकृत जीएम-सरसों हाइब्रिड डीएमएच -11 का खेत में प्रदर्शन (फील्ड डेमो) और परीक्षण कर सकता है। यह तीन साल के भीतर इसे व्यावसायिक उपयोग के लिए उपलब्ध करायेगा। कृषि मामलों के शोध संस्थान ‘एनएएसएस' और ‘टीएएसएस' के शीर्ष अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी। 25 अक्टूबर को, पर्यावरण मंत्रालय ने ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड डीएमएच -11 तथा बार्नेज, बारस्टार और बार जीन युक्त पैतृक लाइनों को ‘पर्यावरणीय स्तर पर जारी करने' को मंजूरी दे दी ताकि उनका उपयोग भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की देखरेख में नए संकर किस्म को विकसित करने के लिए किया जा सके। नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (एनएएसएस) के अध्यक्ष त्रिलोचन महापात्र और ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (टीएएएस) के अध्यक्ष आर एस परोदा ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि डीएमएच-11 की पर्यावरण स्तर पर जारी करना एक ‘ऐतिहासिक निर्णय' है, जो जीएम खाद्य फसलों को जारी करने के संदर्भ में लंबे समय से चल आ रहे गतिरोध को को खत्म करेगा। उन्होंने कहा कि आईसीएआर अगले 10-15 दिनों में प्रमुख सरसों उत्पादक राज्यों राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश में डीएमएच-11 का खेत में प्रदर्शन और परीक्षण करने की स्थिति में हो सकता है। कृषि मंत्रालय के तत्वावधान में आईसीएआर, भारत में कृषि में अनुसंधान और शिक्षा के लिए एक शीर्ष निकाय है। इसके तहत लगभग 111 संस्थान और 71 विश्वविद्यालय कार्य करते हैं। वर्तमान में भारत में वाणिज्यिक खेती के लिए बीटी-कॉटन एकमात्र गैर-खाद्य फसल है।
आगे के परीक्षणों की आवश्यकता के बारे में बताते हुए महापात्र ने कहा कि डीएमएच -11 का कृषि विज्ञान और उपज प्रदर्शन के लिए पहले ही आईसीएआर के भरतपुर स्थित राष्ट्रीय रैपसीड-सरसों पर राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र द्वारा परीक्षण किया जा चुका है, लेकिन केवल सीमित स्थानों पर यह परीक्षण किये गये थे। उस समय, अधिक स्थानों पर इसका परीक्षण नहीं किया जा सका था क्योंकि प्रौद्योगिकी को विनियमित नहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि डीएमएच-11 के पर्यावरण स्तर पर जारी करने के साथ, प्रौद्योगिकी को नियंत्रणमुक्त कर दिया गया है और अब इसका और अधिक स्थानों पर फिर से परीक्षण किया जा सकता है और खेतों में प्रदर्शित किया जा सकता है और साथ ही नई संकर किस्मों को विकसित करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है। आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक महापात्रा ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘तीनों गतिविधियां एक साथ की जाएंगी। आईसीएआर इस रबी सत्र से आसानी से मैदानी प्रदर्शन शुरू कर सकता है।'' उन्होंने कहा कि अभी 10 किलो डीएमएच-11 बीज ही उपलब्ध हैं। चूंकि कम मात्रा में बीज उपलब्ध हैं, पहले इसका उपयोग प्रदर्शन के उद्देश्य से किया जा सकता है, कुछ मात्रा का उपयोग अधिक स्थानों पर खेत परीक्षण के लिए किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि डीएमएच-11 की उपज क्षमता का पता लगाने के बाद मात्रा के स्तर पर बीज की संख्या को बढ़ाया जाएगा। ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (टीएएएस) के अध्यक्ष आर एस परोदा ने कहा, ‘‘उपलब्ध बीजों के साथ, आईसीएआर इस रबी सत्र में नियंत्रित वातावरण में 50-100 खेत प्रदर्शन आसानी से कर सकता है।'' उन्होंने कहा कि निजी और सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से अधिक संकर बीज पैदा करने के प्रयास की जरूरत है ताकि अगले फसल सत्र में अधिक रकबे को शामिल किया जा सके। एनएएएस के सचिव के सी बंसल ने कहा कि इसका न तो इससे मधुमक्खियों को कोई खतरा है और न ही मनुष्यों के लिए कोई स्वास्थ्य जोखिम अबतक बताया गया है। भारत की सरसों की औसत उपज 1-1.3 टन प्रति हेक्टेयर है। उन्होंने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि देश खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर हो जाए क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में भारत की खाद्य तेल की मांग को पूरा करने के लिए खरपतवार नाशक के प्रति सहिष्णु जीएम सरसों को मंजूरी दी है।

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