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सड़क, नहर के किनारे सहित खाली सरकारी जमीन पर मधुमक्खीपालन अनुकूल पौधे लगाए जाएं :सीएआई

नयी दिल्ली. देश में उभरते मधुमक्खीपालन उद्योग के समक्ष ‘ऑफसीजन' के दौरान फूलों की उपलब्धता की चुनौती से निपटने और मधुमक्खीपालन को बेरोकटोक जारी रखने के लिए कनफेडेरशन ऑफ़ एपीकल्चर इंडस्ट्री (सीएआई) ने  सरकार से खाली सरकारी जमीन पर ऐसे पौधों एवं वृक्षों की रोपाई की मांग की जिससे मधुमक्खियों को पूरे साल फूलों की उपलब्धता हो सके। सीएआई के अध्यक्ष देवव्रत शर्मा ने बताया, ‘‘सीएआई, सरकार से, सड़कों के किनारे, रेलवे के अलावा खाली सरकारी जमीनों व नहरों के किनारे ऐसे फूल देने वाले पौधों की लगाने की कराने की मांग करती है जिससे मधुमक्खियों को पूरे साल फूलों की कमी न हो।'' सीएआई ने आज हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के नौणी स्थित डॉ. वाई.एस. परमार विश्वविद्यालय में ऑफसीजन के दौरान मधुमक्खियों के लिए फूलों की उपलब्धता बढ़ाने के बारे में जागरूकता अभियान के तहत एक सेमिनार का आयोजन किया। इस दौरान विश्वविद्यालय परिसर में मधुमक्खी-फ्लोरा का पौधरोपण किया गया और प्रतिभागियों के बीच मधुमक्खी-फ्लोरा का वितरण किया गया। शर्मा ने बताया कि मधुमक्खियों का ऑफसीजन अप्रैल से लेकर लगभग अक्टूबर महीने तक का होता है। पहले यह ऑफसीजन चार महीने का होता है पर सड़क एवं नहरों के किनारे के युक्लिप्टस के कटने से यह लगभग सात आठ महीने का हो चला है। पहले युकिलिप्टस से मधुमक्खियों को नेक्टर (पुष्प-रस) मिलता था लेकिन अब इस कमी के दूर करने के लिए आंवला, नींबू, बेर, जामुन, कटहल, नीम, शीशम, करी पत्ता के पेड़ जैसे पौधों को लगाने पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। शर्मा ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) के तहत आने वाली ‘बी डेवलपमेंट कमेटी' ने भी ऐसी सिफारिश की है। सीएआई ने इस संदर्भ में सड़क परिवहन एवं रेल व ग्रामीण विकास मंत्रालय को भी पत्र लिखा है कि वे कृषि उत्पादकता और किसानों की आय बढ़ाने वाले मधुमक्खीपालन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए अपनी खाली जमीनों पर मधुमक्खी अनुकूल वृक्ष एवं पौधे लगवाएं।'' सीएआई की सोलन के डॉ. वाई.एस. परमार विश्वविद्यालय में आयोजित बैठक में मधुमक्खीपालन उद्योग के प्रमुख अंशधारक, विशेषज्ञ और उद्योग प्रतिनिधि शामिल हुए। सेमिनार का उद्घाटन विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान, डॉ. एस.के चौहान ने किया। उन्होंने आजीविका और कृषि उत्पादकता के लिए मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया। शर्मा ने कहा, ‘‘देश में सालाना करीब 1,80,000 टन शहद का उत्पादन होता है जिसमें से 1,50,000 टन शहद किसानों द्वारा किये जाने वाले मधुमक्खीपालन से प्राप्त होता है और करीब 30,000 टन शहद जंगलों में लगे मधुमक्खियों के छत्तों से मिलता है। किसानों द्वारा उत्पादित शहद में से लगभग आधे हिस्से का निर्यात किया जाता है और घरेलू खपत करीब 75,000 टन की है। शहद के निर्यात से देश को सालाना औसतन करीब 1,250-1,500 करोड़ रुपयों की प्राप्ति होती है। निर्यात के लिए सबसे अधिक मांग सरसों फूल से बने शहद की है क्योंकि इसमें सबसे अधिक औषधियों गुण पाये जाते हैं।'' सेमिनार के दौरान दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए और विभिन्न विषयों जैसे मधुमक्खी रोग, मधुमक्खी प्रबंधन, मधुमक्खी उत्पाद और विपणन मुद्दों पर विश्वविद्यालय, राज्य बागवानी विभाग और सीएआई के अधिकारियों द्वारा व्याख्यान दिए गए। इस बैठक का उद्देश्य उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों को हल करना, विकास के अवसरों का पता लगाना था।

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