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बदलना होगा ‘हम दो हमारे क्यों? ’ वाली मानसिकता को

- ‘खुला मंच’ में महाराष्ट्र मंडल के सभासदों ने नए सिरे से जागरूकता अभियान चलाने पर दिया जोर
 रायपुर। ‘हम दो हमारा एक’ वाली अवधारणा अब बीते दिनों की बात हो गई है। अब विशेषत: महानगरों में ‘हम दो हमारा क्यों? ’ वाली मानसिकता प्रबल होने लगी है। इससे समूचे समाज का अस्तित्व ही खतरे में पड़ने लगेगा। इस आशय के विचार सचिव चेतन गोविंद दंडवते ने महाराष्ट्र मंडल के कार्यक्रम ‘खुला मंच’ में व्यक्त  किए।  
दंडवते ने कहा कि दो-तीन दशकों में युवाओं की मानसिकता 'हम दो हमारा एक' के परिणाम स्वरूप ज्यादातर परिवार के बच्चे के जीवन में भाई- बहन नहीं है। भविष्य् में अब उन्हें  मौसा- मौसी, बुआ- फुफा, भाई- भाभी, चाचा- चाची, मामा- मामी रिश्तेे जीने को ही नहीं मिलेंगे। उन्होंने कहा कि हम ही अपने बच्चों को अपेक्षित संस्कार नहीं दे पा रहे हैं। अपनी परंपराओं से अवगत नहीं करवा पा रहे है। इससे भी बड़ा दुर्भाग्य पैसे कमाने और कैरियर गढ़ने की होड़ में बिना सोचे- समझे हम बच्चों को अपने से दूर महानगरों की अनजान भीड़ में झोंक रहे हैं। ऐसे में हम उनसे यह कैसे उम्मीद करें कि वो हमारी संस्कृति व परंपराओं को अपने जीवन में आत्मसात करेंगे और एक अच्छे परिवार के साथ सुखद भविष्य की ओर अग्रसर होंगे।
दंडवते ने इस बात पर जोर दिया कि हमें आज के अभिभावकों के साथ युवाओं को भी जागरूक करने की जरूरत है। खासकर 16 से 24 साल तक के आयु वर्ग के युवाओं को कार्यशाला लेकर पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों का अहसास कराने की जरूरत है। परिवार परामर्श समिति की प्रमुख शताब्दी पांडे ने दिखावे की शादी में होने वाले लाखों- करोड़ों रुपये के आडंबर से समाज को जागरूक करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हैसियत से आगे बढ़कर की गई शादियों में वधू का पिता ऋण लेकर अथवा घर- खेत खलिहान बेचकर केवल सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए भव्य शादी करता है। इन सबसे बचने के लिए समाज को जागरूक करना और मितव्ययी शादी करने का वातावरण बनाना जरूरी है।
बृहन्न महाराष्ट्र  मंडल के छत्तीसगढ़ कार्यवाह सुबोध टोले ने कहा कि मराठी भाषी समाज के व्यवसायियों और उद्यमियों का एक ऑनलाइन ग्रुप बनना चाहिए। इससे हमें नया मार्केट तलाशने में सुविधा होगी। साथ ही नए कांटेक्ट भी मिलेंगे। टोले ने कहा कि अब वो पुरानी बात हो गई है कि मराठी व्यक्ति मराठी व्या‍पारी से खरीदारी नहीं करता या काम नहीं करवाता। 
स्वावलंबन समिति की प्रभारी शताब्दी पांडे ने कहा कि समाज के नए उद्यमी समाज के लिए अनुभवी उद्यमियों व व्यापारियों के अनुभवों का लाभ लेकर अपने नए कारोबार को स्थापित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि परिवार परामर्श समिति के सदस्य समाज के हर वर्ग को हर तरह का नि:शुल्क  व नि:स्वार्थ परामर्श देने के लिए तैयार हैं। ऐसे में नई दंपती या युवा वर्ग एक ही बच्चे या नि:संतान रहकर जीवन गुजारने की सोचते हैं, तो उनकी परिवार परामर्श समिति के माध्य्म से काउंसिलिंग की जा सकती है। उन्हें, उनके अभिभावकों को इसके बारे में जागरूक किया जा सकता है और भविष्य  में होने वाली दिक्कतों से भी अवगत कराया जा सकता है।
 खुला मंच में सिटकॉन के पूर्व राज्य प्रमुख व दिव्यांग बालिका विकास गृह के प्रभारी प्रसन्न विजय निमोणकर, सह सचिव सुकृत गनोदवाले, डॉ. कमल वर्मा सहित अनेक सभासदों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए सुझाव भी दिए।

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